गढ़वाल शैली की चित्रकला के अतिरिक्त उत्तराखंड में विभिन्न मांगलिकअवसरों पर विभिन्न प्रकार के लोकचित्र बनाने की परम्परा है। जैसे − ऐंपण (छिपण), ज्यूंति मातृका, प्रकीर्ण , पौ, डिकारे, पट्ट आदि।
ऐंपण (छिपण) – ऐंपण से तात्पर्य लीपने या सजावट करने से है। ऐंपण को किसी धार्मिक या मांगलिक अवसर पर देहरी व आंगन में बनाया जाता है। ऐंपण बनाने में सर्वप्रथम गेरू (लाल मिट्टी) से लिपा जाता है, तथा उसके ऊपर विस्वार (चावल के आटे का घोल) से सुंदर आकृतियाँ बनाई जाती है। जैसे – सूर्य, चंद्र, स्वास्तिक, शंख, घंटा, विविध पुष्प, आदि।
थापा चित्र – यह चित्र किसी मांगलिक व त्योहारों के अवसरों पर विस्वार (चावल के आटे का घोल) व अन्य रंगों से बनाए जाते हैं।
नात या टुपुक चित्र – इन चित्रों के अंतर्गत सर्वप्रथम गेरू (लाल मिट्टी) से रसोई घरों की दीवारों लिपा जाता है, तथा उसके ऊपर विस्वार (चावल के आटे का घोल) से देवी देवताओं की सुंदर आकृतियाँ बनाई जाती है।
वसुधारा चित्र – यह चित्र कुछ खास अवसरों पर घर के पूजा स्थल व देहरी को सर्वप्रथम गेरू (लाल मिट्टी) से लिपा जाता है, तथा उसके ऊपर विस्वार (चावल के आटे का घोल) से सुंदर आकृतियाँ बनाई जाती है।
ज्यूंति मातृका चित्र – यह चित्र सामान्यतः नवरात्रि, जन्माष्टमी, दशहरा, दीपावली आदि त्यौहारों या मांगलिक अवसरों पर बनाएँ जाते है। इस लोकचित्र कला में विभिन्न रंगों का प्रयोग कर देवी देवताओं के चित्र बनाये जाते हैं।
प्रकीर्ण चित्र – इस लोकचित्र कला के अंतर्गत रंग व ब्रश या अंगुलियों के द्वारा दरवाजों, चौराहों व कागजों आदि पर विभिन्न प्रकार के चित्र बनाये जाते हैं।
लक्ष्मी पौ चित्र – यह लोकचित्र दीपावली के शुभ अवसर पर घर के मुख्य द्वार से पूजागृह या तिजोरी तक देवी लक्ष्मी के पद चिन्ह बनाएं जाते हैं। इन्हें पौ चित्र या लक्ष्मी पौ चित्र कहा जाता है।
अन्य प्रमुख लोकचित्र
उत्तराखंड में उपरोक्त चित्रों के अतिरिक्त अन्य लोकचित्र भी बनाएं जाते है –
- आरती की थाली पर – ‘सेली लोकचित्र’
- शुभकार्य में बुरी आत्माओं से रक्षा हेतु – ‘स्यो लोकचित्र’
- शादी के मंडप पर – ‘खोडिया लोकचित्र’
- शरीर पर बनाएं जाने वाले चित्र – गाजो या गोदना (नाम, फूल-पत्ती, देवता के चित्र आदि)
- प्रवेश द्वारों पर चिपकाने हेतु लाल-पीले-हरे रंग – म्वाली लोकचित्र
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