वर्ष 2020 में पोंगल त्यौहार (Pongal festival) के अवसर पर तमिलनाडु में आयोजित तीन जल्लीकट्टू आयोजनों में 100 से अधिक लोग घायल हुए।
- जल्लीकट्टू एक पारंपरिक बुल-टेमिंग इवेंट (Bull taming event) है जो तमिलनाडु राज्य में प्रत्येक वर्ष फसल उत्सव पोंगल के अवसर पर आयोजित किया जाता है।
प्रमुख बिंदु
जल्लीकट्टू महोत्सव − इस महोत्सव में दौड़ने वाले बैल को पकड़ने के लिए लड़ाकों की आवश्यकता होती है, जो बैल के कूबड़ को पकड़ने और गिरने या चोट लगने के बिना आगे बढ़ने की कोशिश करें।
पुरानी परंपरा
- जल्लीकट्टू एक पुरानी परंपरा है। बैल के नामकरण का एक प्राचीन संदर्भ मोहनजोदड़ो में खोजी गई एक मुहर में मिलता है, जो 2,500 ईसा पूर्व और 1,800 ईसा पूर्व के बीच की है। जल्लीकट्टू महोत्सव को इरू थेजुवल या “बैल को गले लगाना” के नाम से भी जाना जाता है।
- जल्लीकट्टू ’शब्द,‘ का उद्भव तमिल शब्द “सल्ली कसु” से हुआ है जिसका अर्थ “सिक्के” और “कट्टू” है जिसका अर्थ है कि पुरस्कार राशि के रूप में सांडों के सींग से बंधा हुआ एक पैकेज।
जल्लीकट्टू महोत्सव से जुड़ा विवाद
- 2014 में, सुप्रीम कोर्ट ने पशु कल्याण बोर्ड ऑफ इंडिया और द पीपुल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (PETA) द्वारा दायर याचिका के बाद जल्लीकट्टू महोत्सव के आयोजन पर रोक लगा दी थी।
- हालांकि, राज्य सरकार ने तर्क देकर कहा कि जल्लीकट्टू हमारी संस्कृति और पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। चेन्नई में बड़े पैमाने पर विरोध के बाद जनवरी 2017 में जल्लीकट्टू महोत्सव पर लगा प्रतिबंध हटा दिया गया था।
- हालांकि, बैल के उपचार के लिए तथा प्रतिभागियों की जांच करने और दर्शकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक सिस्टम हैं, पशु अधिकार कार्यकर्ताओं का आरोप है कि पशु क्रूरता अभी भी जारी है।
Note:
कंबाला एक पारंपरिक बैल, भैंस की दौड़ है जो आमतौर पर नवंबर से मार्च तक कर्नाटक के तटीय क्षेत्र में होती है। PETA (People for the Ethical Treatment of Animals ) ने आरोप लगाया है कि कंबाला में जानवरों पर क्रूरता के कार्य भी शामिल हैं जो शारीरिक रूप से रेसिंग के लिए अनुकूल नहीं हैं।