नासिरुद्दीन महमूद, इल्तुतमिश का पौत्र और शम्शी वंश का अंतिम शासक था| नासिरुद्दीन धार्मिक स्वभाव का था वह खाली समय में कुरान की नकल करता था 27 मई 1246 ई. को हरे राज महल (कैसरे-सन्ज) में नासिरुद्दीन महमूद का सिंहासनारूढ़ हुआ, 2 दिन पश्चात वह केसरे-फिरोज नामक शाही महल में दरबार में उपस्थित हुआ और जनता ने उसके प्रति निष्ठा प्रकट की|
बलबन का उत्कर्ष
शासक बनने के पश्चात नासिरुद्दीन महमूद ने अपनी सारी शक्ति चालीसा के दल के नेता बलबन के हाथों में सौंप दी, अपनी स्थिति को और अधिक सुदृढ़ करने के लिए 1249 ई. में बलबन ने अपनी पुत्री का विवाह नासिरुद्दीन महमूद से किया| इसी समय उसे “नाइब- ए-ममलिकात” का पद देकर कानूनी रूप से शासन के संपूर्ण अधिकार सौंप दिए गए तथा बलबन को उलूग खां की उपाधि प्रदान की|
इमामुद्दीन रेहान के षडयंत्र स्वरुप बलबन को नायब-ए-मामलिकत पद छोड़ना पड़ा तथा उसका शासन पर अधिकार हो गया| इमामुद्दीन रेहान 1252 से 1253 के बीच सल्तनत का नायब रहा|
नायब के रूप में बलबन का कार्य
पुन:नायब का पद प्राप्त करने के बाद बलबन का प्रमुख कार्य अपनी स्थिति को सुदृढ़ करना था इसके लिए उसने 3 सूत्री नीति अपनाई
- विरोधी तुर्क अमीरों का दमन (इमामुद्दीन रेहान, कुतलुग खां और किश्लू खां)
- मंगोलों के आक्रमण से रक्षा
- हिंदू राजाओं की शक्ति का रोकना
प्रमुख विजय व विद्रोह का दमन
- बंगाल विद्रोह का दमन
- बुंदेलखंड और बघेलखंड – बुंदेलखंड में चंदेल शासक त्रैलोक्य वर्मा ,वीर वर्मा और हम्मीर वर्मा का शासन था
- मालवा – शासक चाहरदेव था
- राजपूताना – गुहिल वंश के शासक
- मेवातीयों का दमन – मेवाती ,मेवात क्षेत्र के भट्टी राजपूत थे|
- दोआब और कटेहर के विद्रोह का दमन
मृत्यु
नसिरुद्दीन की 12 फरवरी 1266 ई. को मृत्यु हो गई।
Note :
* इतिहासकार मिनहाज उद्दीन सिराज द्वारा रचित रचना “तबकात -ए -नासिरी” नासिरुद्दीन को ही समर्पित है |
* नासिरुद्दीन महमूद के काल में मिनहाज उद्दीन सिराज मुख्य काजी के पद पर नियुक्त था तथा नासिरुद्दीन महमूद नाम मात्र का शासक था|