मूल अधिकार (Fundamental Rights)

संविधान में मूल अधिकारों (Fundamental Rights) का उल्लेख अनु० (12-35) के मध्य किया गया है। मूल अधिकार वें अधिकार है जिनका  हनन होने पर राज्य सरकार इन्हें दिलाने को बाध्य है ऐसा न होने पर व्यक्ति सीधे उच्चतम व उच्च न्यायालयों (Supreme Court or High Court) जा सकते है ।
मूल अधिकारों के वादों को देखने के लिए स्थानीय न्यायालयों  को अधिकार है। मूल अधिकारों के संबंध में समीक्षा उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) अनु० – 32 और उच्च न्यायालय (High Court) अनु० – 226 के अंतर्गत 5 रिटो के माध्यम किया जा सकता है। संविधान  लागू होते समय मूल अधिकार 7 श्रेणी के थे, परंतु 44 वें संविधान संसोधन अधिनियम 1978 के द्वारा सम्पति के अधिकार को मूल अधिकारों के श्रेणी से निकालकर क़ानूनी/संवैधानिक अधिकार बना दिया गया । संपति का अधिकार वर्तमान समय में 300A उल्लेखित है।

अनुच्छेद (12) – राज्य की परिभाषा 

  • केंद्र सरकार और भारतीय संसद
  • राज्य सरकार और विधान सभा
  • स्थानीय निकाय  (नगरपालिका, पंचायत, जिला )

अनुच्छेद (13) – विधि या कानून बनाने का अधिकार 

अनुच्छेद (13 A) – न्यायिक समीक्षा

अनुच्छेद 13 न्यायिक समीक्षा के लिये एक संवैधानिक आधार प्रदान करता है क्योंकि यह उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों को यह अधिकार देता है कि वे संविधान-पूर्व कानूनों की व्याख्या करें और यह तय करने का अधिकार देता है कि ऐसे कानून वर्तमान संविधान के मूल्यों और सिद्धांतों के साथ सुसंगत है या नहीं। अगर प्रावधान वर्तमान कानूनी ढाँचे के साथ आंशिक या पूरी तरह से विरोधाभासी हैं तो उन्हें अप्रभावी समझा जाएगा जब तक की उनमे संशोधन न किया जाए। इसी प्रकार, संविधान लागू होने के बाद कानूनों को उनकी अनुकूलता को साबित करना होगा कि वे विरोध में नही हैं अन्यथा उन्हें भी शून्य माना जाएगा।

समता का अधिकार : अनुच्छेद (14-18)

  • अनुच्छेद (14) – विधि के समक्ष समता और विधियों का सामान संरक्षण 

  • अनुच्छेद (15) – राज्य द्वारा  धर्म, जाति, लिंग और जन्म स्थान आदि के आधार पर विभेद का प्रतिषेध 

  • अनुच्छेद (16) – लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता

  • अनुच्छेद (17) – अस्पृश्यता का अंत

  • अनुच्छेद (18) – उपाधियों का अंत 

स्वतंत्रता का अधिकार : अनुच्छेद (19-22)

  •  अनुच्छेद (19) – 6 अधिकारों की रक्षा 

  • अनुच्छेद (20) – अपराधों के दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण

  •  अनुच्छेद (21) – प्राण और दैहिक स्वतंत्रता

 अनुच्छेद (21 A) – शिक्षा का अधिकार (6 – 14 वर्ष की आयु तक)


  •  अनुच्छेद (22) –  निरोध और गिरफ्तारी से संरक्षण 

शोषण के विरुद्ध अधिकार : अनुच्छेद (23-24)

  •  अनुच्छेद (23) – मानव व्यापार और बाल श्रम का निषेध 

  •  अनुच्छेद (24) – कारखानों में बाल श्रम का निषेध 

 धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार : अनुच्छेद (25-28)

  •  अनुच्छेद (25) – अंत:करण की और धर्म आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता 

  •  अनुच्छेद (26) – धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता

  •  अनुच्छेद (27) – धर्म की अभिवृद्धि के लिए करों के संदाय / एकत्रण की स्वतंत्रता 

  • अनुच्छेद (28) – धार्मिक शिक्षा या उपासना में उपस्थित होने के बारे में स्वतंत्रता 

संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार : अनुच्छेद (29-30)

  •  अनुच्छेद (25) – अल्पसंख्यको के हितो का संरक्षण 

  • अनुच्छेद (30) –  शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक वर्गों का अधिकार

अनुच्छेद (32) : संवैधानिक उपचारों का अधिकार रिटो के माध्यम से 

बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas corpus), परमादेश (Mandamus), प्रतिषेध (), उत्प्रेषण, अधिकार पृच्छा (Quo warranto)

अनुच्छेद (33) : सशस्त्र बल और मूल अधिकार 

संसद को यह अधिकार है कि वह सशस्त्र बलों , अर्द्धसैनिक बलों , पुलिस बलों , खुफिया एजेंसी व अन्य के मूल अधिकारों पर युक्ति-युक्त प्रतिबंध लगा सके। अनु० 33 के अंतर्गत विधि निर्माण का अधिकार सिर्फ संसद को है । संसद द्वारा इस विधि पर बनाए गए कानून को किसी भी न्यायलय में चुनौती नहीं दी जा सकती ।

अनुच्छेद (34) : मार्शल लॉ एवं मूल अधिकार 

जब भारत में किसी भी क्षेत्र में  मार्शल लॉ लागू हो तो संसद को यह शक्ति है की वह मूल अधिकारों पर प्रतिबंध लगा सके। संसद द्वारा किसी भी परिस्थिति में अनुच्छेद (20 व 21) के अंतर्गत मूल अधिकारों का हनन नहीं किया जा सकता। 

अनुच्छेद (35) : मूल अधिकारों को प्रभावी बनाने हेतु संसद की शक्ति 


NOTE : 
44 वें संविधान संसोधन अधिनियम 1978 के द्वारा सम्पति के अधिकार अनुच्छेद (31) को मूल अधिकारों के श्रेणी से निकालकर क़ानूनी/संवैधानिक अधिकार बना दिया गया । संपति का अधिकार वर्तमान समय में 300A उल्लेखित है।

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