बॉटनी क्या है (What is Botany):
बॉटनी, पौधों का वैज्ञानिक अध्ययन है। बॉटनी, जीव विज्ञान की वह शाखा है जो पौधों के अध्ययन से संबंधित है, जिसमें उनकी संरचना, गुण और जैव रासायनिक प्रक्रियाएं शामिल हैं। इसके अलावा संयंत्र वर्गीकरण और पौधों के रोगों का अध्ययन शामिल हैं। वनस्पति विज्ञान के सिद्धांतों और निष्कर्षों ने कृषि, बागवानी और वानिकी को एक आधार प्रदान किया है।
पौधों का वर्गीकरण (Classification of Plants):
थैलोफाइटा समूह (Thallophyta):
यह पादपों के वर्गीकरण का सबसे बड़ा समूह है। इसके अन्तर्गत थैलस युक्त ऐसे पौधे आते हैं जिनके तने एवं जड़ में कोई स्पष्ट अंतर नहीं होता है। इनमें संवहन ऊतक एवं भ्रूण अनुपस्थित होते हैं। इसके तहत शैवाल और कवक आते हैं।
- शैवाल (Algae) : शैवाल के अध्ययन को फाइकोलॉजी (Phycology) कहा जाता है। इनमें लवक मौजूद होते हैं। शैवाल को हरा सोना भी कहा जाता है। शोधकर्ताओं ने शैवाल से मलेरिया का टीका विकसित कर एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। विशेषकर कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के जीव वैज्ञानिकों ने मलेरिया का टीका विकसित करने के लिए शैवाल का इस्तेमाल प्रोटीन को उत्पन्न करने के लिए किया जो प्लाजमोडियम फाल्सीपेरम के खिलाफ एंटीबाडी का निर्माण करता है।
- कारा तथा नाइटेला शैवाल मलेरिया उन्मूलन में सहायक हैं। दूसरी ओर पूर्वी स्पेन में वैज्ञानिक शैवाल को कार्बनडाइऑक्साइड के साथ मिलाकर ‘बायो ऑयल’ बनाने की कोशिश में लगे हैं। शैवाल का 50 फीसदी हिस्सा ईंधन होता है। आधुनिक शब्दावली में जैव विज्ञान को ‘ग्रीन ऑयल‘ भी माना जा रहा है।
- शैवाल स्वपोषी होते हैं।
- शैवाल प्रायः पर्णहरित युक्त, संवहन ऊतक रहित, आत्मपोषी तथा सेल्यूलोज भित्ति वाले पौधे होते हैं।
- क्लोरेलीन नामक प्रतिजैविक क्लोरेला नामक शैवाल से तैयार की जाती है।
- ‘क्लोरेला’ नामक शैवाल से अंतरिक्ष यात्री प्रोटीनयुक्त भोजन, जल और ऑक्सीजन प्राप्त कर लेते हैं।
- आल्वा (शैवाल) को समुद्री सलाद भी कहा जाता है।
- कवक (Fungi): कवकों का अध्ययन माइकोलॉजी (Mycology) कहलाता है। कवक क्लोरोफिल रहित, मृत पादप जीवी (Saproplyte) अथवा परजीवी, व थैलस युक्त पादप होते हैं।
ब्रायोफाइटा (Byophytes):
स्थल पर विकसित होने वाले ब्रायोफाइट्स उभयचर प्रकृति के होते हैं। इनके लैंगिक प्रजनन के लिए जल अत्यावश्यक होता है। आमतौर पर पौधे जड़, तना एवं पत्तियों में विभाजित नहीं रहते हैं। ब्रायोफाइट्स छोटे, गैर-संवहनी पौधे हैं, जैसे कि काई, लिवरवर्ट्स (liverworts)और हॉर्नवॉर्ट्स (hornworts)।
ब्रायोफाइट्स में बीज या फूल नहीं होते हैं। इसके बजाय वे बीजाणुओं के माध्यम से प्रजनन करते हैं।
ट्रैकियोफाइटा (Tracheophyta):
ट्रैकियोफाइटा प्रभाग में उन पादपों को सम्मिलित किया गया है जिनमें संवहनी ऊतक (vascular tissue) पाये जाते हैं । इस प्रभाग में अब तक 2.75 लाख जातियों की खोज की जा चुकी है। इस प्रभाग को पुनः तीन उप-प्रभाग में विभाजित किया गया है –
- टेरिडोफाइटा
- अनावृत्तत बीजी
- आवृत्तबीजी
टेरिडोफाइटा (Pteridophytes):
ये स्थलीय, बीजरहित पादप हैं और इनके संवहन ऊतक अविकसित होते हैं। कुछ विकसित टेरिडोफाइटा समूह के पादपों में जड़, तना एवं पत्ती में स्पष्ट अंतर होता है। जैसे- साइलोटम, फर्न, सिल्वर आदि।
जिम्नोस्पर्म (Gymnosperms):
बीज का बनना इसका प्रमुख गुण है। यह वर्ग ‘जीवाश्म वर्ग‘ भी कहलाता है क्योंकि इस वर्ग के कई पौधों का जीवश्मीय महत्व अधिक है।
- ‘साइकस’ को ‘जीवित जीवाश्म’ कहा जाता है।
- संवहनीय ऊतक के जाइलम में वाहिनी (vessel) का अभाव होता है। ब्रायोफाइट्स ग्रुप का सबसे लंबा पौधा सिक्विया गिगेन्टीया (Sequoia gigantea) है।
एन्जियोस्पर्म (Angiosperms):
यह सबसे विकसित पादप समूह है। पूर्ण विकसित ऊतक और विकसित भ्रूण एन्जियोस्पर्म समूह का महत्वपूर्ण लक्षण है। उदाहरण-कटहल, आम, बबूल आदि। यूकेलिप्टस सबसे लंबा एन्जियोस्पर्मिक पौधा है।
वर्गीकरण एन्जियोस्पर्म पौधों को दो मुख्य वर्गों में विभाजित किया गया है :
- एकबीजपत्रीय
- द्विबीजपत्रीय