उत्तराखंड की चित्रकला

उत्तराखंड की प्राचीन चित्रकला 

उत्तराखंड में चित्रकला के सबसे प्राचीनतम साक्ष्य शैल चित्रों (Rock paintings) के रूप में निम्न स्थलों से प्राप्त होते है –

  • लाखु गुफा (Lakhu Cave)
  • ग्वारख्या गुफा (Guarakhya Cave)
  • किमनी गांव (Kimani Village),
  • हुड़ली (Hudli)
  • पेटशाल (Petshala)
  • फलसीमा आदि।

लाखु गुफा (Lakhu Cave) − अल्मोड़ा में स्थित लाखु गुफा से मानव और पशु-पशुओं के शैल चित्र (Rock  paintings) प्राप्त हुए हैं, जिनमें मुख्यत: सफेद, गेरू, गुलाबी व काले रंगों का प्रयोग किया गया है। यहाँ से प्राप्त मानव शैल चित्रों (आकृतियों) को समूह में या अकेले नृत्य करते हुए दर्शाया गया है।
ग्वारख्या गुफा (Guarakhya Cave) − चमोली में ग्वारख्या गुफा से लगभग 41 शैल चित्र (आकृतियाँ) प्राप्त हुए है, जिनमें  30 मानवों की , 8 पशुओं की तथा 3 पुरुषों के शैल चित्र है (Dr. यशोधर मठपाल के अनुसार).

Note : ग्वारख्या गुफा से प्राप्त शैल-चित्र लाखु गुफा के शैल चित्रों से अधिक चटकदार है।

किमनी गाँव (Kimani Village) – चमोली में स्थित किमनी गाँव की गुफ़ाओं में सफ़ेद रंग से चित्रित हथियार व पशुओं के चित्र मिले हैं।
ल्वेथाप (Lvethap) – अल्मोड़ा (Almora) के ल्वेथाप से प्राप्त शैल-चित्रों में मानव को हाथो में हाथ डालकर नृत्य करते तथा शिकार करते दर्शाया गया हैं। यहाँ से लाल रंग से निर्मित चित्र प्राप्त हुए है |
हुडली (Hudali) – उत्तरकाशी (Uttarkashi) के हुडली से प्राप्त शैल चित्रों में नीले रंग (Blue Colour) का प्रयोग किया गया हैं।
फलासीमा (Falasima) अल्मोड़ा के फलसीमा से प्राप्त शैल चित्रों में मानव को में योग व नृत्य करते हुए दिखाया गया हैं।
पेटशाला (Petshala)  अल्मोड़ा के पेटशाला से प्राप्त चित्रों में नृत्य करते हुए मानवों की आकृतियाँ प्राप्त हुई हैं।


उत्तराखंड की मध्य एवं आधुनिक कालीन चित्रकला  

16वीं से 19वी शताब्दी तक उत्तराखंड में चित्रकला की ‘गढ़वाल शैली’ प्रचलित थी, जिसका विकास गढ़वाल शासकों के संरक्षण में हुआ । गढ़वाल शैली के चित्रों के प्रमुख विषय निम्नलिखित थे –

रूक्मिणी-मंगल, नायिकाभेद, रामायण, महाभारत, कामसूत्र, दशावतार, अष्टदुर्गा, नवग्रह आदि।

वर्ष 1658 में मुगल शाहजादा सुलेमान शिकोह ने गढ़वाल नरेश पृथ्वीपति शाह के  दरबार में शरण ली, तथा अपने दो चित्रकारों (तुवर श्यामदास और उसका पुत्र हरदास) यही छोड़ दिया। हरदास के वंशज गढ़वाल-शैली के विकास में लगे रहे।

हरदास का पुत्र हीरालाल का पुत्र मंगतराम का पुत्र मोलाराम तोमर (1743 से 1833 ई.) ज्वालाराम, शिवराम, अजबराम, आत्माराम, तेजराम (मोलाराम के वंशज)

मोलाराम तोमर (1743 से 1833 ई.)

मोलाराम तोमर (1743 से 1833 ई.) गढ़वाल शैली का सबसे महान चित्रकार था, जिसे  प्रदीपशाह, ललितशाह, जय कीर्तिशाह व प्रद्युम्नशाह का संरक्षण प्राप्त हुआ। मोलाराम की मृत्यु के पश्चात गढ़वाल शैली की अवनति होने लगी।
मोलाराम द्वारा बनाए गए कुछ चित्र निम्नलिखित हैं  −

चंद्रमुखी, मयंक मुखी, मस्तानी, राधाकृष्ण मिलन, उत्कंठिता नायिका, विप्रलम्भा नायिका, सितारप्रिया, जयदेव वजीर, दंपती (प्रद्युम्न शाह व रानी का चित्र), हिंडोला, वासकशटिया नायिका आदि।

मोलाराम द्वारा लिखी गयी पुस्तकें −

गढ़राज-वंश काव्य, गढ़गीता- संग्राम (नाटक), मन्मथ सागर आदि।

Note :

  • कुँवर प्रीतम शाह, मोलाराम से चित्रकला सीखने टिहरी से श्रीनगर जाते थे।
  • मोलाराम अपने द्वारा बनाएँ गए चित्रों पर अपने नाम भी लिखते थे।
  • मोलाराम के चित्रों को दुनिया के सामने सर्वप्रथम बैरिस्टर मुकन्दीलाल ने रखा।
  • हीरालाल को गढ़वाल-शैली का सूत्रपात कर्ता माना जाता है।

मोलाराम के वंशजो के पश्चात गढ़वाल शैली के प्रसिद्ध चित्रकारों में चैतू माणकू का नाम आता है।

  •  चैतू − चैतू को कृष्ण लीलाओं के चित्रण में ख्याति प्राप्त थी। चैतू की 13 चित्रों की रूक्मिणीहरण चित्रमाला वाराणसी कलाभवन में सुरक्षित है।
  • माणकू − वर्ष 1730 में माणकू ने जयदेव के गीतगोविंद का चित्रण किया। “आख मिचौली” भी  माणकू की एक प्रसिद्ध रंगीन चित्रकला  है।

गढ़वाल शैली के चित्रों को निम्न संग्रहालयों में सुरक्षित रखा गया हैं – 

  • ‘मोलाराम आर्ट गैलरी’ श्रीनगर (पौढ़ी)
  • महाराजा नरेन्द्रशाह संग्रह, नरेन्द्र नगर (टिहरी)
  • कुँवर विचित्रशाह संग्रह (टिहरी)
  • राव वीरेन्द्रशाह संग्रह (देहरादून)
  • गढ़वाल विश्वविद्यालय संग्रहालय (श्रीनगर)  – बैरिस्टर मुकन्दीलाल के संग्रह से
  • गिरिजा किशोर जोशी संग्रह (अल्मोड़ा,
  • भारत कला भवन (वाराणसी,
  • सीताराम शाह संग्रह (वाराणसी
  • राज्य संग्रहालय (लखनऊ)
  • राष्ट्रीय संग्रहालय (दिल्ली)
  • बै. मानक संग्रह (पटना)
  • कस्तूरी भाई, लाल भाई संग्रह (अहमदाबाद)
  • अजित घोष संग्रह (कोलकाता)
  • आर.के.कजरीवाल संग्रह (कोलकाता)

उपरोक्त संग्रहालयों के अतिरिक्त गढ़वाल शैली के कुछ चित्रों को लंदन (ब्रिटेन), पेरिस (फ्रांस), कैम्ब्रिज (ब्रिटेन) तथा बोस्टन (अमेरिका) के संग्रहालयों में भी सुरक्षित रखा गया है।
गढ़वाल शैली के तथ्यों को जानने के लिए महत्वपूर्ण पुस्तकें तथा उनके लेखक हैं

  • ‘गढ़वाल पेंटिंग’, ‘सम नोट्स आन मोलाराम’ और ‘गढ़वाल स्कूल ऑफ पेंटिंग’ − बैरिस्टर मुकन्दी लाल 
  • ‘गढ़वाल पेंटिंग −  वि. आर्चर 
  •  “गढ़वाल चित्रशैली : एक सर्वेक्षण” −  डॉ. कठोच
  • “पहाड़ी चित्रकला”  किशोरी लाल वैद्य 

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