तंत्रिका तंत्र संवेदी अंगों, तंत्रिकाओं, मस्तिष्क, मेरुरज्जु एवं तंत्रिका कोशिकाओं से मिलकर बना होता है। तंत्रिकीय नियंत्रण एवं समन्वय का कार्य मुख्यतया मस्तिष्क तथा मेरुरज्जु के द्वारा किया जाता है। समस्त तंत्रिका तंत्र अनेक तंत्रिका कोशिकाओं से मिलकर बना होता है। एक तंत्रिका कोशिका दूसरी से एक अत्यन्त सूक्ष्म अंतर द्वारा अलग होती है। यह तंत्र विभिन्न अंगों के बीच समन्वय तथा बाह्य वातावरण के प्रति प्राणी की उत्तेजनशीलता के लिए उत्तरदायी होता है। मनुष्य में तंत्रिका तंत्र सर्वाधिक विकसित होता है, जिसके दो भाग हैं :
- केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र
- परिधीय तंत्रिका तंत्र
केन्द्रीय तंत्रिका तंत्रः
केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र मस्तिष्क व मेरूरज्जू से मिलकर बना होता है। समस्त वातावरण से आयी संवेदनाएं केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र में पहुंचती हैं। यहीं से किसी भी प्रतिक्रिया के लिए आदेश दिए जाते हैं।
परिधीय तंत्रिका तंत्र
यह तंत्र मस्तिष्क एवं मेरुरज्ज से निकलने वाली तंत्रिकाओं से बना होता है, जिन्हें क्रमशः कपालीय तंत्रिकाएं एवं मेरुरज्जु तंत्रिकाएं कहते हैं। मनुष्य में 12 जोड़ी कपालीय तंत्रिकाएं एवं 31 जोड़ी मेरुरज्जु तंत्रिकाएं होती हैं। परिधीय तंत्रिका तंत्र को भी दो भागों में बाटा जा सकता है –
- कायिक तंत्रिका तंत्र – इस तंत्र में अपवाही एवं अभिवाही दोनों प्रकार की तंत्रिकाएं पायी जाती हैं। इसका कार्य प्राणी को बाह्य परिवेश के प्रति समायोजित करना है।
- स्वायत्त तंत्रिका तंत्र – यह तंत्र कुछ मस्तिष्क एवं कुछ मेरुरज्जु तंत्रिकाओं का बना होता है। यह शरीर के सभी आंतरिक अंगों एवं
रक्त वाहनियों को तंत्रिकाओं की आपूर्ति करता है।
तंत्रिका तंत्र के कार्य
- तंत्रिका तंत्र विभिन्न अंगों की भिन्न-भिन्न क्रियाओं को संचालित एवं नियंत्रित करता है।
- यह समस्त मानसिक कार्यों को नियंत्रित करता है।
- यह मनुष्य को बाहरी वातावरण के अनुसार प्रतिक्रिया करने में मदद करता है।
- यह विभिन्न ग्रन्थियों एवं ऊतकों के प्रकार्यों में समन्वय बनाकर
- शरीर के आन्तरिक पर्यावरण का नियमन करता है।
केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र
मस्तिष्क
मस्तिष्क मानव शरीर का केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण अंग है और यह आदेश व नियंत्रण तंत्र की तरह कार्य करता है। मस्तिष्क केंद्रीय तंत्रिका तंत्र के तहत कार्य करता है।
मानव का मस्तिष्क मस्तिष्क-कोश क्रेनियम (Cranium) के अंदर अच्छी तरह सुरक्षित रहता है। क्रेनियम मस्तिष्क को बाहरी आघातों से बचाता है। इसके चारों ओर मेनिनजेज (Meninges) नामक एक आवरण पाया जाता है जिसकी तीन सतह होती हैं –
- ड्यूरामेटर,
- अरेकनॉइड
- पायामेटर
मेनिनजेज कोमल मस्तिष्क को बाहरी आघातों तथा दबाव से बचाता है। मेनिनजेज तथा मस्तिष्क के बीच सेरीब्रोस्पाइनल द्रव (Cerebrospinal fluid) भरा रहता है। मस्तिष्क की गुहा भी इसी द्रव्य से भरी रहती है। सेरोब्रोस्पाइनल द्रव मस्तिष्क को बाहरी आघातों से सुरक्षित रखने में मदद करता है। यह मस्तिष्क को नम बनाए रखता है। मानव मस्तिष्क को तीन प्रमुख भागों में विभाजित किया जा सकता –
- अग्रमस्तिष्क (Forebrain)
- मध्यमस्तिष्क (Midbrain) तथा
- पश्च मस्तिष्क (Forebrain or Prosencephalon)
अग्रमस्तिष्क (Forebrain or Prosencephalon)
यह दो भागों में बंटा होता है, जो निम्नलिखित है –
- प्रमस्तिष्क
- डाइएनसेफलॉन
प्रमस्तिष्क (Cerebrum) –
- यह मस्तिष्क के शीर्ष, पार्श्व तथा पश्च भागों को ढंके रहता है। यह मस्तिष्क का सबसे बड़ा भाग है।
- प्रमस्तिष्क गोलार्द्ध तंत्रिका ऊतकों से कॉर्पस कैलोसम (Corpus Callosum) नामक रचना के द्वारा जुड़ा रहता है।
- कॉर्टेक्स सेरीब्रम का बाहरी मोटा धूसर आवरण है, जिस पर अलग-अलग निर्दिष्ट केन्द्र होते हैं जो विभिन्न शारीरिक क्रियाओं का नियंत्रण एवं समन्वयन करते हैं। यह मस्तिष्क का अत्यन्त महत्वपूर्ण भाग है। इसे बुद्धि और चतुराई का केन्द्र भी कहा जाता है।
- जिस व्यक्ति में सेरीब्रम औसत से छोटा होता है तथा गाइरस एवं सल्कस कम विकसित होते हैं, वह व्यक्ति मन्दबुद्धि का होता है।
डाइनसेफलॉन (Diencephalon) –
यह अधिक या कम ताप के आभास तथा दर्द व रोने जैसी क्रियाओं को नियंत्रित करता है।
मध्य मस्तिष्क (Midbrain or Mesencephalon)
यह भाग मस्तिष्क के मध्य में स्थित होता है जो मस्तिष्क स्टेम का ऊपरी भाग है। इसमें अनेक तंत्रिका कोशिकाएं कई समूहों में मौजूद होती हैं। मध्य मस्तिष्क में संतुलन एवं आंख की पेशियों को नियंत्रित करने के केन्द्र होते हैं। मध्य मस्तिष्क दो भागों का बना होता है, जो निम्नलिखित है –
- कार्पोराक्वाड्रीजेमीन
- सेरीब्रल पेडन्कल
पश्चमस्तिष्क (Hind Brain or Rhomben Cephalon)
यह मस्तिष्क का सबसे पिछला भाग है जो अनुमस्तिष्क या सेरीबेलम (Cerebellum) एवं मस्तिष्क स्टेम का बना होता है।
अनुमस्तिष्क (Cerebellum) – इसे मेटेनसिफेलॉन भी कहते हैं। इसका मुख्य कार्य शरीर का संतुलन बनाए रखना है। यह शरीर की ऐच्छिक पेशियों के संकुचन पर नियंत्रण रखता है। यह आन्तरिक कान के संतुलन भाग से संवेदनाएं ग्रहण करता है।
मस्तिष्क स्टेम (Brain Stem) – इसके अन्तर्गत पॉन्स वैरोलाई (Pons Varolii) एवं मेडुला ऑब्लांगेटा (Medulla Oblongata)
आते हैं।
पॉन्स वैरालाई – तंत्रिका तंतुओं से निर्मित पॉन्स वैरोलाई मेडुला के अग्रभाग में स्थित होता है। यह श्वसन (Respiration) को नियंत्रित करता है।
मेडुला ऑब्लांगेटा – यह एक बेलनाकार रचना होती है जो पीछे की ओर स्पाइनल कॉर्ड या मेरुरज्जु के रूप में पाया जाता है। मेडुला द्वारा आवेगों का चालन मस्तिष्क और मेरुरज्जु के बीच होता है। मेडुला में अनेक तंत्रिका केंद्र होते हैं, जो हृदय स्पन्दन, रक्त चाप और श्वांस गति की दर का नियंत्रण करते हैं। मस्तिष्क के इसी भाग द्वारा विभिन्न प्रतिवर्ती क्रियाएं होती हैं।
प्रतिवर्ती क्रियाएं – इन्हें स्पाइनल प्रतिक्षेप भी कहते हैं। बाह्य उद्दीपनों के प्रति होने वाली यंत्रवत, तत्काल एवं अविवेचित अनुक्रिया जिसमें मस्तिष्क की कोई भूमिका नहीं होती है, प्रतिवर्ती क्रियाएं कहलाती हैं। इन क्रियाओं पर विचारों का कोई नियंत्रण नहीं होता है। जैसे – खांसना, छींकना, उल्टी करना, पाचक रसों के स्राव इत्यादि का नियंत्रण होता है।
मानव मेरुरज्जु (Human spinal cord)
मेडुला ऑब्लांगेटा का पिछला भाग मेरुरज्जु बनाता है। मेरुरज्जु के चारों ओर भी ड्यूरोमेटर, ऑक्नायड और पॉयमेटर का बना आवरण पाया जाता है। मेरुरज्जु के मध्य एक संकरी नली पायी जाती है जिसे केन्द्रीय नाल (Central canal) कहते हैं। केन्द्रीय नाल में सेरिब्रोस्पाइनल द्रव भरा रहता है। भीतरी स्तर को धूसर पदार्थ (Grey matter) तथा बाहरी स्तर को श्वेत पदार्थ (White matter) कहते हैं ।
धूसर पदार्थ तंत्रिका कोशिकाओं के डेन्ड्रान्स तथा न्यूरोम्लिया प्रबर्द्धा का बना होता है। जबकि श्वेत पदार्थ मेड्युलेटेड तंत्रिका तन्तुओं और न्यूरोम्लिया प्रवर्दी का बना होता है। मेरुरज्जु के दो प्रमुख कार्य हैं –
- यह प्रतिवर्ती क्रियाओं का नियंत्रण एवं समन्वयन करती है।
- यह मस्तिष्क से संचारित उद्दीपनों का संवहन करती है।
स्वायत्त या स्वचालित तंत्रिका तंत्र शरीर के सभी आंतरिक अंगों व रक्त वाहिनियों को तंत्रिकाओं की आपूर्ति करता है। स्वचालित तंत्रिका तंत्र के दो भाग होते हैं –
- नुकम्पी (Sympathetic)
- परानुकम्पी (Parasympathetic)
तंत्रिका विकार (Nervous disorder)
पार्किंसन रोग – यह केंद्रीय तंत्रिका तंत्र का रोग है जिसमें रोगी के शरीर के अंग कपन करते रहते हैं।
मिर्गी – यह एक तंत्रिकातंत्रीय विकार है जिसमें रोगी को बार-बार दौरे पड़ते हैं और दौरे के समय व्यक्ति का दिमागी संतुलन पूरी तरह से गड़बड़ा जाता है जिससे उसका शरीर लड़खड़ाने लगता है।
अल्जाइमर रोग – यह ‘भूलने का रोग’ है। अल्जाइमर से दिमाग की कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं। रक्तचाप, मधुमेह, आधुनिक जीवन शैली और सिर में कई बार चोट लग जाने से इस बीमारी के होने की आशंका बढ़ जाती है।