पृथ्वी को इसकी बनावट और उसमें मिलने वाले खनिज तत्वों और गहराई के आधार पर मुख्यत: तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है
- भू-पर्पटी
- मैंटल
- क्रोडprithwi ka antarik bhag
भू-पर्पटी (Earth Crust)
यह ठोस पृथ्वी का सबसे बाहरी भाग है। यह बहुत भंगुर (Brittle) भाग है जिसमें जल्दी टूट जाने की प्रवृत्ति पाई जाती है। भू-पर्पटी की मोटाई महाद्वीपों व महासागरों के नीचे अलग-अलग है। महासागरों में भू-पर्पटी की मोटाई महाद्वीपों की तुलना में कम है। महासागरों के नीचे इसकी औसत मोटाई 5 Km है, जबकि महाद्वीपों के नीचे यह 30 Km तक है। मुख्य पर्वतीय शृंखलाओं के क्षेत्र में यह मोटाई और भी अधिक है। हिमालय पर्वत श्रेणियों के नीचे भू-पर्पटी की मोटाई लगभग 70 Km तक है। भूपर्पटी भारी चट्टानों (Rocks) से बना है और इसका घनत्व 3 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर है। महासागरों के नीचे भूपर्पटी की चट्टानें बेसाल्ट (Basalt) निर्मित हैं। महासागरों के नीचे इनका घनत्व 2.7 ग्राम प्रति घन से0मी0 है।
पृथ्वी का यह भाग मुख्य रूप से सिलिका (Silica) एवं एलुमिना (Alumina) जैसे – खनिजों से बनी है। इसलिए इसे सियाल (Si-Al) (सि-सिलिका तथा एल-एलुमिना ) कहा जाता है।
मैंटल (The Mental)
भूगर्भ में पर्पटी के नीचे का भाग मैंटल कहलाता है। यह मोहो असांतत्य (Discontinuity) से आरंभ होकर 2900 Km की गहराई तक पाया जाता है। मैंटल का ऊपरी भाग दुर्बलतामंडल (Asthenosphere) कहा जाता है। ‘एस्थेनो’ (Astheno) शब्द का अर्थ दुर्बलता से है। इसका विस्तार 400 Km तक आँका गया है। ज्वालामुखी उद्गार के दौरान जो लावा ध्ररातल पर पहुँचता है, उसका मुख्य स्रोत यही है। इसका घनत्व भूपर्पटी की चट्टानों (Rocks) से अधिक है। भू-पर्पटी एवं मैंटल का ऊपरी भाग मिलकर स्थलमंडल (Lithosphere) कहलाते हैं। इसकी मोटाई 10 – 200 Km के बीच पाई जाती है। निचले मैंटल का विस्तार दुर्बलतामंडल के समाप्त हो जाने के बाद तक है। यह ठोस अवस्था में है।
महासागर की पर्पटी मुख्यतः सिलिका (Si) एव मैगनीशियम (Mg) की बनी है, इसलिए इसे सिमै (Si-Mg) सि-सिलिका तथा मै – मैगनीशियम कहा जाता है
क्रोड (The Core)
भूकंपीय तरंगों के वेग ने पृथ्वी के क्रोड को समझने में सहायता की है। क्रोड व मैंटल की सीमा 2900 Km की गहराई पर है। बाहरी क्रोड (Outer core) तरल अवस्था में है जबकि आंतरिक क्रोड (Inner core) ठोस अवस्था में है। मैंटल व क्रोड की सीमा पर चट्टानों का घनत्व लगभग 5 ग्राम प्रति घन से0 मी0 तथा केन्द्र में 6300 Km की गहराई तक घनत्व लगभग 13 ग्राम प्रति घन से0मी0 तक हो जाता है। इससे यह पता चलता है कि क्रोड भारी पदार्थों मुख्यतः निकिल (Nickle) व लोहे (Ferrum) का बना है। इसे ‘निफे’ (NiFe) परत के नाम से भी जाना जाता है।
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Mental ka ghantwa kitana hota hai
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