पारिस्थितिकी तंत्र की समस्या को मुख्यत: दो भागो में विभाजित किया जा सकता है |
- स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र की समस्या
- जलीय पारिस्थितिकी तंत्र की समस्या
स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र की समस्या
यह एक व्यापक अर्थ वाला शब्द है, जिसके अंतर्गत वृक्षों का कटान, पेड़ो का गिरना, मवेशियों का चरना आदि सम्मिलित है| जैसे –
- वन भूमि का कृषि भूमि में परिवर्तन
- झूम खेती
- वनों का चरागाहों में परिवर्तन
- जलावन लकड़ी की मांग
- औद्योगिक व व्यवसायिक लकड़ी की मांग
- वनों में आग लगना
- शहरीकरण तथा विकास परियोजना
- वनों में बीमारियाँ
- मरुस्थलीकरण में वृद्धि
मरुस्थलीकरण (Desertification) वर्तमान में विश्व पटल एक विकराल समस्या के रूप में उभरा है तथा प्राचीन काल में भी बहुत सी सभ्यताओं के विनाश के लिए सुखा व मरुस्थलीकरण प्रमुख कारण थे | मरुस्थलीकरण का प्रभाव समस्त पारिस्थितिकी तंत्र प्राणिजात, पर्यावरण , जलवायु तथा मृदा पर भी पड़ता है|
मरुस्थलीकरण (Desertification) रोकने के उपाय –
United Nation Convention to Combat Desertification (UNCCD) –
वर्ष 1992 में रियो सम्मेलन (Rio Conference) की अनुशंसा के आधार पर वर्ष 1994 में UNCCD का गठन किया गया, जो वास्तविक रूप में December- 1966 में अस्तित्व में आया| इसमें 194 देश सम्मिलित है, जो UNCCD के अंतर्गत सूखे की समस्या व मरुस्थलीकरण की समस्या के लिए कार्य करते है|
भारत के पास मरुस्थलीकरण की समस्या से निपटने हेतु राष्ट्रीय जल नीती – 2012 (National water policy) , राष्ट्रीय वन नीती – 1988 (National Forest Policy) जैसी कोई विशिष्ट नीती नहीं है किंतु सूखे व मरुस्थलीकरण की समस्या से निपटने हेतु भारत विभिन्न तरीकों से प्रयासरत है |
National Action Programme to Combat Desertification (NAP-CD) – वर्ष 1996 में सूखे व मरुस्थलीकरण की समस्या से निपटने हेतु भारत सरकार द्वारा National Action Programme to Combat Desertification (NAP-CD) बनाया गया, तथा इसे 2001 में UNCCD को सौंपा गया| NAP-CD के निम्न कार्य है जो निम्न नीतियों पर आधारित है –
- सूखा प्रबंधन की तैयारी
- सूखे से निपटने के लिए जनजागरूकता फैलाना
- स्थानीय समुदाय के जीवन स्तर में सुधार तथा विकास
UNCCD ने मरुस्थलीकरण से निपटने हेतु 2007 में एक 10 वर्षीय रणनीति को अपनाया गया जो 2008-2017 तक प्रभावी है| UNCCD के सदस्यों को प्रत्येक 2 वर्ष में मरुस्थलीकरण के समाधान हेतु किए गये कार्यों की रिपोर्ट सौंपनी होती है |
जलीय पारिस्थितिकी तंत्र की समस्या
सुपोषण (Eutrophication) – सुपोषण का अर्थ – अत्यधिक पोषण (Nutrition) से होता है, जब घरेलू अपशिष्ट, नाइट्रोजन (Nitrogen) व फास्फोरस (Phosphorus) की बहुलता वाले उर्वरक (Fertilizer) के अंश , भू-स्त्राव व औद्योगिक कचरा जब जल निकायों में मिलते, तो बड़ी तीव्रता से जल निकायों में पोषक तत्वों में वृद्धि होने लगती है जिससे जल निकायों वनस्पतियों तथा सूक्ष्मजीवों में वृद्धि होने लगती है तथा जल में ऑक्सीजन (O2) मांग बढ़ जाती है |
पोषक तत्वों की अधिकता के कारण शैवालों (Algae) में भी तीव्र वृद्धि हो जाती है, जिससे सूर्य का प्रकाश जलीय पौधों तक नहीं पहुँच पता तथा उनकी मृत्यु होने लगती है, इन पादपों के अपघटन की प्रक्रिया में जल में घुली हुई ऑक्सीजन की मात्रा कम होती है जिससे जलीय जीवों लिए भी संकट उत्पन्न होता है |
Water Bloom/Algal Bloom – जलीय निकायों में पादप प्लवकों और शैवालों (Algae) में बहुत अधिक व अचानक वृद्धि से पानी रंग परिवर्तित हो जाता है, जिसे Water Bloom या Algal Bloom कहते है |
सुपोषण के स्रोत (Source of Eutrophication)
सुपोषण के प्रभाव (Impact of Eutrophication)