उत्तराखंड के इतिहास के स्रोत (Sources of Uttarakhand History)

इतिहास के अध्ययन की दृष्टि से उत्तराखंड के इतिहास को 3 भागों में बांटा गया है-

  1. पुरातात्विक स्रोत (Archaeological Sources)
  2. साहित्यिक स्रोत (Literature Source)
  3. विदेशी यात्रियों के विवरण

पुरातात्विक स्रोत (Archaeological sources) 

किसी भू-भाग में मानव गतिविधियों व उनकी संस्कृति को जानने हेतु पुरातात्विक स्रोत ही मुख्य साक्ष्य हैं। अध्ययन की दृष्टि से इन्हें 3 भागों में विभक्त किया गया है।

  1. प्राक् ऐतिहासिक स्रोत (Pre-historic sources)
  2. आद्य  ऐतिहासिक स्रोत (Proto historical sources)
  3. ऐतिहासिक स्रोत (Historical sources)

प्राक् ऐतिहासिक स्रोत (Pre-historic sources)

  • इस काल में मानव ने पशुओं से भिन्न होकर चलना, छोटे-छोटे समूह समूह में रहना, भाव व्यक्त करना आदि कारकों से सामजिक होते जा रहा था।
  • इस काल में मानव पशुचारक और कृषक की श्रेणी में पहुँच  चुका था।
  • इस काल के साक्ष्य हमें अधिकांश नदी किनारे,घाटियों व गुफाओं से प्राप्त होते है।

शैल चित्र (Rock painting)

लाखु गुफा / लाखु गुहा / लाखु उड्यार
वर्ष 1963 में MP Joshi  द्वारा सुयाल नदी के तट पर लाखु उड्यार (Laakhu cave) की खोज की गयी थी।
आकार: यह एक नागफनी आकार का भव्य शिलाश्रय है, जो अल्मोड़ा–पिथोरागढ़ मार्ग पर अल्मोड़ा से 16 कि.मी. दूरी पर स्थित है।
स्थिती- यह गुफा अल्मोड़ा के बाड़ेछीना के पाल दलबैड़ पर स्थित है।
यहाँ से मानव, पशु-पक्षियों के चित्र प्राप्त हुए हैं, जिसमे मुख्यतः सफ़ेद, गेरू, गुलाबी, व काले रंगों का प्रयोग किया गया है।
इस गुफा में मानव आकृतियों को समूह या अकेले में नृत्य करता दर्शाया गया है।
फड़कानौली
इसकी खोज वर्ष 1985 में यशोधर मठपाल (Yashodhar Mathpal) ने की थी।
यह लाखु उड्यार से आधा KM पहले स्थित है, जिससे तीन गुफाएं हैं।

  1. 40 मानव आकृतियाँ, आकृतियों के 20 सयोंजन, नर्तक टोलिया आदि को दर्शाया गया है।
  2. इसमें 10 हस्तबद्ध नर्तक तथा पुष्प को दर्शाया गया है।
  3. इसमें से लाल रंग से लिखे लेख प्राप्त हुए हैं, जो शंखलिपि में लिखे गए हैं।

पेटशाल
खोज- 1989 (यशोधर मठपाल)

  • यह लाखु उड्यार से 2 Km की दूरी पर स्थित है।
  • अल्मोड़ा में पेटशालपूनाकोट गाँव के मध्य में स्थित कफ्फर्कोट से प्राप्त शैलचित्रों में नृत्य करते हुए मानवों को दर्शाया गया है।

ल्वेथाप 

अल्मोड़ा के ल्वेथाप से प्राप्त शैलचित्रों से मानव को हाथ डालकर नृत्य करते तथा शिकार करते हुए दर्शाया गया है| यहाँ से लाल रंग में निर्मित चित्र प्राप्त हुए हैं।

फलसीमा-

अल्मोड़ा के फलसीमा से प्राप्त शैलचित्रों में मानव को योग व् नृत्य करते हुए दर्शाया है।

हटवाल घोडा 
अल्मोड़ा से 18 कि.मी. की दूरी पर स्थित हटवाल घोड़ा नामक स्थान से सींगों का मुखौटा पहना मानव, वृषभ, आदि शैलचित्र भी प्राप्त हुए हैं।
Note-

  • इसके अतिरिक्त अल्मोड़ा जनपद के कालामाटीमल्ला पैनाली में भी शिलाश्रय मिले हैं।
  • अल्मोड़ा जनपद में मिले सभी शिलाश्रय, कालामाटी-डीनापानी पर्वत श्रंखला की पूर्व दिशा से प्राप्त हुए हैं।

बनकोट

पिथौरागढ़ के बनकोट से 8 ताम्र मानव आकृतियाँ प्राप्त हुयी हैं। (आद्य  ऐतिहासिक)

ग्वारख्या गुफा (चमोली)

  • यह चमोली में अलकनंदा नदी के किनारे डूंगरी गाँव के पास स्थित ग्वारख्या उड्यार से मानव, भेड़, बारहसिंगा आदि के रंगीन चित्र प्राप्त हए हैं।
  • यहाँ पीले रंग की धारीदार चट्टान पर गुलाबीलाल रंग से चित्र अंकित किये गए हैं।
  • यहाँ से प्राप्त शैलचित्र, लाखु गुफा के शैल चित्रों से अधिक चटकदार हैं।
  • यहाँ से प्राप्त शिलाश्र्यओं में लगभग 41 आकृतियां प्राप्त हुई, जिनमे 30 मानवों की 8 पशुओं की तथा 3 पुरुषों की है (यशोधर मठपाल के अनुसार)।

किमनी गाँव

चमोली में थराली के निकट स्थित किमनी गाँव की गुफाओं से सफ़ेद रंग के चित्रित हथियार व पशुओं के शैलचित्र मिले हैं।

मलारी गाँव- 

  • वर्ष 2002 में चमोली तिब्बत के निकट स्थित मलारी गाँव से हजारों वर्ष पुराने नर कंकाल, मिट्टी के बर्तन, जानवरों के अंग, 5.2 kg का सोने का मुखावरण प्राप्त हुआ है।
  • वर्ष 2002 में गढ़वाल विश्वविद्यालय के द्वारा इस पुरातात्विक स्थल की खुदाई कराई गयी।

डा.शिव प्रसाद डबराल द्वारा इस क्षेत्र में शवाधान के साक्ष्य भी प्राप्त हुए हैं (आद्य ऐतिहासिक)।
Note: यहाँ से प्राप्त बर्तन पाकिस्तान की स्वात घाटी के शिल्प के सामान है।
हुडली (Hudli) 

  • उत्तरकाशी के हुडली से प्राप्त शैलचित्रों में नीले रंग का प्रयोग किया गया था।

साहित्यिक स्रोत (Literature Source)

आद्य ऐतिहासिक काल की जानकारी के लिए साहित्यिक स्रोत भी प्रमुख प्रमाण है जिन्हें दो भागों में विभाजित किया गया है

  1. धार्मिक स्रोत
  2. अधार्मिक स्रोत

धार्मिक स्रोत

वैदिक साहित्य 
ऋग्वेद के अनुसार मध्य हिमालय में कुरुवंश के राजा त्रित्सु का शासक था, जिसके अंतर्गत कुमाऊंगढ़वाल सम्मिलित थे। ऋग्वेद में उत्तराखंड के लिए उशीनगर नाम का प्रयोग किया गया है।

उशीनगर – ऋग्वैदिक काल में यमुना से काली नदी तक के क्षेत्र को उशीनगर कहा जाता था।

उत्तराखंड का प्रथम उल्लेख हमें ऋग्वेद से प्राप्त होता है, जिसमें इस क्षेत्र को देवभूमिमनीषियों की पूर्ण भूमि कहा गया है।

  • बौद्ध साहित्य में उत्तराखंड के लिए उशीनगर नाम का प्रयोग किया गया है।

वेदों के अतिरिक्त उत्तराखंड का उल्लेख उपनिषदों, ब्राह्मण ग्रंथो, पुराणों, रामायण, महाभारत आदि धार्मिक ग्रंथों में भी किया गया है। इन धार्मिक ग्रंथों में उत्तराखंड को पूर्ण भूमि, ऋषि भूमि तथा पवित्र भूमि आदि नामों से संबोधित किया गया है।

भागवत पुराण में गौला नदी को पुण्यभद्रा कहा गया है।

ऐतरेय ब्राह्मण में उत्तराखंड में उत्तर-कुरुओं का निवास होने के कारण क्षेत्र के लिए उत्तर-कुरु शब्द का प्रयोग किया गया है।
स्कंद पुराण में 5 हिमालयी खंडो (नेपाल, मानसखंड, केदारखंड, जालंधर एवं कश्मीर) का उल्लेख मिलता है। जिसमें से दो हिमालय खंड मानसखंडकेदारखंड वर्तमान उत्तराखंड से संबंधित है।

  • माया क्षेत्र (हरिद्वार) से नंदादेवी पर्वत तक के विस्तृत क्षेत्र को केदारखंड (गढ़वाल) तथा नंदा देवी पर्वत से काली नदी तक के क्षेत्र को मानसखंड (कुमाऊं) कहा गया है।
  • पुराणों में मानसखंडकेदारखंड के संयुक्त क्षेत्र को उत्तराखंड, ब्रह्मपुर, खसदेश आदि नामों से संबोधित किया गया है।

अधार्मिक स्रोत

  • पाणिनि की अष्टाध्यायी पुस्तक
  • कालिदास की रचनाएं (दो)
  • राजशेखर द्वारा लिखित काव्यमीमांसा
  • विशाखादत्त द्वारा रचित देवीचंद्रगुप्तम
  • बाणभट्ट द्वारा रचित हर्षचरित्रम

चंद्र शासकों का इतिहास 

  • कल्याणों चंद्रम व स्मृति कौस्तुम

पवार शासकों का इतिहास 

  • मनोदय काव्य, रामायण प्रदीप, गढ़राज इतिहास (मौलाराम), मणिका नाटक आदि।

विदेशी यात्रियों के विवरण:-

हर्षवर्धन के शासनकाल में चीनी यात्री ह्वेनसांग ने हरिद्वार की यात्रा की, तथा इस क्षेत्र को मो-यू-लो तथा इसकी माप 20 ली बताई थी।

  • ह्वेनसांग ने इस राज्य को पो-लि-हि-मो-यू-लो कहा, जिसकी पहचान ब्रह्मपुर (वर्तमान उत्तराखंड) के रूप में की गई।

वर्ष 1398 में तैमूर लंग ने (हरिद्वार) भारत पर आक्रमण के समय उसका इतिहासकार मरुद्दीन भी (हरिद्वार) भारत आया। इसने हरिद्वार को कुपिला या कयोपिल नाम से संबोधित किया था।
अबुल फजल द्वारा लिखित पुस्तक “आईने अकबरी” में इस बात का उल्लेख है, कि मुगल शासक अकबर के रसोईघर में गंगाजल प्रयुक्त होता था।
जहांगीर के शासनकाल में यात्री टॉम कोरियट हरिद्वार की यात्रा पर आया था, इसने हरिद्वार को शिव की राजधानी कहा था।

उत्तराखंड के इतिहास के अन्य स्रोत

जौनसार भाबर के लाखामंडल से राजकुमारी ईश्वरा का एक लेख मिला है जो प्रमाणित करता है कि यमुना क्षेत्र में यादवों ने अपनी सत्ता स्थापित की थी|
कालसी के निकट कुणिंद वंश के राजा शीलवर्मन ने 4 अश्वमेध किए थे जिनमे 3 यज्ञ वेदिकाओं के अवशेष मिले हैं, इनके निर्माण में पक्की ईंटों का प्रयोग किया गया था।

  • इन ईंटों पर शीलवर्मन “ब्राह्मी लिपि” संस्कृत भाषा में उत्कीर्णित अभिलेख भी मिला है।

पुरोला (उत्तरकाशी) में भी अश्वमेध यज्ञ के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
बामन गुफा (देवप्रयाग), कल्पनाथ गुफा (चमोली) से गुफा लेख प्राप्त होते हैं|
गोपेश्वर के रुद्र शिव मंदिर में एक त्रिशूल लेख लिखा है जिस पर नागवंशी राजा गणपति का नाम एवं अशोक चल्ल के अभिलेख मिलते हैं |

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