महासागरीय धाराएँ दो प्रकार के बलों के द्वारा प्रभावित होती हैं-
- प्राथमिक बल, जो जल की गति को प्रारंभ करता है,
- द्वितीयक बल, जो धाराओं के प्रवाह को नियंत्रित करता है।
प्राथमिक बल, जो धाराओं को प्रभावित करते हैं, वे हैं
- सौर ऊर्जा से जल का गर्म होना,
- वायु,
- गुरुत्वाकर्षण
- कोरियोलिस बल (Coriolis Force)
सौर ऊर्जा से गर्म होकर जल फैलता है। यही कारण है कि विषवत् वृत्त के पास महासागरीय जल का स्तर मध्य अक्षांशों की अपेक्षा 8 Cm अधिक ऊंचा होता है। इसके कारण बहुत कम प्रवणता उत्पन्न होती है तथा जल का बहाव ढाल से नीचे की तरफ होता है। महासागर के सतह पर बहने वाली वायु जल को गतिमान करती है। इस क्रम में वायु एवं पानी की सतह के बीच उत्पन्न होने वाला घर्षण बल जल की गति को प्रभावित करता है। गुरुत्वाकर्षण के कारण जल नीचे बैठता है और यह एकत्रित जल दाब प्रवणता में भिन्नता लाता है। कोरियालिस बल के कारण उत्तरी गोलार्धमें जल की गति की दिशा के दाहिनी तरफ और दक्षिणी गोलार्ध में बायीं ओर प्रवाहित होता है तथा उनके चारों ओर बहाव को वलय (Gyres) कहा जाता है। इनके कारण सभी महासागरीय बेसिनों में वृहत् वृत्ताकार धाराएँ उत्पन्न होती हैं।
महासागरीय धाराओं के प्रकार
महासागरीय धाराओं को उनकी गहराई के आधार पर ऊपरी या सतही जलधारा (Surface Water Current) व गहरी जलधारा (Deep Water Current) में वर्गीकृत किया जा सकता है-
- ऊपरी जलधारा – महासागरीय जल का 10 प्रतिशत भाग सतही या ऊपरी जलधारा है। यह धाराएँ महासागरों में 400 meter की गहराई तक उपस्थित हैं।
- गहरी जलधारा – महासागरीय जल का 90 प्रतिशत भाग गहरी जलधारा के रूप में है। ये जलधाराएँ महासागरों में घनत्व व गुरुत्व की भिन्नता के कारण बहती हैं। उच्च अक्षांशीय क्षेत्रों में, जहाँ तापमान कम होने के कारण घनत्व अधिक होता है, वहाँ गहरी जलधाराएँ बहती हैं, क्योंकि यहाँ अधिक घनत्व के कारण पानी नीचे की तरफ बैठता है।
प्रमुख महासागरीय धाराएँ
प्रमुख महासागरीय धाराएँ प्रचलित पवनों और कोरियालिस प्रभाव (Coriolis effect) से अत्यधिक प्रभावित होती हैं। महासागरीय जलधाराओं का प्रवाह वायुमंडलीय प्रवाह से मिलता-जुलता है। मध्य अक्षांशीय क्षेत्रों में, महासागरों पर वायु प्रतिचक्रवात के रूप में बहती है। दक्षिणी गोलार्ध में, यह प्रवाह उत्तरी गोलार्ध की अपेक्षा अधिक स्पष्ट है। महासागरीय धाराएँ भी लगभग इसी केअनुरूप प्रवाहित होती हैं। उच्च अक्षांशीय क्षेत्रों में, वायु प्रवाह मुख्यतः चक्रवात के रूप में होता है और महासागरीय धाराएँ भी इसी का अनुकरण करती हैं। मानसून प्रधान क्षेत्रों में, मानसून पवनों का प्रवाह जलधाराओं के प्रवाह को प्रभावित करता है। निम्न अक्षांशों से बहने वाली गर्म जलधाराएँ कोरियोलिस प्रभाव के कारण, उत्तरी गोलार्ध में अपने बाईं तरफ और दक्षिणी गोलार्ध में अपने दायीं तरपफ मुड़ जाती हैं। महासागरीय जलधाराएँ भी वायुमंडलीय प्रवाह की भाँति गर्म अक्षांशों से ऊष्मा को स्थानांतरित करते हैं। आर्कटिक या अंटार्कटिक क्षेत्रों की ठंडी जलधाराएँ उष्ण कटिबंधीय व विषुवतीय क्षेत्रों की तरफ प्रवाहित होती हैं, जबकि यहाँ की गर्म जलधाराएँ ध्रुवों की तरफ जाती हैं।
Note :
महासागरीय धाराओं की विशेषताएँ
धाराओं की पहचान उनके प्रवाह से होती है। सामान्यतः धाराएँ सतह के निकट सर्वाधिक शक्तिशाली होती हैं व यहाँ इनकी गति 5 नाॅट से अधिक होती है। गहराई में धाराओं की गति धीमी हो जाती है, जो 0.5 नाॅट से भी कम होती है। हम किसी धारा की गति को उसके वाह (Drift) के रूप में जानते हैं। वाह (Drift) को नाॅट में मापा जाता है। धारा की शक्ति का संबंध उसकी गति से होता है।
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