पौधों में होने वाली जैविक क्रियाओं के बीच समन्वय स्थापित करने वाले रासायनिक पदार्थों को पादप हार्मोन या फाइटोहार्मोन कहते हैं। ये पौधों की वृद्धि एवं अनेक उपापचयी क्रियाओं को नियंत्रिक एवं प्रभावित करते बहुत से कार्बनिक यौगिक जो पौधों में उत्पन्न नहीं होते, परंतु पादप हार्मोन की तरह कार्य करते हैं, उन्हें भी वृद्धि नियंत्रक पदार्थ (Growth regulators) कहा जाता है। रासायनिक संगठन तथा कार्यविधि के आधार पर पौधों में मौजूद हार्मोन के पांच प्रकार होते हैं –
ऑक्शिन (Ausin)
यह कार्बनिक यौगिकों का वह समूह हैं जो पौधों में कोशिका विभाजन (Cell division) और कोशिका दीर्घन (Cell elagation) में भाग लेता है। जैसे – इन्डोल एसीटिक एसिड (IAA) व नेपथैलिन एसीटिक एसिड (Napththalene-NAA)।
- ये जड़ की वृद्धि को नियंत्रित करते हैं।
- पत्तियों के झड़ने तथा फलों के गिरने पर ऑक्जिन का नियंत्रण करता है।
- गेहूं और मक्का के खेतों में ऑक्जिन खर-पतवार नाशक के रूप में कार्य करता है।
जिबरैलिन्स (Gibberellins)
- यह एक जटिल कार्बनिक यौगिक है, जैसे – जिबरेलिक अम्ल ।
- यह तने को लंबा बनाता है।
- इसका प्रयोग कर बीजरहित फलों का उत्पादन किया जाता है।
- यह बीजों को अंकुरित होने के लिए प्रेरित करता है।
साइटोकाइनिन (Cytokinins)
- यह एक क्षारीय प्रकृति का हार्मोन होता है, जोकि कोशिका विभाजन के लिए एक आवश्यक हार्मोन हैं।
- यह ऊतकों एवं कोशिकाओं के विभेदन का कार्य करता है।
- साइटोकाइनिन बीजों के अंकुरण (Germination) को प्रेरित करते
एथिलीन (Ethylene)
- यह गैसीय रूप में पौधों में पाया जाने वाला हार्मोन होता है। इसका निर्माण पौधे के प्रत्येक हिस्से में होता है।
- इससे पौधे की चौड़ाई में वृद्धि होती हैं।
- यह फलों की झड़ने की क्रिया को नियंत्रित करता है।
- यह हार्मोन फलों को पकाने में मुख्य भूमिका निभाता है।
ऐब्ससिसिक अम्ल (Abscissic Acid)
- यह पौधे की वृद्धि को रोकता है यानि वृद्धिरोधी (Growth inhibitor) हार्मोन होता है।
- यह पत्तियों के झड़ने की क्रिया को नियंत्रित करता है।
- यह बीजों को सुषुप्तावस्था (Dorment stage) में लाता है।
- यह वाष्पोत्सर्जन की क्रिया का नियंत्रण रंधों (Stomata) को बन्द करके करता है।
फ्लोरिजेन्स (Florigens)
- इसका संश्लेषण पत्तियों में होता है, लेकिन ये फूलों के खिलने (Blooming) में मदद करते हैं।
- फ्लोरिजेन्स हार्मोन को फूल खिलाने वाला हार्मोन भी कहते हैं।
जल एवं पोषण का अपवाहन कैसे होता है।
वाष्पोत्सर्जन – वाष्पोत्सर्जन में पादप सतह से जल वाष्प के रूप में उड़ता है। यह जल पत्ती की निम्न सतह पर उपस्थित रंध्रों के माध्यम से निष्कासित हो जाता है। वास्तव में जल के वाष्पित होने से घर्षण उत्पन्न होता है जो जल को जाइलेम (Xylem) से खींचता है। वाष्पोत्सर्जन को प्रभावित करने वाले कारक निम्न है, जैसे – तापमान, प्रकाश तीव्रता और अवधि, वायु की गति और आर्द्रता।
कोशिका क्रिया – इस क्रिया के कारण ही जल जड़ से पत्तियों तक पहुंचता है। यह जल के अणुओं और पादप के अंदर वाहनियों के बीच में एक आसंजक आकर्षण होता है।
विसरण – किसी पौधे के अंदर लगभग सभी रसायन उन क्षेत्रों में जाते हैं जहां संतुलन बनाये रखने के लिए रसायनों की पर्याप्त
मात्रा नहीं होती है।
विषाणु
विषाणु की खोज दमित्री इवानोवस्की (Dmitri Ivanovsky) ने की। इसके अस्तित्व के बारे में अभी भी विरोधाभास है। कुछ विशेषज्ञों के अनुसार विषाणु सजीव जबकि कुछ अन्य इसे निर्जीव मानते हैं।
- वायरस प्रोटीन एवं डीएनए (DNA) या आरएनए (RNA) से मिलकर बनता है।
- लुई पाश्चर और बीजरिंक ने इसको जीवित तरल संक्रामक माना।
- एड्स के विषाणु को 1986 में मानव इम्यूनों वायरस (HIV) नाम दिया गया।
जीवाणु
जीवाणु की खोज सर्वप्रथम लीवेनहाक द्वारा की गई थी। जबकि बैक्टीरिया द्वारा रोग उत्पन्न करने वाले लक्षण की खोज रोबर्ट कोच ने की। इसको सर्वव्यापी (Cosmopolitan) भी कहा जाता है। लाभदायक बैक्टीरिया भूमि की उर्वरता में वृद्धि, दूध का दही में परिवर्तन, सिरका बनाने, तम्बाकू की पत्ती का स्वाद बढ़ाने, रेशों के रेटिंग में, चाय की पत्तियों की क्यूरिंग में, प्रतिजैविकी औषधियों के निर्माण आदि में उपयोगी किए जाते हैं।
कवक (Fungus)
कवक हरितलवक रहित, संकेंद्रीय, संवहन ऊतक रहित थैलोफाइटा है। पर्णहरित विहीन होने के कारा कवक अपना भोजन स्वयं नहीं बना पाते हैं। इसमें संचित भोजन ग्लाइकोजेन के रूप में रहता है। कवक संसार में उन सभी भागों में पाये जाते हैं जहां जीवित अथवा मृत कार्बनिक पदार्थ पाये जाते हैं। ये जंतुओं एवं पौधों के अवशेषों को विघटित कर देते हैं। यीस्ट का उपयोग ऐल्कोहल उद्योग में होता है। इनसे कई प्रकार के एंजाइम प्राप्त किये जाते हैं।