प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis)
इस प्रक्रिया में पर्णहरित युक्त हरे पौधे सूर्य के प्रकाश की उपस्थित में कार्बनिक पदार्थ लेकर ग्लूकोज के रूप में अपना भोजन बनाते हैं और ऑक्सीजन को वायुमंडल में छोड़ते हैं, अर्थात पौधे जल, प्रकाश, क्लोरोफिल और की उपस्थित में कार्बोहाइड्रेट्स बनाते हैं।
प्रकाश-संश्लेषण की दर लाल प्रकाश में अधिकतम और बैंगनी प्रकाश में न्यूनतम होती है।
क्लोरोफिल – यह पौधे के हरे भाग में मौजूद हरा वर्णक (पिगमेंट) होता है। क्लोरोफिल के केन्द्र में मैग्नीशियम (Mg) का एक
परमाणु होता है।
श्वसन (Respiratioin)
यह ऊर्जा उत्पन्न करने वाली एक प्रक्रिया है, जिसमें भोज्य पदार्थों का रासायनिक विघटन होता है और ऊर्जा एटीपी (ATP) के रूप में प्राप्त होती है।
कार्बनिक पदार्थ (ग्लूकोज या अन्य) का ऑक्सीकरण कोशिका (माइट्रोकांड्रिया) में ऑक्सीजन की उपस्थित या अनुपस्थित में होता है।
अवशोषण (absorption) – भूमिजल एवं कार्बनिक पोषक तत्वों का अवशोषण मूल के रोमों द्वारा होता है जो मूल के ऊतक दारू (xylem) में पहुंचता है।
उत्सर्जन (Excretion) – उपापचयन में बने वर्ज्य पदार्थों के पौधे या शरीर से बाहर निकालने की प्रक्रिया उत्सर्जन कहलाती है। किसी पौधे में मुख्य उत्सर्जी पदार्थ कार्बन डाइऑक्साइड, ऑक्सीजन एवं जलवाष्प होते हैं।
प्रकाश संश्लेषण और श्वसन में अंतर
प्रकाश संश्लेषण | श्वसन |
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CO, तथा HO प्रयुक्त होती है। | CO, तथा HO मुक्त होती है। |
ऊर्जा शर्करा अणुओं में संचित होती है। | ऊर्जा शर्करा के अणुओं से मुक्त होती है। |
यह प्रक्रिया केवल प्रकाश की उपस्थित में ही होती है। | यह निरंतर चलती रहती है। |
क्लोरोफिल से युक्त कोशिकाओं में होती है। | सभी जीवित कोशिकाओं में होती है। |
वाष्पोत्सर्जन
पौधों के वायवीय भागों से जल का वाष्प के रूप में उड़ना वाष्पोत्सर्जन कहलाता है। दूसरे शब्दों में वाष्पोत्सर्जन वह क्रिया है, जिसमें पादप सतह से जल वाष्प के रूप में उड़ता है। जल पौधों में अस्थायी होता है। जल की पर्याप्त मात्रा वाष्प के रूप में पत्ती की निम्न सतह पर उपस्थित रंध्रों के माध्यम से निष्कासित हो जाती है। वाष्पोत्सर्जन की क्रिया जड़ से पत्तियों तक जल के ऊपर की ओर पहुंचने में सहायक है। वाष्पोत्सर्जन को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित है –
- प्रकाश की तीव्रता – प्रकाश की तीव्रता बढ़ने से वाष्पोत्सर्जन की दर बढ़ती है।
- तापक्रम – तापक्रम के बढ़ने से वाष्पोत्सर्जन की दर बढ़ती है।
- आर्द्रता – आर्द्रता के बढ़ने से वाष्पोत्सर्जन की दर घटती है।
- वायु – वायु की गति तेज होने पर वाष्पोत्सर्जन तीव्र गति से हो।
परागण (Pollination)
पराग कणों (Pollengrains) के परागकोष (Anther) से मुक्त होकर उसी जाति के पौधे के जायांग (Gynoecium) के वर्तिकाग्र (Stigma) तक पहुंचने की किया को परागण कहते हैं । परागण दो प्रकार के होते है –
स्वपरागण (Self Pollination) – जब एक पुष्प के परागकण उसी पुष्प के वर्तिकाग्न पर या उसी पौधे पर स्थित किसी अन्य पुष्प के वर्तिकाग्न पर पहुंचता हैं, तो इसे स्व-परागण कहते हैं।
पर-परागण (Cross Pollination) – जब एक पुष्प का परागकण उसी जाति के दूसरे पौधे पर स्थित पुष्प के वर्तिकाग्र पर पहुंचता है, तो उसे पर-परागण कहते हैं। पर-परागण कई माध्यमों से होता है। पर-परागण पौधों के लिए उपयोगी होता है। पर-परागण के लिए किसी एक माध्यम की आवश्यकता होती है। वायु, कीट, जल या जन्तु इस आवश्यकता की पूर्ति करते हैं।
एटीपी (Adenosine triphosphate – ATP)
श्वसन क्रिया में शर्करा तथा वसा का ऑक्सीकरण होता है तथा ऊर्जा मुक्त होती है। इस प्रक्रिया में एटीपी (ATP) तथा CO2, निकलती है। असल में श्वसन उन सभी प्रक्रियाओं का सम्मिलित रूप है जिनके द्वारा पादपों में ऊर्जा का उत्पादन होता है। श्वसन के समय मुक्त ऊर्जा का कुछ भाग कोशिका के माइटोकॉन्ड्रिया (Mitochondria) में एटीपी (ATP) के रूप में संचित हो जाती है। एटीपी (ATP) के रूप में संचित यह ऊर्जा भविष्य में सजीव जीवधारियों के विभिन्न जैविक क्रियाओं के संचालन में प्रयुक्त होती है।