प्राकृतिक वनस्पति का अर्थ है कि वनस्पति का वह भाग जो कि मनुष्य की सहायता के बिना अपने आप पैदा होता है और लंबे समय तक उस पर मानवी प्रभाव नहीं पड़ता। इसे प्राकृतिक वनस्पति कहते हैं। वह वनस्पति जो कि मूलरूप से भारतीय है उसे ‘देशज’ कहते हैं लेकिन जो पौधे भारत के बाहर से आए हैं उन्हें “विदेशज” पौधे कहते हैं।
भारत में निम्न प्रकार की प्राकृतिक वनस्पतियाँ पाई जाती हैं।
- उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन
- उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन
- पर्वतीय वन
- उष्ण कटिबंधीय कटीले वन तथा झाड़ियाँ
- मैंग्रोव वन
उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन (Tropical Evergreen Forests)
ये वन पश्चिमी घाटों के अधिक वर्षा वाले क्षेत्रो लक्षद्वीप, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह असम के ऊपरी भागों तथा तमिलनाडु के तट तक सीमित हैं। ये उन क्षेत्रों में भली-भाँति विकसित हैं जहाँ 200 Cm से अधिक वर्षा के साथ एक थोड़े समय के लिए शुष्क ऋतु पाई जाती है। इन वनों में वृक्ष 60 meter या इससे अधिक ऊंचाई तक पहुँचते हैं क्योंकि ये क्षेत्र वर्ष भर गर्म तथा आर्द्र रहते हैं अतः यहाँ हर प्रकार की वनस्पति वृक्ष झाड़ियाँ व लताएँ उगती हैं और वनों में इनकी विभिन्न ऊँचाईयों से कई स्तर देखने को मिलते हैं। वृक्षों में पतझड़ होने का कोई निश्चित समय नहीं होता। अतः यह वन साल भर हरे-भरे लगते हैं।इन वनों में पाए जाने वाले व्यापारिक महत्त्व के कुछ वृक्ष आबनूस , एबोनी, महोगनी, रोशवुड, रबड़ और सकोना हैं।
इन वनों में सामान्य रूप से पाए जाने वाले जानवर हाथी, बंदर, लंगूर और हिरण हैं। एक सींग वाले गैंडे असम और पश्चिमी बंगाल के दलदली क्षेत्र में मिलते हैं। इसके अतिरिक्त इन जंगलों में कई प्रकार के पक्षी चमगादड़ तथा कई रेंगने वाले जीव भी पाए जाते हैं।
उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन (Tropical Deciduous Forest)
ये भारत में सबसे बड़े क्षेत्र में विस्तृत वन हैं। इन्हें मानसूनी वन भी कहते हैं और ये उन क्षेत्रों में विस्तृत हैं जहाँ 70-200 Cm तक वर्षा होती है। इस प्रकार के वनों में वृक्ष शुष्क ग्रीष्म ऋतु में छः से आठ सप्ताह के लिए अपनी पत्तियाँ गिरा देते हैं। जल की उपलब्धता के आधर पर इन वनों को आर्द्र तथा शुष्क पर्णपाती वनों में विभाजित किया जाता है। इनमें से आर्द्र या नम पर्णपाती वन उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहाँ 100-200 Cm तक वर्षा होती है। अतः ऐसे वन देश के पूर्वी भागों उत्तरी-पूर्वी राज्यों हिमालय के गिरिपद प्रदेशों, झारखंड, पश्चिमी उड़ीसा, छत्तीसगढ़ तथा पश्चिमी घाटों के पूर्वी ढालों में पाए जाते हैं। सागौन इन वनों की सबसे प्रमुख प्रजाति है। बाँस, साल, शीशम, चंदन, अर्जुन तथा शहतूत के वृक्ष व्यापारिक महत्त्व वाली प्रजातियाँ हैं।
शुष्क पर्णपाती वन उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहाँ वर्षा 70-100 Cm के बीच होती है। ये वन प्रायद्वीपीय पठार के ऐसे वर्षा वाले क्षेत्रों उत्तर प्रदेश तथा बिहार के मैदानों में पाए जाते हैं। विस्तृत क्षेत्रों में प्रायः सागोन, साल, पीपल तथा नीम के वृक्ष उगते हैं। इन क्षेत्रों के बहुत बड़े भाग कृषि कार्य में प्रयोग हेतु साफ कर लिए गए हैं और कुछ भागों में पशुचारण भी होता है। इन जंगलों में पाए जाने वाले जानवर प्रायः शेर, सूअर, हिरण और हाथी हैं। विविध् प्रकार के पक्षी, छिपकली, साँप और कछुए भी यहाँ पाए जाते हैं।
उष्ण कटिबंधीय कटीले वन तथा झाड़ियाँ (Tropical Cutlery Forests and Shrubs)
जिन क्षेत्रों में 70 Cm से कम वर्षा होती है वहाँ प्राकृतिक वनस्पति में कटीले वन तथा झाड़ियाँ पाई जाती हैं। इस प्रकार की वनस्पति देश के उत्तरी-पश्चिमी भागों में पाई जाती है जिनमें गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश तथा हरियाणा के अर्धशुष्क क्षेत्र सम्मिलित हैं। अकासिया, खजूर (पाम) तथा नागफनी यहाँ की मुख्य पादप प्रजातियाँ हैं। इन वनों के वृक्ष बिखरे हुए होते हैं। इनकी जड़ें लंबी तथा जल की तलाश में चारों ओर विस्तृत होती हैं। पत्तियाँ प्रायः छोटी होती हैं जिनसे वाष्पीकरण कम से कम हो। शुष्क भागों में झाड़ियाँ औरकटीले पादप पाए जाते हैं। इन जंगलों में प्रायः चूहे, खरगोश, लोमड़ी, भेड़िए, शेर, घोड़े तथा ऊँट पाए जाते हैं।
पर्वतीय वन (Mountain Forest)
पर्वतीय क्षेत्रों में तापमान की कमी तथा ऊँचाई के साथ-साथ प्राकृतिक वनस्पति में भी अंतर दिखाई देता है। वनस्पति में जिस प्रकार का अंतर हम उष्ण कटिबंधीय प्रदेशों से टुंड्रा की ओर देखते हैं उसी प्रकार का अंतर पर्वतीय भागों में ऊँचाई के साथ-साथ देखने को मिलता है। 1000-2000 meter तक की ऊँचाई वाले क्षेत्रों में आर्द्र शीतोष्ण कटिबंधीय वन पाए जाते हैं। इनमें चौड़ी पत्ती वाले ओक तथा चेस्टनट जैसे वृक्षों की प्रधानता होती है। 1500-3000 meter की ऊँचाई के बीच शंकुधारी वृक्ष जैसे चीड़ ,पाइन, देवदार, सिल्वर-फर, स्प्रूस, सीडर आदि पाए जाते हैं। ये वन प्रायः हिमालय की दक्षिणी ढलानों दक्षिण और उत्तर-पूर्व भारत के अधिक ऊँचाई वाले भागों में पाए जाते हैं। अधिक ऊँचाई पर प्रायः शीतोष्ण कटिबंधीय घास के मैदान पाए जाते हैं। प्रायः 3600 meter से अधिक ऊँचाई पर शीतोष्ण कटिबंधीय वनों तथा घास के मैदानों का स्थान अल्पाइन वनस्पति ले लेती है। सिल्वर-फर, जूनिपर, पाइन व बर्च इन वनों के मुख्य वृक्ष हैं। जैसे-जैसे हिमरेखा के निकट पहुँचते हैं इन वृक्षों के आकार छोटे होते जाते हैं। अंततः झाड़ियों के रूप के बाद वे अल्पाइन घास के मैदानों में विलीन हो जाते हैं। इनका उपयोग गुज्जर तथा बक्करवाल जैसी घुमक्कड़ जातियों द्वारा पशुचारण के लिए किया जाता है।
इन वनों में प्रायः कश्मीरी मृग, चितरा हिरण, जंगली भेड़, खरगोश, तिब्बतीय बारहसिंघा, याक, हिम तेंदुआ, गिलहरी, रीछ, कहीं-कहीं लाल पांडा घने बालों वाली भेड़ तथा बकरियाँ पाई जाती हैं।
मैंग्रोव वन ( Mangroov Forest )
यह वनस्पति तटवर्तीय क्षेत्रों में जहाँ ज्वार-भाटा आते हैं की सबसे महत्त्वपूर्ण वनस्पति है। मिट्टी और बालू इन तटों पर एकत्रित हो जाती है। घने मैंग्रोव एक प्रकार की वनस्पति है जिसमें पौधें की जड़ें पानी में डूबी रहती हैं। गंगा , ब्रह्मपुत्र , महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी नदियों के डेल्टा भाग में यह वनस्पति मिलती है। गंगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा में सुंदरी वृक्ष पाए जाते हैं जिनसे मजबूत लकड़ी प्राप्त होती है। नारियल, ताड़ के वृक्ष भी इन भागों में पाए जाते हैं।
इस क्षेत्र का राॅयल बंगाल टाइगर प्रसिद्ध जानवर है। इसके अतिरिक्त कछुए, मगरमच्छ, घड़ियाल एवं कई प्रकार के साँप भी इन जंगलों में मिलते हैं।
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