भारत में केंद्र तथा राज्य संबंधो की समीक्षा एवं सहकारी संघवाद को क्रियान्वित करने के लिए समय – समय पर विभिन्न समिति व आयोगों का गठन किया गया , जिनमे से निम्न महत्वपूर्ण आयोग है –
प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग
केंद्र सरकार द्वारा वर्ष 1966 में मोरारजी देसाई की अध्यक्षता में प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC – Administrative Reform Committe) का गठन किया गया , जिसकी निम्न सिफारिश थी –
- संविधान के अनु०- 263 के अंतर्गत एक अंतर्राज्यीय परिषद् का गठन किया गया |
- राज्यपाल के पद पर ऐसे व्यक्ति की नियुक्ति की जाए जो किसी भी राजनीतिक दल से ना जुड़ा हो |
- राज्यों को अधिक वित्त स्वायतत्ता प्रदान की जाए |
- समवर्ती सूची के विषयों पर कानून राज्य व केंद्र सरकारें सहमति से बनाएं |
राज मन्नार समिति
वर्ष 1969 में केंद्र व राज्य संबंधो के विषय में सुझाव देने के लिए तमिलनाडु (TamilNadu) राज्य सरकार द्वारा P.V राज मन्नार की अध्यक्षता में 3 सदस्यीय समिति का गठन किया गया , जिसने वर्ष 1971 में तमिलनाडु सरकार को अपनी रिपोर्ट सौपीं जिसकी प्रमुख संस्तुतियां निम्न थी —
- प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक अंतर्राज्यीय परिषद् का गठन किया जाएँ जिसके सदस्य सभी राज्यों के मुख्यमंत्री हो |
- अखिल भारतीय सेवाओं की समाप्ति |
- संघ सूची व समवर्ती सूची के कुछ विषयों को राज्य सरकारों को हस्तांतरित किया जाएँ |
- राष्ट्रपति शासन (अनु०- 356, 357 व 365) को पूर्णतया समाप्त किया जाएँ |
- वित्त आयोग का एक स्थायी आयोग में परिवर्तन किया जाएँ |
- राज्यपाल के प्रसादपर्यंत राज्य मंत्रिपरिषद के पद धारण करने के प्रावधान को समाप्त किया जाएँ |
- अवशिष्ट शक्तियां राज्यों को प्राप्त की जाएँ |
सरकारिया आयोग
वर्ष 1983 में केंद्र सरकार द्वारा उच्चतम न्यायालय के सेनानिवृत न्यायाधीश रंजीत सिंह सरकारिया की सदस्यता में एक 3 सदस्यीय समिति का गठन किया गया , इस समिति ने अपनी रिपोर्ट वर्ष 1987 में पेश की जिसमे इस समिति ने कुल 247 सिफारिश की जिसकी प्रमुख सिफारिश निम्न थी —
- अनु० – 263 के अंतर्गत एक अंतर्राज्यीय परिषद् का गठन किया जाएँ |
- राष्ट्रपति शासन (अनु० – 356) का उपयोग तभी हो जब कोई अन्य विकल्प ना हो |
- अखिल भारतीय सेवाओं को और अधिक मजबूत बनाना चाहिए और ऐसी कुछ ओर सेवाओं का निर्माण किया जाना चाहिएँ |
- राज्यों को राज्य सूची से संबंधित कानूनों में संसोधन का अधिकार प्राप्त होना चाहिएँ |
- राज्यों में राज्यपाल की नियुक्ति हेतु संबंधित राज्य के मुख्यमंत्री से परामर्श किया जाना चाहिएँ |
- कार्यमुक्ति के पश्चात राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति के पद को छोड़कर किसी अन्य पद पर नहीं होनी चाहिएँ |
- राष्ट्रीय विकास परिषद् का नाम बदलकर राष्ट्रीय आर्थिक व विकास परिषद् रखा जाना चाहिएँ |
- योजना आयोग व वित्त आयोग के मध्य कार्यों का उचित विभाजन |
- केंद्र को बिना राज्य की स्वीकृति के सैन्य बलों की तैनाती की शक्ति प्रदान होगी |
- राज्यपाल विधानसभा में बहुमत की स्थिति सरकार को भंग नहीं कर सकता |
- राज्यपाल के 5 वर्ष के कार्यकाल को बिना किसी ठोस कारण के बाधित नहीं करना चाहिएँ |
वर्तमान तक केंद्र सरकार सरकारिया आयोग की 180 सिफारिशों को लागू कर चुकी है , इसमें सबसे महत्वपूर्ण 1990 में केंद्र राज्य परिषद् का भी गठन किया है |
द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग
केंद्र सरकार द्वारा वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में वर्ष 2005 में इस आयोग का गठन किया गया जिसकी निम्न सिफारिश थी —
- लोकपाल को संवैधानिक मान्यता व इसका नाम बदलकर राष्ट्रीय लोकायुक्त रखा जाएँ |
- लोकपाल का अध्यक्ष उच्चतम न्यायालय के किसी सेवानिवृत न्यायाधीश को बनाया जाएँ |
- सिविल सेवा में नैतिक संहिता का निर्माण किया जाएँ |
- राज्यों में केंद्रीय बलों की नियुक्ति के संबंध में स्पष्ट प्रावधान किए जाएँ |
- राजनीतिक दलों के लिए आचार संहिता का निर्माण किया जाएँ |
- केंद्र व राज्यों के मध्य जल विवादों की समाप्ति के लिए उपयुक्त कदम उठाए जा सके |
पुंछी आयोग
केंद्र व राज्य संबंधो की समीक्षा हेतु केंद्र सरकार द्वारा 2007 में उच्चतम न्यायालय ने सेवानिवृत मुख्य न्यायाधीश मदन मोहन पुंछी की अध्यक्षता में एक 4 सदस्यीय आयोग का गठन किया गया , जिसकी निम्न सिफारिश थी —
- यह सुनिश्चित करना की किसी राज्य में साम्प्रदायिक हिंसा , जातीय हिंसा या अन्य किसी प्रकार की हिंसा के संदर्भ में केंद्र सरकार की भूमिका , दायित्व व कार्यक्षेत्र कैसा होना चाहिएँ |
- इस बात की संभावना तलाश करना की स्वत: संज्ञान (Sumoto) के आधार पर केंद्र सरकार द्वारा केंद्रीय बलों को राज्यों में तैनात किया जा सके तथा देश की सुरक्षा को प्रभावित करने वालें अपराधों की जाँच कर सके |
- केंद्र व राज्य के मध्य संबंधों की वर्तमान स्थिति के आकलन हेतु उनमे सुधार हेतु उसमे उचित संस्तुति करना |
- राष्ट्रीय एकता व अखंडता को ध्यान में रखते हुए सुशासन सुनिश्चित करने हेतु व् नई चुनौतियों का सामना करने हेतु उपाय करना |
- केंद्र व राज्य के मध्य विधायी संबंध , आपातकाल , पंचायती राज व्यवस्था , संसाधनों का विभाजनों आदि के संबंध में केंद्र सरकार को उचित संस्तुतियां प्रदान करना |
केंद्र व राज्यों के मध्य मतभेद के मुख्य बिंदु
- राज्यपाल की नियुक्ति व बर्खास्तगी |
- राष्ट्रपति शासन
- राज्य में केंद्रीय बलों की नियुक्ति |
- राज्य विधेयकों को राष्ट्रपति की स्वीकृति हेतु आरक्षित रखना |
- केंद्र व राज्यों के मध्य करों का विभाजन |