भारतीय संविधान के भाग – 5 के अंतर्गत अनु० – 79-122 तक संसद का गठन , संरचना , अवधि , अधिकारियों , प्रक्रिया व विशेषाधिकार का वर्णन किया गया है। संसद भारत का सर्वोच्च विधायी सदन है , जिसमें द्विसदनीय व्यवस्था है। जो निम्न है —
- लोकसभा (निचला सदन)
- राज्यसभा (उच्च सदन)
संसद का गठन
भारतीय संसद के तीन प्रमुख अंग है जो निम्न है —
- लोकसभा
- राज्यसभा
- राष्ट्रपति
राष्ट्रपति प्रत्येक आम चुनाव के बाद लोकसभा का प्रथम सत्र व प्रत्येक वर्ष (लोकसभा व राज्यसभा में) प्रथम सत्र को संबोधित करता है। भारतीय संविधान ब्रिटेन के संविधान की पद्धति पर आधारित है।
संसद की संरचना (Structure of parliament)
राज्यसभा (Rajyasabha)
राज्यसभा में सीटों की अधिकतम संख्या 250 निर्धारित की गई है , इनमे से 238 सदस्य आनुपातिक रूप से निर्वाचित होंगे और 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा कला , साहित्य , खेल आदि क्षेत्रों से निर्वाचित किया जायेंगा।
Note: अनुसूची 4 में राज्यसभा की सीटों के आवंटन का वर्णन किया गया है।
राज्यों का प्रतिनिधित्व
राज्यसभा के प्रतिनिधियों का निर्वाचन राज्य विधानसभा के सदस्यों द्वारा आनुपातिक निर्वाचन प्रणाली के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होता है। राज्यसभा में प्रत्येक राज्य के लिए सीटों का आवंटन उनकी जनसँख्या के आधार पर होता है। जैसे — उत्तर प्रदेश (UP) में 31 व त्रिपुरा (Tripura) में 1 राज्यसभा सीटें है , जबकि अमेरिका (America) में सीनेट (उच्च सदन) में प्रत्येक राज्यों का समान प्रतिनिधित्व है।
संघ या राज्य क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व
केंद्र शासित प्रदेशों में राज्यसभा के निर्वाचन के लिए प्रतिनिधि का चयन निर्वाचिक मंडल द्वारा आनुपातिक पद्धति के आधार पर होता है। केन्द्रशासित प्रदेशों में केवल दिल्ली (Delhi) व पुडुचेरी (Puducheri) का प्रतिनिधित्व राज्यसभा में है अन्य केंद्र शासित प्रदेशों की जनसँख्या कम होने के कारण उनका राज्य सभा में प्रतिनिधित्व नहीं है।
नामांकित सदस्य (Nominated member)
12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा कला , साहित्य , खेल आदि क्षेत्रों से निर्वाचित किया जाता है।
लोकसभा (Loksabha)
लोकसभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 552 निर्धारित की गयी है। जिनका निर्वाचन जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से किया जाता है , जिसमे 530 सदस्य राज्यों के प्रतिनिधि और 20 केंद्र शासित प्रदेशों के प्रतिनिधि और दो व्यक्तियों को राष्ट्रपति द्वारा आंग्ल – भारतीय समुदाय से नामांकित किया जाता है।
राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों प्रतिनिधित्व
इनका निर्वाचन जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से किया जाता है। 61 वें संविधान संसोधन अधिनियम द्वारा मत देने की आयु सीमा को 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दिया गया था।
नामांकित सदस्य (Nominated member)
यदि आंग्ल – भारतीय समुदाय का लोकसभा में समान प्रतिनिधित्व न हो तो राष्ट्रपति इस समुदाय के 2 लोगो को मनोनीत कर सकता है , शुरुआत में यह प्रावधान केवल 1960 तक था किंतु 95 वें संविधान संसोधन अधिनियम 2009 द्वारा इसकी अवधि को 2020 तक बढ़ा दिया गया है। इसके समान ही यह अनुसूचित जाति व जनजाति पर भी लागू होता है।
सदनों की अवधि
राज्यसभा
राज्यसभा की स्थापना 1952 में की गई यह लगातार चलने वाली संस्था है अर्थात इसका विघटन नहीं हो सकता। राज्यसभा के सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है किंतु इसके सदस्य प्रत्येक दो वर्ष के अन्तराल में पुन: निर्वाचित होते है।
लोकसभा
लोकसभा निरंतर चलने वाली संस्था नहीं है प्रत्येक आम चुनाव के 5 वर्षो बाद इसका विघटन हो जाता है किंतु राष्ट्रपति द्वारा इसे 5 वर्ष से पहले भी विघटित किया जा सकता है। आपात की स्थिति में लोकसभा की अवधि 1 वर्ष तक बढ़ायी जा सकती है किंतु आपात ख़तम होने के बाद किसी भी दशा में इसकी अवधि 6 माह से अधिक नहीं हो सकती।
संसद के सदस्यों की योग्यता
- भारत का नागरिक होना चाहिए।
- लोकसभा के लिए न्यूनतम 25 वर्ष और राज्यसभा के लिए न्यूनतम 30 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका हो।
- चुनाव आयोग द्वारा अधिकृत अधिकारी के समक्ष शपथ लेना अनिवार्य है।
- भारत के संविधान के प्रति सच्ची आस्था व निष्ठा रखूँगा।
- भारत की संप्रभुता व अखंडता की रक्षा करूँगा।
- जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के अनुसार भारत का पंजीकृत मतदाता होना चाहिए।
पदों की रिक्ततता की स्थिति
दोहरी सदस्यता (लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम – 1951)
- यदि कोई व्यक्ति संसद के दोनों सदनों में निर्वाचित हो जाए तो उसे 10 दिनों के अंदर यह सूचना देनी होगी की उसे किस सदन में रहना है , ऐसा न करने पर उसकी राज्य सभा सदस्यता समाप्त हो जाएगी।
- यदि किसी सदन का सदस्य दूसरे सदन का भी सदस्य निर्वाचित हो जाता है तो उसके पहले सदन की सदस्यता समाप्त हो जाएगी ।
- यदि कोई व्यक्ति एक ही सदन में दो सीटो पर निर्वाचित हो जाता है तो उसे स्वेच्छा से एक सीट का त्याग करना होगा अन्यथा उसकी दोनों सीट समाप्त हो जाएँगी ।
- राज्य विधानमंडल या संसद दोनों में निर्वाचित होने पर व्यक्ति को 14 दिनों के भीतर राज्य विधानमंडल की सदस्यता से त्यागपत्र देना होगा अन्यथा उसकी संसद सदस्यता समाप्त हो जाएगी।
अनुपस्थिति की आधार पर
यदि कोई सदस्य 60 दिनों से अधिक समय की अवधि के लिए संसद की सभी बैठकों में अनुपस्थित रहता है तो उसक पद रिक्त हो जाएगा। 60 दिनों की अवधि की गणना में सदन के स्थगन या सत्रावसान की लगातार 4 दिनों से अधिक की अवधि को शामिल नहीं किया जाता।
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