लोकसभा (Loksabha)
लोकसभा अध्यक्ष का निर्वाचन
लोकसभा में प्रत्येक आम चुनाव की प्रथम बैठक के पश्चात् उपस्थित सदस्यों के मध्य से अध्यक्ष पद का चुनाव किया जाता है। लोकसभा में अध्यक्ष पद के चुनाव की तिथि राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित की जाति है। लोकसभा अध्यक्ष का कार्यकाल लोकसभा के विघटन तक रहता है किंतु निम्न परिस्थितियों में इससे पूर्व भी उसका कार्यकाल समाप्त किया जा सकता है —-
- यदि वह संसद का सदस्य न रहे।
- अध्यक्ष द्वारा उपाध्यक्ष को अपना त्याग पत्र सौंप देने पर ।
- 14 दिन की पूर्व संकल्प पारित करने की सुचना व तत्कालीन सदस्यों के बहुमत द्वारा उसे हटाया जा सकता है ।
लोकसभा अध्यक्ष को हटाने का संकल्प विचाराधीन होने पर वह अध्यक्ष पीठासीन नहीं होगा किंतु उसे लोकसभा की कार्यवाही में बैठने व मत (Vote) देने का अधिकार होगा , किंतु मतों की संख्या बराबर होने पर उसे मत देने का अधिकार नहीं होगा। लोकसभा अध्यक्ष की शक्तियों के निम्न स्रोत है —
- भारत का संविधान
- लोकसभा की प्रक्रिया
- कार्य संचलन नियम तथा संसदीय परंपरा
कार्य व शक्तियां
- गणपूर्ति (कोरम) के आभाव में लोकसभा अध्यक्ष सदन को स्थगित कर देता है । गणपूर्ति कोरम से आशय सदन के बैठक के लिए आवश्यक सदस्यों की न्यूनतम संख्या (कुल सदस्यों का 1/10 वा भाग ) से है ।
- सामान्य स्थिति में लोकसभा अध्यक्ष मत (vote) नहीं देता किंतु किसी विधेयक या अन्य पर मत बराबरी की स्थिति में वह मत देता है ।
- लोकसभा अध्यक्ष संसद के दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन (Joint Session) की अध्यक्षता करता है ।
- लोकसभा अध्यक्ष यह निश्चय करता है की कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं और उसका निर्णय अंतिम होता है । राज्यसभा या राष्ट्रपति के पास भेजा जाने वाला धन विधेयक लोकसभा अध्यक्ष द्वारा सत्यापित होता है की वह धन विधेयक है या नहीं।
- सदन के नेता (प्रधानमंत्री) के आग्रह पर लोकसभा अध्यक्ष गुप्त बैठक बुला सकता है ।
लोकसभा उपाध्यक्ष
लोकसभा के उपाध्यक्ष का चुनाव भी अध्यक्ष की तरह लोकसभा के निर्वाचित प्रतिनिधयों द्वारा किया जाता है । अध्यक्ष के द्वारा लोकसभा उपाध्यक्ष के चुनाव की तारीख निर्धारित की जाति है । उपाध्यक्ष को निम्न परिस्थितियों में अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ता है —
- सदन का सदस्य न रहने पर ।
- अध्यक्ष को त्यागपत्र सौंपकर ।
- बहुमत से पारित संकल्प द्वारा किंतु संकल्प पारित करने से 14 दिन पूर्व सूचना देना अनिवार्य है।
लोकसभा अध्यक्ष की उपस्थिति के उपाध्यक्ष सामान्य निर्वाचित प्रतिनिधियों की तरह कार्य करता है।
Note :
- 10 वीं लोकसभा तक अध्यक्ष (President) व उपाध्यक्ष (Vice President) सत्ताधारी दल के नेता होते थे , किंतु 11 वीं लोकसभा द्वारा आम सहमति बनी की अध्यक्ष सत्ताधारी दल का व उपाध्यक्ष मुख्य विपक्षी दल का नेता होगा ।
- अध्यक्ष या उपाध्यक्ष पद धारण करते समय कोई अलग शपथ या प्रतिज्ञा नहीं लेता।
सामयिक अध्यक्ष
लोकसभा के विघटन की स्थिति में लोकसभा अध्यक्ष नई लोकसभा की बैठक होने तक अपने पद पर बना रहता है , इसे सामयिक अध्यक्ष भी कहाँ जाता है।
राज्यसभा (RajyaSabha)
राज्यसभा का सभापति (Chairman of the Rajya Sabha)
भारत का उप-राष्ट्रपति राज्य सभा का पीठासीन अधिकारी होता है , जब उपराष्ट्रपति , राष्ट्रपति के रूप में कार्य करता है तो वह राज्यसभा के सभापति के रूप में कार्य नहीं करता है । राज्यसभा के सभापति व लोकसभा के अध्यक्ष को समान शक्तियां प्राप्त है किंतु लोकसभा अध्यक्ष को सभापति की तुलना में दो विशेष शक्तियां प्राप्त है—–
- है या नहीं इसका निर्णय केवल लोकसभा अध्यक्ष करा है और निर्णय अंतिम होता है।
- लोकसभा अध्यक्ष दोनों सदनों की संयुक्त बैठक (Joint Session) की अध्यक्षता करता है।
सभापति की शक्तियां व कार्य (Powers and Functions)
- सभापति सदन का सदस्य नहीं होता किंतु किसी विधेयक या निर्णय पर मत बराबरी की स्थिति में वह मत दे सकता है।
- जब उप-राष्ट्रपति को सभापति पद से हटाने का संकल्प विचाराधीन है तो वह उपसभापति के रूप में कार्य नहीं करता है किंतु संसद की कार्यवाही में भाग ले सकता है लेकिन मत नहीं दे सकता।
- राष्ट्रपति के रूप में कार्य करने पर राज्यसभा के सभापति के रूप में कोई पद या भत्ता नहीं मिलता है।
राज्यसभा का उप-सभापति (Deputy Chairman of Rajya Sabha)
राज्यसभा के उप-सभापति का चुनाव निर्वाचित प्रतिनिधयों के मध्य से ही किया जाता है । उप-सभापति , सभापति के अधीनस्थ नहीं होता वह सीधे राज्यसभा के प्रति उत्तरदायी होता है । उप-सभापति को निम्न परिस्थितियों में अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ता है —
- सदन का सदस्य न रहने पर ।
- अध्यक्ष को त्यागपत्र सौंपकर ।
- बहुमत से पारित संकल्प द्वारा किंतु संकल्प पारित करने से 14 दिन पूर्व सूचना देना अनिवार्य है।