- वानस्पतिक नाम – मुसा पैराडिसियाका (Musa paradisiaca)
- कुल – मुजैसी (Musaceae)
- मूल स्थान – दक्षिण-पूर्वी एशिया
राष्ट्रीय केला अनुसंधान केन्द्र (National Research Centre for Banana – NRCB), तमिलनाडु के त्रिचुरापल्ली में स्थित है।
इस फल में विटामिन A, B व C प्रचुर मात्रा में पाया जाता है तथा 27% कार्बोहाइड्रेट (carbohydrate) पाया जाता है।
केले की अधिकांश प्रजातियाँ त्रिगुणित (Triploid) होती है, जिस कारण इनमें बीज पाए जाते है।
भारत में केले का प्रवर्धन अन्तः भूस्तारी तने द्वारा किया जाता है।
उत्तर भारत में केले के वृक्षों का रोपण वर्षा ऋतु में तथा मालाबार में सितंबर व अक्टूबर के मध्य किया जाता है।
केले के प्रमुख रोग
मोको (Moko) केले में होने वाला एक जीवाणु जनित रोग है।
केले के वृक्षों में पनामा म्लानि रोग कवक की उपस्थिति के कारण होता है, किन्तु केले की पूवन प्रजाति इस रोग की अवरोधी किस्म है।
सिगाटोका लीफ स्पॉट (Sigatoka leaf spot)
ट्रॉपिकल रेस – 4 – यह केले के वृक्षों में होने वाला एक प्रमुख रोग है, जो पनामा म्लानि रोग का ही एक उप प्रकार है।
- ट्रॉपिकल रेस 4, कावेनडिश (Cavendish) प्रजाति के वृक्षों के लिए अत्यधिक हानिकारक रोग है।
पत्ती गुच्छा रोग (Bunchy top) एक विषाणु जनित रोग है जो माहू द्वारा फैलता है।
Note:
- केले के उत्पादन में भारत प्रथम स्थान पर है।
- कावेनडिश (Cavendish) केले की विश्व प्रसिद्ध प्रजाति है, जिसका वैश्विक स्तर पर केले के उत्पादन में लगभग 47% का योगदान है।
- केलों को कृत्रिम रूप से पकाने के लिए इथ्रेल का प्रयोग किया जाता है, इथ्रेल से ही इथाइलीन गैस (ethylene gas) निकलती है।