चंद वंश के राजा जगतचंद के शासनकाल को कुमाऊं का स्वर्णकाल कहा जाता है।
चंदवंशीय राजकुमार “गंगनाथ” को अल्मोड़ा में घर-घर में पूजा जाता है।
एटकिंसन के अनुसार अशोकचल्ल के गोपेश्वर त्रिशूल लेख की तिथि वर्ष 1191 ई. है।
गोरखा राजाओं ने राईजाति की बहादुरी से खुश होकर उन्हें सुब्बा की उपाधि दी थी।
कुमाऊं और नेपाल में नाक के सिरे से लेकर सिर के ऊपर तक पीठा (पिठियाँ / रोली) लगाने की प्रथा है। यह प्रथा नेपाल की देन है।
उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में गोमुख पर्वत के समीप केदार खर्क बुग्याल स्थित है।
मणिकार्णिक कुण्ड, उत्तराखंड के गुप्तकाशी (रुद्रप्रयाग जिले) में स्थित है।
वर्ष 1885 में टिहरी रियासत द्वारा वन विभाग की स्थापना की गयी थी।
सर्वप्रथम वर्ष 1956 में रूपकुण्ड में वैज्ञानिक का दल अनुसंधान के लिए पहुंचा था।
जसुली शौक्याणी द्वारा तीर्थ यात्रा मार्ग में धर्मशाला का निर्माण करवाया गया था।
आधुनिक हरिद्वार की नींव राजा मानसिंह ने रखी थी।
राजा बेन का किला उत्तराखंड के हरिद्वार जिले में स्थित है।
लामा ताल उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में स्थित है।
वर्ष 1815 में जौनसार भाबर को तथा वर्ष 1829 में चकराता को देहरादून में शामिल किया गया था।
वर्ष 1842 में उत्तराखंड से प्रकाशित होने वाला प्रथम समाचार पत्र द हिल्स (The Hills) था। जिसका प्रकाशन मसूरी से होता था।
वर्ष 1871 में प्रकाशित होने वाला कुमाऊंनी भाषा का प्रथम समाचार पत्र अल्मोड़ा अखबार था।
महात्मा गांधी शताब्दी नेत्र चिकित्सा एवं विज्ञान केंद्र, उत्तराखंड के देहरादून जिले में स्थित है।
वर्ष 1847 में एशिया के पहले इंजीनियरिंग कॉलेज की स्थापना रुड़की (Roorkee) में की गयी थी।
कुण्डाखार प्रथा – उत्तराखण्ड के शौका एवं हणियां के मध्य व्यापारिक अनुबंध को कुण्डाखार प्रथा कहते है।
बद्री विशाल के कपाट खुलने से पूर्व शनिवार के दिन तिमुड़ा मेला लगता है।
उत्तराखंड दर्पण पत्र का प्रकाशन उधमसिंह नगर जिले से होता था।
शंकराचार्य द्वारा पूर्णागिरि देवी पीठ की स्थापना जोशीमठ (चमोली) में की गयी थी।
माता पूर्णागिरि शक्ति पीठ टनकपुर (चंपावत) में स्थित है।
चन्द्रसिंह गढ़वाली के अतिरिक्त बच्चू लाल भट्ट को भी गढ़वाली के नाम से जाना जाता है।
पुराणों में देवप्रयाग को समस्त तीर्थों का शिरोमणि के नाम से संबोधित किया गया है।
पर्वतीय समाचार पत्र उत्तराखंड का प्रथम दैनिक समाचार पत्र था।
वर्ष 1850 में हैनरी रैम्जे द्वारा रामनगर को बसाया गया था।
जसोधर जोशी द्वारा जसपुर नगर का नामकरण किया गया था।
राजा गुमान सिंह द्वारा लोकरत्न पंत को गुमानी पंत के नाम से संबोधित किया गया था।
सुदर्शनशाह द्वारा सभासार ग्रंथ (1828 में) व सर्वग्रहशास्त्र की रचना की गयी थी।
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