- प्रसिद्ध पाश्चात्य विद्वान ग्रियर्सन के अनुसार किरात गढ़वाल एवं कुमाऊं के आदि निवासी थे।
- प्राचीन ग्रंथो में गंगा, माता दुर्गा एवं पार्वती को भी किराती नाम से संबोधित किया गया है।
- पर्वतीय क्षेत्रों में गंगा को घाटियों के निवासी किरात वंशीय कहलाते थे।
- चौथी सदी ई.पू. में यूनानी राजदूत मेगस्थनीज ने अपनी रचना में इस क्षेत्र में किरात जाति का वर्णन किया है।
- कालिदास के रघुवंश, मत्स्य पुराण, मार्कण्डेय पुराणों, वन पर्व एवं भीष्म पर्व में भी किरातों का वर्णन किया है।
- बाणभट्ट के कादम्बरी महाकाव्य में भी किरात जाति का वर्णन है।
- वाराहमिहिर द्वारा लिखित के वाराही संहिता में भी किरात जाति का वर्णन मिलता है।
- रामचन्द्रजी के कुलगुरू वशिष्ठ जी ने किरात भूमि हिमदास हिंदाब (टिहरी गढ़वाल) इस क्षेत्र को शिव धाम बताया है।
- सप्तसिंधु के अनुसार तो किरात भी आर्य जाति के ही थे।
- वर्तमान समय में उत्तराखण्ड में हरिजन, शिल्पकार, डोम, नाग से जाना जाता है वे किरातों के ही वंशज है।
- आर्यों ने किरातों कों शुद्र व अर्द्धशुद्रा की संज्ञा दी, किरात जाति पशुचारक व आखटेक जाति थी।
डा० शिवप्रसाद डबराल के अनुसार कोल मुंड जाति उत्तराखण्ड के आदि निवासी है। उत्तराखण्ड के आदि जाति के अंतर्गत तीन जाति थी –
- खस
- किरात
- शक