साधरण भाषा में भूकंप का अर्थ है – पृथ्वी का कंपन (Vibration)। यह एक प्राकृतिक घटना है। जिसमें ऊर्जा के निकलने के कारण तरंगें उत्पन्न होती हैं, जो सभी दिशाओं में विस्तृत होकर भूकंप उत्पन्न करती है।
कंपन के कारण
सामान्यतः भ्रंश के किनारे-किनारे ही ऊर्जा निकलती है। क्योंकि भू-पर्पटी (Earth Crust) की शैलों में गहन दरारें ही भ्रंश (Fault) होती हैं। भ्रंश के दोनों तरफ शैलें विपरीत दिशा में गति करती है। जहाँ शैलखंड (Shalakhand) के कारण दबाव बढ़ता है, उनके आपस का घर्षण उन्हें परस्पर बांधे रहता है। फ़िर भी, अलग होने की प्रवृत्ति के कारण घर्षण का प्रभाव कम हो जाता है जिसके परिणामस्वरूप शैलखंड विकृत होकर अचानक एक दूसरे के विपरीत दिशा में सरक जाते है। इस के परिणामस्वरूप ऊर्जा निकलती है और ऊर्जा तरंगें (Energy waves)
सभी दिशाओं में गतिमान होती हैं। वह स्थान जहाँ से ऊर्जा निकलती है, भूकंप का उद्गम केंद्र (Focus) कहलाता है। इसे अवकेंद्र (Hypocentre) भी कहा जाता है। ऊर्जा तंरगें अलग-अलग दिशाओं में चलती हुई पृथ्वी की सतह तक पहुँचती हैं। भूतल पर वह बिंदु जो उद्गम केंद्र के समीपतम होता है, अधिकेंद्र (Epicentre) कहलाता है। अधिकेंद्र (Epicentre) पर ही सबसे पहले तंरगों को महसूस किया जाता है।
सभी प्राकृतिक भूकंप स्थलमंडल (Lithosphere) में ही आते हैं।
भूकंपीय तरंगें दो प्रकार की हैं …
- भूगर्भिक तरंगें (Body waves)
- धरातलीय तरंगें (Surface waves)
भूगर्भिक तरंगें – भूगर्भिक तंरगों का उद्गम केंद्र से ऊर्जा के मुक्त होने के दौरान पैदा होती हैं और पृथ्वी के अंदरूनी भाग से होकर सभी दिशाओं में आगे बढ़ती हैं। इसलिए इन्हें भूगर्भिक तरंगें (Body waves) कहा जाता है।
धरातलीय तरंगें – भूगर्भिक तरंगों एवं धरातलीय शैलों के मध्य अन्योन्य क्रिया के कारण नई तरंगें उत्पन्न होती हैं जिन्हें ध्रारातलीय तरंगें कहा जाता है। ये तरंगें ध्ररातल के साथ-साथ चलती हैं।
तंरगों का वेग अलग-अलग घनत्व (Density) वाले पदार्थों से गुजरने पर परिवर्तित हो जाता है। अध्कि घनत्व वाले पदार्थों में तरंगों का वेग अधिक होता है। पदार्थों के घनत्व में भिन्नताएँ होने के कारण परावर्तन (Reflection) एवं आवर्तन (Refrection) होता है, जिससे इन तरंगों की दिशा भी बदलती है।
भूगर्भीय तरंगें भी दो प्रकार की होती हैं।
- P – तरंगें (P waves)
- S – तरंगें (S waves)
P तरंगें तीव्र गति से चलने वाली तरंगें हैं और ध्ररातल पर सबसे पहले पहॅुँचती हैं। इन्हें प्राथमिक तरंगें (Primary Waves) भी कहा जाता है। P तरंगें ध्वनि तरंगों (Sound waves) जैसी होती हैं। ये गैस (Gas), तरल (Liquid) व ठोस (Solid) तीनों प्रकार के पदार्थों से गुजर सकती हैं।
S तरंगें ध्ररातल पर कुछ समय अंतराल के बाद पहुँचती हैं। ये द्वितीयक तरंगें (Secoandry Waves) कहलाती हैं। S तंरगों केवल ठोस पदार्थों के ही माध्यम से चलती हैं। S तरंगों की यह एक महत्वपूर्ण विशेषता है। इसी विशेषता ने वैज्ञानिकों (Scientiest) को भूगर्भीय संरचना समझने में मदद की।
परावर्तन (Reflection) से तरंगें प्रतिध्वनित होकर वापस लौट आती है, जबकि आवर्तन (Refrection) से तरंगें कई दिशाओं में चलती हैं। ध्ररातलीय तरंगें ज्यादा विनाशकारी होती हैं। इनसे शैल विस्थापित होती हैं और इमारतें (Building) गिर जाती हैं।
भूकंपपीय तरंगों का संचरण
भिन्न-भिन्न प्रकार की भूकंपपीय तरंगों के संचरित होने की प्रणाली भिन्न-भिन्न होती है। जैसे ही ये संचरित होती हैं तो शैलों में कंपन (Vibration) पैदा होती है। P तरंगों से कंपन (Vibration) की दिशा तरंगों की दिशा के समानांतर ही होती है। यह संचरण गति की दिशा में ही पदार्थ पर दबाव डालती है। इसके दबाव के फलस्वरूप पदार्थ (Matter) के घनत्व में भिन्नता आती है और शैलों में संकुचन (Contraction) व फैलाव (Spread) की प्रक्रिया पैदा होती है। अन्य तीन तरह की तरंगें संचरण गति के समकोण दिशा में कंपन पैदा करती हैं। S तरंगें ऊर्ध्वाधर (Vertical) तल में, तरंगों की दिशा के समकोण पर कंपन पैदा करती हैं। अतः ये जिस पदार्थ से गुजरती हैं उसमें उभार व गर्त बनाती हैं। ध्रातलीय तरंगें सबसे अधिक विनाशकारी समझी जाती हैं।
छाया क्षेत्र (Shadow Zone)
भूकंपलेखी यंत्र (Seismograph) पर दूरस्थ स्थानों से आने वाली भूवंफपीय तरंगें अभिलेखित होती हैं। यद्यपि कुछ ऐसे क्षेत्र भी हैं जहाँ कोई भी भूकंपपीय तरंग अभिलेखित नहीं होती। ऐसे क्षेत्र को भूकंपपीय छाया क्षेत्र (Seismic shadow area) कहा जाता है।
भूकंप के प्रकार
विवर्तनिक (Tectonic) – भूकंप ही अधिक आते हैं। ये भूकंप भ्रंशतल (Deceptive) के किनारे चट्टानों के सरक जाने के कारण उत्पन्न होते हैं। एक विशिष्ट वर्ग वेफ विवर्तनिक भूकंप को ही ज्वालामुखीजन्य (Volcanoic) भूकंप समझा जाता है। ये भूकंप अधिकांशतः सक्रिय ज्वालामुखी (Active volcano) क्षेत्रों तक ही सीमित रहते हैं।
नियात (Collapse) – खनन क्षेत्रों में कभी-कभी अत्यध्कि खनन कार्य से भूमिगत खानों की छत ढह जाती है, जिससे हल्के झटके महसूस किए जाते हैं। इन्हें नियात (Collapse) भूकंप कहा जाता है।
विस्फोट (Explosion) – कभी-कभी परमाणु व रासायनिक विस्फोट से भी भूमि में कंपन होती है। इस तरह के झटकों को विस्फोट (Explosion) भूकंप कहते हैं।
बाँध जनित (Reservoir induced) – जो भूकंप बड़े बाँघ वाले क्षेत्रों में आते हैं, उन्हें बाँध जनित (Reservoir induced) भूकंप कहा जाता है।