प्रत्येक जीव के अंगों को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है –
- समजात अंग (Homologous Organs)
- समरूप अंग (Analogous Organs)
- अवशेषी अंग (Vestigial Organs)
समजात अंग (Homologous Organs) –
वह अंग, जो विभिन्न कार्यों के लिए विकसित हो जाने के कारण असमान दिखाई दे सकते हैं, परन्तु मूल रचना एवं भ्रूणीय परिवर्धन में वे समान होते हैं, समजात अंग कहलाते हैं। इसी को ‘अंगों की समजातता कहते हैं। यह समजातता पूर्वजों से विभिन्न दिशाओं में हुए जैव विकास को प्रमाणित करती है। जैसे – पक्षियों के पंख, मनुष्य के हाथ।
समरूप अंग (Analogous Organs) –
वह अंग जो समान कार्य के लिए विकसित हो जाने के कारण समान दिखाई देते हैं, परन्तु मूल संरचना एवं भ्रूणीय प्रक्रिया में असमान हो सकते हैं, समरूप अंग कहलाते हैं। यह समरूपता अभिसारी जैव विकास को प्रमाणित करती है। जैसे – चमगादड़, कीटों एवं पक्षियों के पंख ।
अवशेषी अंग (Vestigial Organs) –
वह अंग जो जीवों के पूर्वजों में पूर्ण विकसित थे, परन्तु वातावरणीय परिस्थितियों में परिवर्तन के परिणामस्वरूप कालांतर में अनुपयोगी हो गए अर्थात विकसित जन्तुओं में विद्यमान अर्द्धविकसित एवं अनुपयोगी अंग या उनके भाग अवशेषी अंग कहलाते हैं। जैसे – त्वचा के बाल, कर्ण-पल्लव (Pinna), कीवी के पंख, शुतुरमुर्ग के पंख, मनुष्य में एपेन्डिक्स (Apendix) आदि।
संयोजक कड़ी (Connecting link)
जीव-जंतुओं की वे जातियां जो अपने से कम विकसित जातियों तथा अपने से अधिक विकसित उच्च कोटि की जातियों की सीमा रेखा अर्थात निम्न एवं उच्च जातियों के लक्षण का सम्मिश्रण होती हैं, संयोजक जातियां कहलाती हैं। जैसे – यूग्लीना, प्रोटीरोस्पंजिया, नियोपिलाइना, पैरीपेटस, आर्कियोप्टेरिक्स, प्रोटोथीरिया आदि ।