भारत में वर्षा ऋतु का काल जून-सितंबर के मध्य रहता है। जून माह में सूर्य की करणों कर्क रेखा पर सीधी पड़ रही रहती हैं। जिसके कारण पश्चिमी मैदानी भागों में पवन गर्म होकर ऊपर उठ जाती है व कम दबाव का क्षेत्र बन जाता है। कम दबाव का क्षेत्र इतना प्रबल होता है कि कम दबाव क्षेत्र को भरने के लिए दक्षिणी गोलार्द्ध की व्यापारिक पवनें भूमध्य रेखा पार कर जब ये पवनें भारतीय उपमहाद्वीप की ओर बढ़ती हैं तो पृथ्वी की गति के कारण इनकी दिशा में परिवर्तन हो जाता है तथा ये दक्षिण-पश्चिम दिशा में बहने लगती हैं। इसी कारण जनू -सितबंर के मध्य हाने वाली वर्षा को दक्षिण-पश्चिम मानसून वर्षा कहते है। मानसून पवने व्यापारिक पवनो को विपरीत परिवर्तनशील होती हैं।
दक्षिणी गोलार्द्ध की व्यापारिक पवनों का उद्गम स्थल समुद्र में होता हैं जब ये पवनें भारतीय उपमाहद्वीप में प्रवेश करती हैं तो अरब सागर व बंगाल की खाड़ी से नमी प्राप्त कर लेती है। मानसूनी पवनें भारतीय सागरों में मई माह के अंत में प्रवेश करती है। दक्षिण-पश्चिम मानसून सर्वप्रथम लगभग 5 जून के आसपास केरल तट पर वर्षा करता है व महीने भर में संपूर्ण भारत में वर्षा होने लगती है। भारतीय उपमाहद्वीप की स्थलाकृति के कारण दक्षिण-पश्चिम मानसनूनू निम्नलिखित दो शाखाओं में विभक्त हो जाता है –
- अरब सागर शाखा,
- बंगाल की खाड़ी शाखा।
अरब सागर शाखा (मानसून)
यह शाखा देश के पश्चिमी तट पश्चिमी घाट महाराष्ट्र, गुजरात व मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में वर्षा करती है। पंजाब में बंगाल की खाड़ी से आने वाली मानसूनी शाखा से मिल जाती है। यह शाखा पश्चिम घाटों पर भारी वर्षा करती है, परंतु दक्कन के पश्चिमी घाट के दृष्टि-छाया प्रदेश में होने के कारण इन क्षेत्रों में अल्प वर्षा हो पाती है। इसी प्रकार गुजरात व राजस्थान में पर्वत अवराधो के अभाव के कारण वर्षा कम हो पाती है।
दक्षिण-पश्चिम मानसनू की दोनो शाखाओं में अरब सागर शाखा अधिक शक्तिशाली है और यह शाखा बंगाल की खाडी़ की शाखा की अपेक्षा लगभग तीन गुना अधिक वर्षा करती है। इसके दो कारण हैं,
- पहला- बंगाल की खाडी़ शाखा का एक ही भाग भारत में प्रवेश करता है
- दूसरा भाग म्यांमार व थाईलैण्ड की ओर मुड़ जाता है।
अरब सागर मानसून की उत्तरी शाखा, गुजरात, कच्छ की खाड़ी व राजस्थान से प्रवेश करती है। यहाँ पर्वतीय अवरोध न होने के कारण इन क्षेत्रों में यह शाखा वर्षा ही करती तथा सीधे उत्तर-पश्चिम की पर्वतमालाओं से टकराकर जम्मू-कश्मीर व हिमाचल प्रदेश में भारी वर्षा करती है। मैदानी भागों की ओर लौटते समय नमी की मात्रा कम होती है। अतः लौटती पवनों के द्वारा राजस्थान में अल्प वर्षा होती है।
बंगाल की खाड़ी शाखा
मानसून की बंगाल की खाड़ी शाखा उत्तर दिशा में बंगाल, बांग्लादेश व म्यांमार की ओर बढ़ती है। म्यांमार की ओर बढ़ती मानसून पवनों का एक भाग आराकान पहाड़ियों से टकराकर भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिम बंगाल व बांग्लादेश में आता है। यह शाखा हिमालय पर्वतमाला के समांतर बढ़ते हुए गंगा के मैदान में वर्षा करती हैं। हिमालय पर्वतमाला मानसूनी पवनों को पार जाने से रोकती हैं व संपूर्ण गंगा बेसिन में वर्षा होती है। उत्तर व उत्तर-पूर्व की ओर बढ़ी शाखा उत्तर-पूर्वी भारत में भारी वर्षा करती है। मेध्ज्ञालय में तथा गारो, खासी व जयंतिया पहाड़ियों की पनुमा स्थाकृति की रचना करती है जिसके कारण यहाँ अत्यधिक वर्षा होती है। विश्व में सर्वाधिक वर्षा वाला स्थान चेरापूंजी (वर्तमान में मासिनराम) इन्हीं पहाड़ियों में स्थित है।
शरद ऋतु
शरद ऋतु उष्ण बरसाती मौसम से शुष्क व शीत मौसम के मध्य संक्रमण का काल है। शरद ऋतु का आरंभ सितंबर मध्य में होता है। यह वह समय है जब दक्षिण-पश्चिम मानसून लौटता है- लौटते मानसून के दौरान तापमान व आर्द्रता अधिक होती है जिसे ‘‘अक्टूबर हीट’’ कहते हैं। मानसून के लौटने पर प्रारंभ में तापमान बढ़ता है परंतु उसके उपरांत तापमान कम होने लगता है।
- तापमान में कमी का कारण यह है कि इस अवधि में सूर्य की किरणे कर्क रेखा से भमूध्य रेखा की ओर गमन कर जाती है व सितबंर में सीधी भूमध्य रेखा पर पड़ती है। साथ ही उत्तर भारत के मैदानों में कम दबाव का क्षेत्र इतना प्रबल नहीं रहता कि वह मानसूनी पवनों को आकर्षित कर सकें।
- सितंबर मध्य तक मानसूनी पवनें पंजाब तक वर्षा करती हैं। मध्य अक्टूबर तक मध्य भारत में व नवंबर के आरम्भिक सप्ताहों में दक्षिण भारत तक मानसून पवनो वर्षा कर पाती हैं और इस प्रकार भारतीय उपमहाद्वीप से मानसून की विदाई नवंबर अंत तक हो जाती है। यह
विदाई चरणबद्ध होती है इसीलिए इसे ‘‘लौटता दक्षिण-पश्चिम मानसून ’’ कहते है। - शरद ऋतु में बंगाल की खाड़ी से चक्रवात उठते हैं जो भारत व बांग्लादेश में भयंकर तबाही मचाते हैं। चक्रवातों के कारण पूर्वी तटों पर भारी वर्षा होती है।
अन्य प्रमुख बिंदु
ग्रीष्म ऋतु में मानसून पूर्व की वर्षा प्राप्त होती है जो भारत को औसत वार्षिक वर्षा का लगभग 10% होती है।विभिन्न भागो में इस वर्षा कोअलग-अलग स्थानीय नाम है।
आम्र वर्षा (Mango Shower) :-
ग्रीष्म ऋतु के खत्म होते-होते पूर्व मानसून बौछारें पड़ती हैं, जो केरल में यह एक आम बात है। स्थानीय तौर पर इस तूफानी वर्षा को आम्र वर्षा कहा जाता है, क्योंकि यह आमों को जल्दी पकने में सहायता देती हैं कर्नाटक में इसे काॅफी वर्षा (Coffee shower) एवं चेरी ब्लाॅसम कहा
जाता है।
काल बैसाखी :-
असम और पश्चिम बंगाल में बैसाख के महीने में शाम को चलने वाली ये भयंकर व विनाशकारी वर्षायुक्त पवनें हैं। इनकी कुख्यात प्रकृति का अंदाजा इनके स्थानीय नाम काल बैसाखी से लगाया जा सकता है। जिसका अर्थ है- बैसाख के महीने में आने वाली तबाही। चाय, पटसन व चावल के लिए ये पवने अच्छी हैं। असम में इन तूफानों को ‘बारदोलेली छीड़ा’ अथवा ‘चाय वर्षा’ (Tea Shower) कहा जाता है।
लू (LOO) :-
उत्तरी मैदान में पंजाब से लेकर बिहार तक चलने वाली ये शुष्क, गर्म व पीड़ादायक पवनें हैं। दिल्ली और पटना के बीच इनकी तीव्रता अधिक होती है।