हाल ही में, झारखंड की असुर जनजाति असुरी भाषा को पुनर्जीवित करने के प्रयासों की वजह से चर्चा में रही।
- वर्तमान में सिर्फ 7000-8000 असुर जाति के लोग ही इस भाषा को बोलते हैं।
- असुरी भाषा को पुनर्जीवित करने के लिये ये लोग स्थानीय समाचारों को मोबाइल रेडियो के माध्यम से असुरी भाषा में ही प्रसारित कर रहे हैं।
- ध्यातव्य है कि असुरी भाषा यूनेस्को की एटलस ऑफ द वर्ल्ड लैंग्वेजेज़ इन डेंजर (Atlas of the World Languages in Danger) की सूची में शामिल है।
असुर जाति के लोग भारत के झारखंड राज्य में मुख्यतः गुमला, लोहरदगा, पलामू और लातेहार जिलों में निवास करते हैं, तथा आंशिक रूप से पश्चिम बंगाल एवं ओडिशा में निवास करती है।
असुर जनजाति मुख्यतः प्रोटो-ऑस्ट्रेलॉयड है, ये लोग असुरी भाषा बोलते हैं जो ऑस्टोएशियाटिक परिवार की भाषा है।
सरहुल, फगुआ तथा कर्मा आदि असुर जनजाति के प्रमुख त्यौहार हैं।
गृह मंत्रालय द्वारा असुर जनजाति (Asur Tribe) को विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह (Particularly vulnerable Tribal Groups – PVTGs) के रूप में वर्गीकृत किया गया है। वस्तुतः PVTGs निम्न विकास सूचकांक वाले जनजातीय समुदाय होते हैं।
जनजातीय समुदायों को PVTGs श्रेणी में सूचीबद्ध करने की सिफारिश ढेबर आयोग (1973) द्वारा की गई थी।
PVTGs से सम्बंधित विकास कार्यक्रमों की देखरेख जनजातीय कार्य मंत्रालय करता है, इसके तहत सम्बंधित राज्यों को PVTGs के विकास हेतु 100% अनुदान सहायता प्राप्त होती है।
वर्तमान में, PVTGs श्रेणी के अंतर्गत असुर जनजाति (Asur Tribe), बिरहोर (मध्य प्रदेश एवं ओडिशा), बिरजिया (बिहार), राजी (उत्तराखंड व उत्तर प्रदेश), मनकीडिया (ओडिशा) तथा जारवा (केरल, अंडमान एवं निकोबार) आदि जनजातीय समुदाय शामिल है।
यूनेस्को की एटलस ऑफ द वर्ल्ड लैंग्वेजेज़ इन डेंजर (Atlas of the World Languages in Danger) विश्व भर में भाषाई विविधता को सुरक्षित रखने, लुप्तप्राय भाषाओं की निगरानी एवं उन्हें पुनर्जीवित करने के लिये एक वैश्विक प्रयास है।