भारत का उत्तरी मैदान

भारत के उत्तरी मैदान का निर्माण सिंधु , गंगा एवं इनकी सहायक नदियों के द्वारा हुआ है। यह मैदान जलोढ़ मृदा से बना है। लाखों वर्षों में हिमालय के गिरिपाद में स्थित बहुत बड़े बेसिन (द्रोणी) में ( जलोढ़ों नदियों द्वारा लाई गई मृदा ) का निक्षेप हुआ, जिससे इस उपजाऊ मैदान का निर्माण हुआ है। इसका विस्तार 7 लाख वर्ग sq Km के क्षेत्र पर है। यह मैदान लगभग 2400 Km लंबा एवं 240-320 Km चौड़ा है। यह सघन जनसंख्या वाला भौगोलिक क्षेत्र है। भारत का विशाल मैदान विश्व के सबसे अधिक उपजाऊ व घनी आबादी वाले भू-भागों में से एक है। उत्तरी पर्वतों से आने वाली नदियाँ निक्षेपण कार्य में लगी हैं। नदी के निचले भागों में ढाल कम होने के कारण नदी की गति कम हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप नदीय द्वीपों का निर्माण होता है। ये नदियाँ अपने निचले भाग में गाद एकत्रा हो जाने के कारण बहुत-सी धाराओं में बँट जाती हैं। इन धाराओं को वितरिकाएँ कहा जाता है।
उत्तरी मैदान को मोटे तौर पर तीन उपवर्गों में विभाजित किया गया है।

  • पंजाब (सिंधु) का मैदान
  • गंगा का मैदान
  • ब्रह्मपुत्र का मैदान

पंजाब का मैदान(Punjab Plain) –

उत्तरी मैदान के पश्चिमी भाग को पंजाब (सिंधु) का मैदान कहा जाता है। सिंधु तथा इसकी सहायक नदियों के द्वारा बनाये गए इस मैदान का बहुत बड़ा भाग पाकिस्तान में स्थित है। सिंधु तथा इसकी सहायक नदियाँ झेलम, चेनाब, रावी, ब्यास तथा सतलुज हिमालय से निकलती हैं। मैदान के इस भाग में दोआबों की संख्या बहुत अधिक है।

गंगा का मैदान (Ganga Plain) –

गंगा के मैदान का विस्तार घघ्घर तथा तिस्ता नदियों के बीच है। यह उत्तरी भारत के राज्यों हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड के कुछ  भाग तथा पश्चिम बंगाल में विस्तृत है।

ब्रह्मपुत्र का मैदान (Brahmputra Plain) –

इसके पश्चिम विशेषकर असम में स्थित है। उत्तरी मैदानों की व्याख्या सामान्यतः इसके उच्चावचों में बिना किसी विविधता वाले समतल स्थल के रूप में की जाती है।
इन विस्तृत मैदानों की भौगोलिक आकृतियों में भी विविधता है। मिट्टी की विशेषता और ढाल के आधार पर उत्तरी मैदानों को चार भागों में विभाजित किया जा सकता है।

  • भाबर प्रदेश (Bhabar Plain)
  • तराई प्रदेश (Tarai Plain)
  • बाँगर प्रदेश (Bangar Plain)
  • खादर प्रदेश (Khadar Plain)

भाबर प्रदेश (Bhabar Plain)

हिमालयी नदियाँ पर्वतों से नीचे उतरते समय शिवालिक की ढाल पर 8-16 Km के चौड़ी पट्टी में गुटिका ( पत्थरों-कंकड़ों )  का निक्षेपण करती हैं। इसे ‘भाबर’ के नाम से जाना जाता है। सभी सरिताएँ इस भाबर पट्टी में विलुप्त हो जाती हैं।

तराई प्रदेश (Tarai Plain)

भाबर पट्टी में विलुप्त सरिताएँ  इस पट्टी के दक्षिण में ये सरिताएँ ( नदियाँ ) पुनः निकल आती हैं, एवं नम तथा दलदली क्षेत्रा का निर्माण करती हैं जिसे ‘तराई’ कहा जाता है। यह वन्य प्राणियों से भरा घने जंगलों का क्षेत्रा था। बँटवारे वेफ बाद पाकिस्तान से आए शरणार्थियों को कृषि योग्य भूमि उपलब्ध कराने के लिए इस जंगल को काटा जा चुका है।  यह निम्न समतल मैदान है, जहाँ नदियों का पानी इधर-उधर दलदली क्षेत्रों का निर्माण करता है।

बाँगर प्रदेश (Bangar Plain)

उत्तरी मैदान का सबसे विशालतम भाग पुराने जलोढ़ का बना है। यह नदियों द्वारा लाई गयी पुरानी जलोढ़ मिट्टी से निर्मित होता है। इस क्षेत्र की मृदा में चूनेदार निक्षेप पाए जाते हैंए जिसे स्थानीय भाषा में ‘कंकड़’ कहा जाता है, जो कैल्शियम से बने होते हैं।

खादर प्रदेश (Khadar Plain)

यह प्रत्यके वर्ष नदियों द्वारा लाई मिट्टी से निर्मित होता है, इसलिए ये उपजाऊ होते हैं तथा इस मृदा की उर्वरा शक्ति सबसे ज्यादा होती है। बाढ़ वाले मैदानों  के नये तथा युवा निक्षेपों को ‘खादर’ कहा जाता है ।
Part 1 – हिमालय पर्वत का भौतिक विभाजन (Physical division of Himalayas)
Part 3 – भारत के प्रमुख पठार (Main Pleatues of India)

3 Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published.

Latest from Blog

UKSSSC Forest SI Exam Answer Key: 11 June 2023

उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा आयोग (Uttarakhand Public Service Commission) द्वारा 11 June 2023 को UKPSC Forest SI Exam परीक्षा का आयोजन…