रजिया की मृत्यु (1240 ईस्वी में) से लेकर नायब के रूप में बलबन के उत्थान के मध्य का काल तुर्क अमीरों और सुल्तान के मध्य सतत संघर्ष का काल रहा| इस काल में अमीर इस बात से सहमत थे कि दिल्ली के सिंहासन पर इल्तुतमिश के ही किसी वंशज को शासक बनाया जाएं किंतु समस्त शक्ति और अधिकार उनके पास ही रहे |
रजिया के भटिंडा में कैद होते ही तुर्की अमीरों ने इल्तुतमिश के तीसरे पुत्र बहरामशाह को शासक बनाया तथा शासक बनने के बाद बहराम शाह ने नाइब-ए -मामलिकात (संरक्षक) का नवीन पद सृजित किया| यह पद एक संरक्षक के समान था सर्वप्रथम इसके लिए एतगीन को चुना गया|
बहराम शाह को इस शर्त पर शासक बनाया गया कि वह शासन का संपूर्ण अधिकार नाइब (नाइब-ए -मामलिकात) को सौंप दे और एतगीन को अपना नाइब स्वीकार करे तथा वजीर का पद मुहाजबुद्दीन के पास ही रहा| इस प्रकार दिल्ली सल्तनत में वास्तविक शक्ति और सत्ता के 3 दावेदार थे –
- सुल्तान
- नाइब-ए -मामलिकात
- वजीर।
शासक बनने के 2 माह पश्चात् ही मुइजुद्दीन बहरामशाह ने यह सिद्ध कर दिया कि तुर्की अमीरों ने उसे पूर्णतया असहाय समझ कर भूल की थी|
एतगीन ने नायब बनने के पश्चात शासन की बागडोर अपने हाथ में ले ली , तथा अपनी स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए उसने इल्तुतमिश की तलाकशुदा पुत्री (बहरामशाह की बहन) से विवाह कर लिया और अपने दरबार में नौबत और हाथी रखना प्रारंभ कर दिया , यद्यपि यह विशेषाधिकार केवल सुल्तान के पास थे| एतगीन की बढ़ती हुई महत्वाकांक्षाओं से बहरामशाह आशंकित हो गया कि 2 माह के भीतर ही उसकी हत्या करवा दी तथा नायब के सभी अधिकारों को अपने हाथ में ले लिया था|
मंगोल आक्रमण व मृत्यु
बहरामशाह के शासनकाल में 1241 ई. में मंगोलों ने तायर के नेतृत्व में भारत पर आक्रमण किया| सुल्तान ने वजीर मुहज्बुद्दीन को अन्य अमीरों के साथ मंगोलों के आक्रमण के विरुद्ध युद्ध करने के लिए भेजा| मुहज्बुद्दीन ने इस अवसर का लाभ उठाकर तुर्क अमीरों को सुल्तान के विरुद्ध भड़काने के लिए षड्यंत्र रचा| इस संबंध में सुल्तान को पत्र लिखकर इस आशय का फरमान प्राप्त कर लिया, जिसमें सुल्तान ने तुर्क अमीरों की हत्या करने को कहा था जो स्वामी भक्त नहीं थे| मुहज्बुद्दीन अपने इस षड्यंत्र में सफल रहा ,तुर्की सरदारों ने विद्रोह कर दिया और सुल्तान को सिन्हासन से हटाने के लिए दिल्ली पर आक्रमण करने के लिए बढे | बहरामशाह के वफादार गुलामों और दिल्ली के नागरिकों ने विद्रोही सेना का सामना किया किया किन्तु पराजित हुए बहरामशाह को बंदी बना लिया गया और मई 1242 ईस्वी में उसकी हत्या कर दी गयी| इसके बाद रुकनुद्दीन फिरोज शाह के पुत्र अलाउद्दीन मसूद शाह को सुल्तान बनाया गया