- वानस्पतिक नाम – कॉर्कोरस ओलिटोरियस (Corchorus olitorius)
- जलवायु – उष्णार्द्र
- तापमान – 25-38 C
- वर्षा – 200-250 सेंटीमीटर
- उपनाम – स्वर्णिम तंतु
जूट ‘टिलिएसिई कुल (Tilicius clans)’ का पौधा है जिसका मूल स्थान अफ्रीका महाद्वीप व भारत को माना जाता है, तथा कपास के बाद यह दूसरी प्रमुख रेशे वाली फसल है।
जूट की दो प्रमुख प्रजातियाँ निम्नलिखित है –
1. कौरकोरस कैप्सुलैरिस (Corcorus capsularis)
इसे सफेद जूट और ककिया बम्बई के नाम से भी जाना जाता हैं, तथा इसकी पत्तियां स्वाद में कड़वी होती हैं। कैप्सुलैरिस की प्रमुख किस्में –
- JRC -321, JRC -212, UPC -94 (रेशमा), JRC -698, अंकित (NDC), N.D.C 9102 आदि।
2. कौरकोरस ओलिटोरियस (Courcorus olitorius)
इसको देव जूट या टोसा जूट के नाम से भी जाना जाता हैं, तथा इसकी पत्तियां स्वाद में मीठी होती हैं। इसका रेशे की गुणवत्ता केपसुलेरिस से अच्छी होता है। ओलिटोरियस की प्रमुख किस्में –
- JRO – 632, JRO -878, JRO -7835, JRO -524 (नवीन), JRO -66 आदि।
वर्ष 1971 में भारत सरकार द्वारा जूट के आयात व निर्यात के लिए भारतीय जूट निगम (Jute Corporation of India) की स्थापना की गयी थी।
जूट को ‘स्वर्ण रेशा या सोने का रेशा‘ के नाम से भी जाना जाता है।
वर्ष 1859 में भारत में पहला जूट कारख़ाना, कोलकाता के समीप रिसरा नामक स्थान में खोला गया था।
अपगलन विधि (Deflation method)
इस विधि द्वारा जूट के पौधे की तने की छाल के नीचे से प्राप्त किया जाता है। इस विधि में जूट या पटसन के तने से नीचे के हिस्सों को पानी में डुबाया जाता हैं। जिसके फलस्वरूप इसमें रिटेटिंग प्रक्रिया ( सूक्ष्म जीव विज्ञानी) होती है। जिससे जूट के पौधे की बाहरी छाल ढीली हो जाती है तथा रेशे में उपस्थित पेक्टिन तथा गोद आदि पदार्थ घुलकर नष्ट हो जाते हैं। जिससे रेशा सुगमता से अलग हो जाता है।