मानसून की उत्पत्ति का विषुवतीय पछुआ पवन सिद्धांत

मानसून की उत्पत्ति के विषुवतीय पछुआ पवन सिद्धांत (equatorial westward wind theory) का प्रतिपादन फ्लोन (Flon) द्वारा किया गया है। इस सिद्धांत के अनुसार, विषुवतीय पछुआ पवन को ही दक्षिण-पश्चिम मानसूनी पवन भी कहा जाता है। जिसकी उत्पत्ति अंत: ऊष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (Inter tropical Convergence Zone – ITCZ) के द्वारा होती है।
फ्लोन के अनुसार मानसून की उत्पत्ति का प्रमुख कारण तापीय प्रभाव (thermal effects) है।
ग्रीष्म ऋतु में तापीय विषुवत रेखा के उत्तरी दिशा में खिसकने के कारण अंत: उष्ण अभिसरण क्षेत्र  (Inter tropical Convergence Zone – ITCZ) विषुवत रेखा के उत्तर दिशा में होता है। विषुवतीय पछुआ पवनें (equatorial westward winds) अपनी दिशा परिवर्तित कर भारतीय उपमहाद्वीप पर निर्मित निम्न दाब की ओर प्रवाहित होने लगती हैं, जिसके कारण दक्षिण-पश्चिम मानसून की उत्पत्ति होती हैं।
शीत ऋतु में सूर्य के दक्षिणायन होने पर निम्न दाब क्षेत्र उच्च दाब क्षेत्र में परिवर्तित हो  जाता है, जिसके कारण उत्तर-पूर्वी व्यापारिक पवनें (north-east trade winds) पुनः गतिशील हो जाती हैं।


अन्त: उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र  (Inter tropical Convergence Zone – ITCZ)

अन्त: उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (Inter tropical Convergence Zone – ITCZ) एक निम्न दाबीय पट्टी है, जो पृथ्वी के चारों ओर सामान्यतः विषुवत रेखा के ऊपर चारों ओर स्थित है। वस्तुतः यह एक दोलायमान (swinging) पट्टी है। ITCZ वह क्षेत्र है, जहाँ उत्तर-पूर्वी एवं दक्षिण-पूर्वी व्यापारिक पवनें मिलती हैं। दोनों पवनों के मिलने से विषुवतीय पछुवा पवनों की उत्पत्ति होती है।

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