बिहार की कृषि मानसूनी वर्षा पर आधारित कृषि है। बिहार राज्य में औसत वार्षिक वर्षा 1009 मिलीमीटर होती है, किन्तु वर्षा का लगभग 85% भाग जून-सितंबर के मध्य ही हो जाता है तथा शेष अवधि में मौसम शुष्क बना रहता है। शुष्क मौसम होने के कारण अन्य कृषि संबंधित कार्यों के लिए सिंचाई की आवश्यकता होती है। वर्षा की मात्रा और वितरण में भिन्नता के कारण राज्य के कुछ हिस्सों में बाढ़ तथा कुछ हिस्सों में सूखे की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
सिंचाई कृषि आधारित अर्थव्यवस्था को मूलभूत संरचना उपलब्ध कराती है। कृषि उत्पादकता में वृद्धि करने के लिए सिंचाई एक महत्त्वपूर्ण कारक है। कृषि उत्पादकता में वृद्धि करने के लिए अन्य प्रमुख कारक, जैसे — उर्वरक, यंत्रीकरण, कीटनाशक का प्रयोग आदि है। मानसून की अनिश्चितता के कारण बिहार में सिंचाई के साधनों का विस्तार अत्यंत आवश्यक है। वर्तमान समय में कृषि की उत्पादकता में वृद्धि हेतु सिंचाई सुविधाओं के विकास में सरकार द्वारा सकारात्मक प्रयास किया गया है, जिससे सिंचाई के साधनों का तेजी से विस्तार हुआ है।
बिहार में सिंचाई का कुल क्षेत्र 117.54 लाख हेक्टेयर है। जिसमे बृहद एवं मध्यम सिंचाई की क्षमता 53.53 लाख हेक्टेयर, जबकि लघु सिंचाई की क्षमता 64.01 लाख हेक्टेयर है। वर्तमान में बिहार में मात्र 67.46 लाख हेक्टेयर की सिंचाई क्षमता विकसित की जा सकी है, जो कुल अनुमानित क्षमता 117.54 लाख हेक्टेयर का मात्र
57.4 % है।
बिहार में सिंचाई के प्रमुख साधन (Major means of irrigation in Bihar)
बिहार में सिंचाई के चार प्रमुख साधन हैं –
- नहर,
- कुआँ,
- नलकूप,
- तालाब
नहरें (Canals)
नहरें बिहार में सिंचाई का प्रमुख साधन है। बिहार में 11 प्रमुख नहरें एवं इनकी उप-शाखाएँ हैं, जो विभिन्न जिलों में विस्तृत हैं। बिहार में नहरों को दो प्रमुख भागों में वर्गीकृत किया जा सकता हैं –
- नित्यवाही नहरें – वह नहरें जिनमे वर्ष भर जल भंडारण रहता हैं नित्यवाही नहरें कहलाती है। उत्तरी बिहार की अधिकांश नहरें नित्यवाही नहरें हैं, जो या तो सीधे नदियों से या उन पर निर्मित बांधो के कृत्रिम जलाशयों से निकाली गई हैं।
- मौसमी नहरें (अनित्यवाही नहरें) – वह नहरे जो नदियां से निकाली गई हैं, किन्तु इनमें नदियों से वर्षा काल का अतिरिक्त जल प्रवाहित होता है तथा अतिरिक्त समय इनमे बहुत कम पानी उपलब्ध होता है।
नलकूप (Tube well)
नलकूप बिहार में सिंचाई का दूसरा प्रमुख साधन हैं। बिहार में गंगा के मैदान की भौगोलिक बनावट पातालतोड़ कुआँ (Artigion Well) की तरह है, जिस कारण इस क्षेत्र में भूमिगत जल कम गहराई पर पाया जाता है। यह नलकूप (Tubewell) सिंचाई के लिए आदर्श स्थिति उत्पन्न करता है।
तालाब (Pond)
तालाबों द्वारा सिंचाई एक पुरानी पद्धति है, जो बिहार राज्य में लगभग सभी जिलों में अपनाई जाती है। तालाब प्राकृतिक और कृत्रिम दोनों प्रकार हैं। इनमें जल का भंडारण कर दिया जाता है, जो सिंचाई में उपयोग होता है।
कुएँ (Well)
इसके अतिरिक्त कुएँ प्राचीन समय से ही बिहार में सिंचाई का प्रमुख साधन रहे हैं। गंगा के मैदान में भू-जलस्तर पर्याप्त ऊँचाई पर है। कहीं-कहीं तो 10 फीट खोदने पर जल का स्रोत मिलने लगता है। कुओं से पानी निकालने के लिए ढेकली और रहट का प्रयोग किया जाता है, जो नालियों द्वारा खेतों तक पहुँचता है।
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