नेत्र एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण ज्ञानेंद्रिय है। यह हमारा नेत्र ही है जो हमें अपने चारों ओर फैली रंगीन दुनिया को देखने में सक्षम बनाती है। नेत्र कार्य एक कैमरे के कार्य जैसा होता है।
आंख के बाहरी भाग (Outer part of the eye)
केंद्रीय पुतली (Central pupil) – नेत्र गोलक के केंद्र में छोटा काला छेद पुतली (Pupil) स्थित होता है। इसके माध्यम से प्रकाश आंख में प्रवेश करता है।
आईरिस (Iris) – यह संरचना पुतली के आसपास रंगीन रिंग की तरह होती है। यह काली, हरी या नीली रंग की हो सकती हैं, जो किसी व्यक्ति की आंखों का रंग निर्धारित करती है। आईरिस प्रकाश की मात्रा को सिलिअरी मांसपेशियों (Ciliary Muscle) की मदद से आंख में प्रवेश करने की प्रक्रिया को नियंत्रित करता है और प्रकाश की स्थिति के अनुसार संकुचन और विकास के आधार पर पुतली का आकार बदलते रहता है।
कॉर्निया (Cornea) – पुतली (Pupil) और आईरिस, जो पारदर्शी होते हैं, उन पर पतली उत्तल कवर होती है जो प्रकाश को आंख में प्रवेश की अनुमति देती है। चिकनी वक्रता कॉर्निया (Curvature cornea) के स्पष्ट दृष्टि के लिए आवश्यक है। कॉर्निया की सतह में कोई विकृति होने पर, प्रकाश की किरणे असामान्य हो जाती हैं और दृष्टि में समस्याओं का कारण बन जाती हैं।
श्वेतपटल (Sclera) – यह केंद्रीय आईरिस (Iris) और पुतली (Pupil) के चारों ओर आंख का सफेद भाग हैं और वास्तव में यह पादर्शी कॉर्निया को छोड़कर, जो कैमरे की भांति प्रकाश को प्रवेश की अनुमति देता है, एक मोटी, अपारदर्शी शीट की तरह पूरा नेत्र गोलक को कवर करती हैं।
कंजक्टिवा (Conjunctiva) – यह एक पतली अदृश्य पारदर्शी कोटिंग, सुरक्षा परत मिट्टी और बाहरी वस्तुओं को श्वेतपटल के साथ सीधे संपर्क में आने से रोकती है। इसमें रक्त वाहिकाएं समाहित होती हैं जो श्वेतपटल का पोषण करती हैं। इस परत के सामान्यतः संक्रमित होने पर नेत्रश्लेष्मलाशोथ (आंख आना) होता है।
आंख के भीतरी भाग (Inner part of the eye)
लेंस (Lens) – मानव लैंस वास्तव में आवर्धक लेंस या चश्मे में प्रयुक्त द्वि-उत्तल लैंस जैसा दिखता है। यह एक विशेष प्रोटीन से बना होता है और बहुत लचीला होता है। यह आंख में प्रकाश को प्रवेश की मात्रा और वस्तु की दूरी के अनुसार व्यास वे मोटाई को बदल सकता है ताकि आंखों से देखा जा सके।
इंटीरियर चैम्बर (Interior chamber) – कॉर्निया (Cornea) और लेंस (Lens) के बीच की जगह को आंख का इंटीरियर चैम्बर कहा जाता है। यह एक विशेष जलीय तरल से भरा होता है, जिसे एक्वेस ह्यूमर (Aqueous Humor) कहा जाता है। यह इंटीरियर चैम्बर के ढांचे में सामान्य तनाव को बनाये रखता है। इस तरह के तनाव का मोतियाबिंद (cataracts) जैसी स्थितियों में काफी महत्व होता है।
पोस्टिरियर चैम्बर (Posterior chamber) – लैंस के अतिरिक्त नेत्र गोलक के इंटीरियर भाग को मोटिरियर चैम्बर कहा जाता है। यह एक अन्य विशेष चिपचिपे जैली जैसे तरल पदार्थ से भरा होता है जिसे विट्रियस ह्यूमर (vitreous humour ) कहते हैं।
पोस्टिरियर चैम्बर की भीतरी दीवारें – पेस्टिरियर चैम्बर की भीतरी परत में दो विशेष संरचनाएं होती हैं जो कोरयाड (Coread) और रेटिना (Retina) कहलाती हैं।
कोरयाड (Coread) – पोस्टिरियर चैम्बर में रक्त वाहिकाओं का एक जाल हो। है जो आंख के इस कक्ष की संरचनाओं को रक्त की आपूर्ति के लिए उत्तरदायी होता है।
रेटिना (Retina) – यह आंख की सबसे महत्वपूर्ण परत है। यह विशेष प्रकाश संवेदनशील कोशिकाओं से बनी होती है, जो चित्रों के रंग और छवियों के काले और सफेद अंश को अच्छी तरह से अवशोषित करती है और उन्हें इलेक्ट्रिकल संवेदन में परिवर्तन कर मस्तिष्क द्वारा संसाधित होने पर दिखाई देती हैं।
ऑप्टिक तंत्रिका (Optic nerve) – यह दृष्टि की वह तंत्रिका है, जो रेटिना से इलेक्ट्रिकल संवेदन इकट्ठा करती है और उन्हें मस्तिष्क के दृश्य केंद्रों तक पहुंचाती है।
इस प्रकार, जब भी हम अपनी आंखें खोलते हैं, आईरिस पुतली का आकार इतना समायोजित हो जाता है कि प्रकाश की उचित मात्रा ही आंख में प्रवेश कर पाती है। लैंस से प्रकाश इतना फोकस होता है कि यह रेटिना पर एक सही छवि बनाता है। रेटिनल कोशिकाएं दृश्य संवेदन को इलेक्ट्रिकल संवेदन में परिवर्तित कर उन्हें ऑप्टिक नर्व के द्वारा मस्तिष्क को संचारित करती हैं।
रक्त वर्णान्धता (Blood blindness) – इसे डाल्टोनिज्म (Daltonism) भी कहते हैं। इससे पीड़ित व्यक्ति लाल एवं हरे रंग का भेद नहीं कर पाते हैं। यह रोग वंशगति के द्वारा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाता है।
दृष्टि दोष
निकट दृष्टि दोष (Myopia) –
निकट-दृष्टि दोष को निकटदृष्टिता (Nearsightedness) भी कहते हैं। निकट दृष्टि वाले व्यक्ति स्पष्ट रूप से उन चीजों को देख सकते हैं जो उनके करीब हैं, लेकिन वे दूर रखी चीजों को स्पष्ट रूप से नहीं देख सकते हैं। इस दृष्टिदोष से ग्रसित व्यक्ति का दूर-बिंदु अनंत पर न होकर नेत्र के पास आ जाता है। ऐसा व्यक्ति कुछ मीटर दूर रखी वस्तुओं को ही सुस्पष्ट देख पाता है। निकट-दृष्टि दोषयुक्त नेत्र में, किसी दूर रखी वस्तु का प्रतिबिंब दृष्टिपटल (रेटिना) पर न बनकर दृष्टिपटल (Retina) के सामने बनता है। निकट-दृष्टि दोष के उत्पन्न होने के कारण हैं
- अभिनेत्र लेंस की वक्रता का अत्यधिक होना
- नेत्र गोलक का लंबा हो जाना।
इस दोष को किसी उपयुक्त क्षमता के अवतल लेंस/अपसारी लेंस (Concave lens) के उपयोग द्वारा संशोधित किया जा सकता है।
दूर दृष्टि दोष (Hypermetropia) –
दीर्घ-दृष्टि दोष दीर्घ-दृष्टि दोष को दूर-दृष्टिता (Far-sightedness) भी कहते हैं। दीर्घ-दृष्टि दोषयुक्त से ग्रसित कोई व्यक्ति दूर की वस्तुओं को तो स्पष्ट देख सकता है, किन्तु निकट रखी वस्तुओं को स्पष्ट नहीं देख पाता। इस दृष्टिदोष से ग्रसित व्यक्ति का निकट-बिंदु सामान्य (25 cm) से दूर हट जाता है। दूर-दृष्टि दोषयुक्त नेत्र में पास रखी वस्तु से आने वाली प्रकाश किरणें दृष्टिपटल (रेटिना) के पीछे फोकसित होती हैं। इस दोष के उत्पन्न होने के कारण निम्नलिखित हैं
- अभिनेत्र लेंस की फोकस दूरी का अत्यधिक हो जाना
- नेत्र गोलक का छोटा हो जाना।
इस दोष को उपयुक्त क्षमता के अभिसारी लेंस/उत्तल लेंस (convex lens) का उपयोग करके संशोधित किया जा सकता है।
जरा दूर दृष्टि (Presbyopia) –
आयु में वृद्धि होने के साथ-साथ मानव नेत्र की समंजन-क्षमता भी क्षमता कम होती जाती है। अधिकांश व्यक्तियों का निकट-बिंदु दूर हट जाता है। इसे दूर करने के लिए अवतल लेंस (Concave Lens) का प्रयोग किया जाता है। इस दोष को जरा-दूरदृष्टिता कहते हैं। यह पक्ष्माभी पेशियों (Side muscles) के धीरे-धीरे दुर्बल होने तथा क्रिस्टलीय लेंस (crystalline lens) के लचीलेपन में कमी आने के कारण उत्पन्न होता है। कभी-कभी किसी व्यक्ति के नेत्र में दोनों ही प्रकार के दोष निकट-दृष्टि तथा दर-दुष्टि दोष हो सकते हैं। ऐसे व्यक्तियों को वस्तुओं को स्पष्ट देख सकने के लिए प्रायः द्विफोकसी लेंसों (Bi-focal lens) की आवश्यकता होती है। सामान्य प्रकार के द्विफोकसी लेंसों में अवतल (Concave) तथा उत्तल (Convex) दोनों लेंस होते हैं।
- ऊपरी भाग अवतल लेंस (Concave Lens) होता है। यह दूर की वस्तुओं को स्पष्ट देखने में सहायता करता है।
- निचला भाग उत्तल लेंस (Convex Lens) होता है। यह पास निकट की वस्तुओं को स्पष्ट देखने में सहायक होता है।
वक्रदृष्टि (Estimarism)
क्षैतिज तल में रखी वस्तुओं को स्पष्ट देख लेता है, किन्तु ऊर्ध्वाधर तल में रखी वस्तुओं को नहीं देख पाता है। इसे दूर करने के लिए बेलनाकार लेंस का प्रयोग किया जाता है।
द्विदृष्टिता (Diplopia)
यह रोग आंख की मांसपेशियों से, पक्षाघात (Paralysis) के कारण नशीली दवाओं और एल्कोहल के सेवन से होता है।