अलाउद्दीन ने अपने प्रशासनिक कार्यों के संचालन के लिए 4 प्रमुख विभागों का गठन किया –
दीवान-ए-विजारत (वित्त विभाग) – यह विभाग वजीर अधीन था, वजीर का शासन में सुल्तान के बाद सर्वोच्च स्थान था| वित्त के अतिरिक्त इस विभाग को प्रशासन व सैन्य उत्तरदायित्व भी सौंपा गया|
दीवान-ए-आरिज (सैन्य विभाग) – इस विभाग का सर्वोच्च अधिकारी आरिज-ए-मुमालिक कहलाता था| इसका मुख्य कार्य सेना की भर्ती करना, वेतन बांटना, सेना का निरीक्षण करना तथा युद्ध में सेनापति का सहयोग उसका प्रमुख कार्य था|
दीवान-ए-इंशा – इस विभाग का प्रमुख कार्य शाही उद्घोषणाओं और प्रपत्रों का प्रारूप तैयार करना, सरकारी कार्यों का लेखा-जोखा रखना, प्रान्तपतियों व स्थानीय अधिकारियों से पत्र-व्यवहार तथा सरकारी आदेशों को सुरक्षित रखना था| इस विभाग का प्रमुख दबीर-ए-मुमालिक कहलाता था|
दीवान-ए-रसालत – यह विदेशी विभाग था, इसका कार्य कूटनीतिक पत्र-व्यवहार तथा विदेश वाले संपर्क स्थापित करना था| यह विभाग सीधे सुल्तान के अधीन था|
न्याय व्यवस्था –
बलबनअलाउद्दीन निष्पक्ष न्याय की व्यवस्था के लिए केल समान ही कठोर निति का अनुपालन किया| राज्य की सर्वोच्च न्यायिक शक्ति सुल्तान में निहित थी, तथा सुल्तान के बाद सर्वोच्च न्यायिक अधिकारी सद्र-ए-जहाँ (काजी उल कुजात) था|
पुलिस व गुप्तचर व्यवस्था –
पुलिस व्यवस्था में सुधार हेतु अलाउद्दीन ने दीवान-ए-रियासत (बाजार व्यवस्था व व्यापारियों पर नियंत्रण), शहना (दंडाधिकारी), मुहतसिब नामक नवीन पदों सृजन किया|
गुप्तचर विभाग का प्रमुख अधिकारी ‘बरीद-ए-मुमालिक’ था| इसके नियंत्रण में अनेक बरीद (संदेशवाहक) कार्य करते थे, जो राज्य में होने वाली प्रत्येक घटना सुल्तान को पहुंचाते थे| बरीद के अतिरिक्त अन्य गुप्तचरों को ‘मुनहियन’ तथा ‘मुन्ही’ कहा जाता था|
डाक व्यवस्था –
गुप्तचर व्यवस्था को सुदृढं करने तथा विभिन्न भागों से संपर्क बनाए रखने के लिए अलाउद्दीन ने इस विभाग का गठन किया| इसके अंतर्गत अलाउद्दीन ने अनेक डाक-चौकियों की स्थापना की जिससे साम्राज्य में होने वाली किसी भी घटना की जानकारी सुल्तान को तुरन्त मिल जाती थी |
सैन्य सुधार –
सल्तनत काल में अलाउद्दीन प्रथम सुल्तान था जिसने एक शक्तिशाली केंद्रीय सेना की स्थापना की|
- अलाउद्दीन ने दाग (घोड़ो को दागने) व हुलिया (सैनिकों का हुलिया लिखने) प्रथा प्रारंभ की |
- इस काल में 10,000 की सैनिक टुकड़ी को तुमन कहाँ जाता था|
- शाही घोड़ो की नस्ल सुधारने व अच्छी नस्ल के घोड़ो का प्रबंध करने के लिए पायगाह विभाग की स्थापना की|
- सैनिकों को नकद वेतन देने वाला अलाउद्दीन प्रथम सुल्तान था| सैनिकों को वार्षिक वेतन 234 टंका तथा घोड़ों के व्यय के लिए वार्षिक 78 टंका वेतन मिलता था|
आर्थिक सुधार –
- बाजार व्यवस्था
- भू-राजस्व व्यवस्था
बाजार व मूल्य नियंत्रण –
वित्तीय और राजस्व सुधारों में रुचि लेने वाला अलाउद्दीन प्रथम सुल्तान था | इसकी विस्तृत जानकारी जियाउद्दीन बरनी द्वारा लिखित पुस्तक ‘तारीख-ए-फिरोजशाही‘ मिलती है| अमीर खुसरो द्वारा लिखित पुस्तक ‘खजाइनुल-फूतूह‘, इब्नबतूता की पुस्तक ‘रेहला‘ , इसामी की पुस्तक ‘फतूहस सलातीन‘ तथा शेख नासिरुद्दीन की पुस्तक खयारूल मजालिस से मिलती है|
विभिन्न प्रकार के बाजारों को संगठित करने के लिए अलाउद्दीन ने 4 बाजार स्थापित किए –
- अनाज मंडी (गल्ला बाजार)
- सराय अदल
- घोड़ो दासों व मवेशियों का बाजार
- सामान्य बाजार
खाद्यानों की दरें अत्यन्त कम करके इस प्रकार निश्चित की गई-
गेहूं | प्रति मन | 7 .5 जीतल |
जौ | प्रति मन | 4 जीतल |
धान | प्रति मन | 5 जीतल |
उड़द | प्रति मन | 5 जीतल |
चना | प्रति मन | 5 जीतल |
मोठ | प्रति मन | 5 जीतल |
शक्कर | प्रति सेर | 7.5 जीतल |
गुड़ | प्रति सेर | 1.5 जीतल |
मक्खन | प्रति तीन सेर | 1 जीतल |
सरसों का तेल | प्रति ढाई सेर | 1 जीतल |
नमक | प्रति ढाई सेर | 5 जीतल |
भू-राजस्व
अलाउद्दीन प्रथम सुल्तान था जिसने भूमि की पैमाइश के आधार पर सर्वप्रथम भूमि कर लगाया था तथा राजस्व (भू-राजस्व) कर प्रणाली को सुधारने के लिए अलाउद्दीन ने दीवान-ए-मुस्तखराज की स्थापना की| जिसका प्रमुख कार्य किसानों से बकाया भू-राजस्व का संग्रहण करना था|
कर प्रणाली
भू-कर (खराज) – अलाउद्दीन के काल में भू-राजस्व दर सर्वाधिक थी, जो भू-उपज का 50 % थी| अलाउद्दीन प्रथम सुल्तान था जिसने भूमि की पैमाइश के आधार पर सर्वप्रथम भूमि कर लगाया इसके लिए उसने बिस्वा को इकाई माना |
गढ़ी कर – यह कर मकान पर लगाया गया|
चरी कर – यह कर दूध देने वाले पशुओं पर लगाया और उनके लिए चारागाह निश्चित किए|
जकात – यह केवल मुस्लिमों से लिया जाने वाला करथा जो आय को 40 वां भाग था |
ख़ुम्स (लूट का माल) – मूल रूप से लूट के माल का 4/5 भाग सैनिकों को तथा शेष 1/5 भाग राज्य को मिलता था किन्तु अलाउद्दीन इसके विपरीत 4/5 भाग भाग राज्य को तथा शेष 1/5 भाग राज्य सैनिकों को दिया | भविष्य में मुहम्मद बिन तुगलक ने भी इस प्रथा को जारी रखा|
जजिया – यह गैर-मुस्लिमों से लिया जाने वाला कर था, जो सम्भवतः ब्राह्मणों, स्त्रियों, बच्चों, पागलों और निर्बलों से जजिया नहीं लिया जाता था|