अनुच्छेद (29) – अल्पसंख्यकों के हितो का संरक्षण
संविधान में अल्पसंख्यकों के हितो के संरक्षण के दो आधार बताए गए है।
- धार्मिक (Religious)
- भाषायी (Linguistic)
अल्पसंख्यकों के हितो के संरक्षण के अंतर्गत निम्न प्रावधान किए गए है —
- इसके तहत यह प्रावधान किया गया है की भारत के किसी भी भाग में रहने वाले नागरिको के अनुभाग / समूह को जिसकी अपनी बोली , भाषा , लिपि , संस्कृति को सुरक्षित रखने का अधिकार है।
- इसके तहत किसी भी नागरिक को राज्य के अंतर्गत आने वाले कोई भी क्षेत्र या स्थान में धर्म , जाति या भाषा के आधार पर प्रवेश नहीं रोका जा सकता है।
- नागरिकों के अनुभाग का अभिप्राय अल्पसंख्यक व बहुसंख्यक दोनों से है।
संविधान में अल्पसंख्यको की कोई परिभाषा नहीं है इसे सबसे पहले उच्चतम न्यायालय ने परिभाषित किया। वर्तमान समय में अल्पसंख्यकों के निर्धारण के लिए राज्य व केंद्र दोनों को अधिकार है। जैसे- M.P और Delhi में जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्ज़ा प्राप्त है जबकि अन्य राज्यों में इन्हें बहुसंख्यक का दर्ज़ा प्राप्त है । सबसे पहले M.P नें जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्ज़ा प्रदान किया था।
अनुच्छेद (30) – शिक्षा संस्थानों की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यकों वर्गों का अधिकार
इसके द्वारा अल्पसंख्यकों को अपने शिक्षण संस्थान स्थापित करने तथा उनका प्रबंधन करने की स्वतंत्रता प्रदान की गई है। 44 वें संविधान संसोधन अधिनियम 1978 के द्वारा यदि राज्य किसी अल्पसंख्यक आयोग की शिक्षा संस्था की संपति का अधिग्रहण करता है टो उस संस्था के लिए एक निश्चित मुआवाज़े की व्यवस्था करनी होगी , जिससे उनके अधिकार निर्बाधित या निराकृत नहीं होंगे।
अल्पसंख्यकों की शिक्षा संस्थाए तीन प्रकार की होती हैं –
- राज्य से आर्थिक सहायता और मान्यता लेने वाले संस्थान।
- ऐसे संस्थान जो राज्य से मान्यता लेते है किंतु उन्हें आर्थिक सहायता नहीं मिलती है।
- ऐसे संस्थान जो ना तो राज्य से मान्यता लेते है न ही सहायता।
प्रथम व द्वितीय प्रकार के संस्थानों में राज्य के अनुसार शिक्षा व्यवस्था , पाठयक्रम , शैक्षणिक मानक व सफाई व्यवस्था लागू करना आवयशक होगा। तृतीय प्रकार के संस्थान प्रशासनिक मामलो में स्वतन्त्र किन्तु सामान्य कानून से बंधे है ।
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