उपाधि – अल-इमाम-उल-इमाम, खलाफत-उल-लाह, व अलवासिक बिल्लाह , ख़लीफ़ा
राज्याभिषेक – अप्रैल 1316 ई.
मलिक काफ़ूर की हत्या के बाद अमीरों ने मुबारक खां को सुल्तान शिहाबुद्दीन उमर का संरक्षक नियुक्त किया, किन्तु कुछ समय बाद शिहाबुद्दीन उमर को अंधा करवा कर ग्वालियर दुर्ग में कैद कर दिया और कुतुबुद्दीन मुबारक शाह की उपाधि धारण कर गद्दी पर बैठा|
प्रारंभिक कार्य –
अपने पिता के विपरीत मुबारक शाह ख़िलजी ने उदारता की नीति का अनुपालन किया| जिसके अंतर्गत उसने निम्नलिखित कार्य किये –
- राजनीतिक बंदियों को रिहा कर दिया।
- अपने सैनिकों को छः माह का अग्रिम वेतन देना प्रारम्भ किया।
- जिन सरदारों व अन्य व्यक्तियों को उनकी भूमि से उन्मूलित किया गया था उनकी जागीरें उन्हें वापस कर दीं|
- अलाउद्दीन ख़िलजी द्वारा स्थापित कठोर दण्ड व्यवस्था एवं ‘बाज़ार नियंत्रण प्रणाली’ आदि को समाप्त कर दिया|
प्रमुख विजय
देवगिरि पुनर्विजय – यहाँ का शासक हरपाल देव पराजित होकर राजधानी छोड़कर भाग गया|
वारंगल – यहाँ का शासक प्रतापरुद्र देव था, पराजित होकर संधि को तैयार हो गया |
मृत्यु
खुसरो खां के सैनिकों (बरादुओं) ने अचानक महल पर आक्रमण कर दिया, जिसमें जहारिया नमक व्यक्ति ने मुबारक शाह खिलजी की हत्या कर दी और इसी के साथ खिलजी वंश का अंत हो गया|
Note :
मुबारक शाह खिलजी दिल्ली सल्तनत का प्रथम शासक था, जिसने स्वयं को खलीफा घोषित किया|