स्थलीय पारितंत्र (Terrestrial Ecosystem)

वन पारिस्थितिकी तंत्र

इसके लिए तापमान, मृदा और आर्द्रता अनिवार्य तत्त्व है, वनों में वनस्पति का वितरण उस क्षेत्र की जलवायु , मृदा पर निर्भर करता हैसामान्यत: इसे तीन भागों में बाँटा जा सकता है —

  1. उष्ण-कटिबंधीय वन
  2. शीतोष्ण कटिबंधीय वन
  3. शंकुधारी वन (टैगा वन)

(1) उष्ण-कटिबंधीय वन –


इन वनों को मुख्यत: दो भागों में विभाजित किया जा सकता है –

उष्ण-कटिबंधीय सदाबहार वन (Tropical evergreen forests) –

  • विषुवत रेखा के निकट वह क्षेत्र जहाँ वर्ष भर आर्द्रता व तापमान काफी उच्च होते है तथा औसत वार्षिक वर्षा 200 cm से अधिक होती है, उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन कहलाते है |
  • विषुवत रेखीय वनों में अत्यधिक वर्षा के कारण निक्षालन (Leaching) की प्रक्रिया से पोषक तत्त्व मृदा के निचले भाग में चले जाते है, अत: कृषि की दृष्टि से यह क्षेत्र उपजाऊ नहीं होते है, तथा यहाँ अम्लीय मृदा (Laterite soil) पाई जाती है |
  • इन क्षेत्रों में वृक्ष व झाड़ियों के तीन स्तर पाएँ जाते है, जिस कारण सूर्य की रोशनी जमीन तक नहीं पहुँच पाती है इसमें सबसे ऊपरी स्तर पर महोगनी , रोजवुड , सैंडल वुड तथा मध्य स्तर पर अधिपादप (Epiphytes) और सबसे निचले स्तर पर लताएँ (Lianas) कहते है |
  • इन वृक्षों का विस्तार अमेज़न बेसिन (Amazon Basin), कांगो बेसिन (Cango Basin), अंडमान एवं निकोबार, जावा व सुमात्रा आदि क्षेत्रों में पाएँ जाते है|

उष्ण-कटिबंधीय पर्णपाती या मानसूनी वन (Tropical deciduous or monsoon forests) – 

  • वे वन क्षेत्र जहाँ औसत वार्षिक वर्षा 70-200 cm के मध्य होती है, मानसूनी या पर्णपाती वन कहते है| इन वनों के पौधें शुष्क या ग्रीष्म ऋतु में अपनी पत्तियां गिरा देते है ताकि वाष्पोत्सर्जन कम हो|
  • इन वनों के प्रमुख वृक्ष – सागवान , शीशम , शाल बांस आदि प्रमुख हैजो मुख्यत: दक्षिण – पूर्व एशिया में पाएँ जाते है|

(2) मध्य अक्षांशीय या शीतोष्ण कटिबंधीय वन (Middle latitudes or Temperate forest ) –


इन वनों को मुख्यत: तीन भागों में विभाजित किया जाता है

  • मध्य अक्षांशीय सदाबहार वन (Middle latitudinal evergreen forest)
  • मध्य अक्षांशीय पर्णपाती वन (Middle latitudes deciduous forest)
  • भूमध्य सागरीय वन
  1. मध्य अक्षांशीय सदाबहार वन –
    • उपोष्ण (Subtopical) प्रदेशों में महाद्वीपों के पूर्वी तटीय भागों के वर्षा वनों को इसके अंतर्गत रखा जाता है, इन वनों के वृक्षों की पत्तियां चौड़ी होती है| जैसे – लौरेल , युकलिप्टुस (Eucalyptus) आदि |
    • यह वन मुख्यत: दक्षिण चीन (south china), जापान, दक्षिण ब्राज़ील (south brazil), दक्षिण एशिया आदि क्षेत्रों में पाएँ जाते है |
  2.  मध्य अक्षांशी पर्णपाती  वन –
    • ये वन उष्ण-कटिबंधीय पर्णपाती वनों के विपरीत शीत ऋतु (winter season) में ठंड से बचने के लिए  अपनी पत्तियां गिरा देते है तथा इन वनों में podzol मृदा पाई जाती है, इन वनों के प्रमुख वृक्ष – वॉलनट, मेपल, चेस्टनैट आदि है |
  3. भूमध्य सागरीय वन  – 
    • मध्य अक्षांक्षों में महाद्वीपों के पश्चिमी भागों में ये वन पाएँ जाते है, इन क्षेत्रों में ग्रीष्म ऋतु शुष्क व गर्म तथा शीत ऋतु आर्द्र व ठंडी होती है, तथा वर्षा शीत ऋतु में होती है| इन वनों के प्रमुख वृक्ष – जैतून , पाइन , नींबू , नाशपाती व नारंगी आदि है |

(3) शंकुधरी वन (टैगा वन)


इस प्रकार के वन मुख्यत: पर्वतीय क्षेत्रों में आर्कटिक वृत (66.5०) के चारों ओर एशिया, यूरोप व अमेरिका महाद्वीपों में पाएँ जाते है| इन वनों के वृक्ष मुख्यत: कोणधारी होती है, अर्थात् इन वनों के वृक्षों की पत्तियां नुकीली होती है ताकि वाष्पोत्सर्जन कम हो तथा पत्तियों पर बर्फ न रुके|
इन क्षेत्रों में अम्लीय पोद्जोल (Podzol) मृदा पाई जाति है, जो खनिजों से रहित होती है |

मरुस्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र (Desert Ecosystem)

इस पारितंत्र में लंबे समय तक आर्द्रता की कमी रहती है, वायु में नमी की मात्रा तथा तापमान के आधार पर मरुस्थल को गर्म मरुभूमि एवं ठंडी मरुभूमि में विभाजित किया जाता है, अधिकतर मरुस्थलीय भूमि उत्तरी व दक्षिणी गोलार्द्ध के उष्ण-कटिबंधीय कर्क रेखा व मकर रेखा के पास महाद्वीपों के पश्चिमी तट पर 15० – 35० अक्षांश तक पाएँ जाते हैमरुस्थल पृथ्बी का लगभग 1/7 भाग घेरे हुए है |
मरुस्थलीय पौधों को उनकी विशेषता के आधार पर निम्न भागो में विभाजित किया जा सकता है —

  • पत्तियां बहुत छोटी व नुकीली होती है |
  • ये पौधें अधिकतर झाड़ियों के रूप में होते है |
  • पत्तियां व तने गूदेदार होते है जो जल को संचित रखते है|
  • कुछ पौधों के तनों में प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया के लिए क्लोरोफिल पाया जाता है |
  • पादप प्रजातियों में नागफनी, बबूल, आदि के वृक्ष पाएँ जाते है |

मरुस्थलीय जंतुओ की विशेषताएं –

  • यह तेज़ दौड़ने वाले जीव पाएँ जाते है |
  • ये जीव स्वाभाव से रात्रिचर होते है |
  • जंतु व पक्षी सामान्यत: लंबी टांगो वाले होते है, जिससे उनका शरीर गर्म धरातल से दूर रह सके |
  • शाकाहारी जंतु उन बीजों से पर्याप्त मात्रा में जल ग्रहण कर लेते है जिन्हें वे खाते है |

घास पारिस्थितिकी तंत्र (Grass Ecosystem)

  • घास पारितंत्र में वृक्षहीन शाकीय पौधों के आवरण रहते है, जो कि विस्तृत प्रकार की घास प्रजाति द्वारा प्रभावित रहते है |
  • इन क्षेत्रों में कम वार्षिक वार्षिक वर्षा होती है, जो कि 25-75 cm के मध्य रहती है|
  • वाष्पीकरण की दर उच्च होने के कारण इन क्षेत्रों की भूमि शुष्क हो जाती है |
  • मृदा की आंतरिक उर्वरता के कारण विश्व के ज्यादातर प्राकृतिक घासस्थल कृषि क्षेत्र में परिवर्तित कर दिए गए है |

टुंड्रा प्रदेश (Tundra Region)

टुंड्रा का अर्थ है – बंज़र भूमि , यह वन विश्व के उन क्षेत्रों में पाएँ जाते है, जहाँ पर्यावरणीय दशाएँ अत्यंत जटिल होती हैटुंड्रा वन दो प्रकार के होते है – 

  • आर्कटिक टुंड्रा
  • अल्पाइन टुंड्रा

Leave a Reply

Your email address will not be published.

Latest from Blog

UKSSSC Forest SI Exam Answer Key: 11 June 2023

उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा आयोग (Uttarakhand Public Service Commission) द्वारा 11 June 2023 को UKPSC Forest SI Exam परीक्षा का आयोजन…