बिहार से विभाजित होकर नया राज्य बनने के पश्चात झारखंड में जनजातियों की संख्या बहुत कम हो गई, किन्तु कुछ जनजातियों अभी भी हैं, जो बिहार की समृद्ध सामाजिक संस्कृति को अपनी प्राचीन संस्कृति से योगदान देती हैं। बिहार में पाए जानेवाली प्रमुख जनजातियाँ निम्नलिखित हैं
गोंड
यह जनजाति बिहार के छपरा, चंपारण और रोहतास जिलों में पाई जाती है। ये लोग गैर-आदिवासियों के साथ रहते हैं तथा इनकी भाषा मुंडारी हैं।
खोंड
यह कृषि कार्यों में मजदूरी करनेवाली जनजाति है, जो शाहाबाद क्षेत्र में निवास करती है। इनकी भाषा स्थानीय सदानी हैं।
बेड़िया
इस जनजाति के लोग प्रायः बिखरकर रहते हैं, जो अधिकतर मुंगेर जिले में रहते हैं और स्थानीय भाषा का प्रयोग करते हैं।
उराँव
प्रोटोऑस्ट्रेलाइड और द्रविड़ परिवार से संबंधित इस जनजाति के लोग मुख्य रूप से झारखंड में निवास करते हैं। इस जनजाति आर्थिक जीवन में मिश्रित संरचना के दर्शन होते हैं।
संथाल
संथाल जनजाति भी मुख्य रूप से झारखंड में निवास करने वाली जनजाति हैं, जो बिहार में पूर्णिया, भागलपुर, सहरसा आदि जिलों में निवास करती हैं। इन्हें भी प्रोटोऑस्ट्रेलाइड परिवार से संबंधित माना जाता है। इनकी भाषा संथाली है, जो ऑस्ट्रोएशियाटिक भाषा-परिवार की है। सिंगबोंगा इनका पूज्य देवता हैं।
खैरवार
खैरवार जनजाति भी मुख्य रूप से झारखंड में निवास करने वाली जनजाति हैं, जो बिहार राज्य के रोहतासगढ़ क्षेत्र में भी पाई जाती है। इस जनजाति के लोगों की भाषा मुंगरी हैं।
गोराइत
बिहार के गया और भोजपुर जिलों में निवास करनेवाली यह जनजाति प्रोटोऑस्ट्रेलाइड समूह की है। इनके सामाजिक जीवन में परिवार को सबसे छोटी इकाई माना जाता है तथा यह एकल परिवार पद्धति को अपनाते हैं।
चेरो
चेरो जनजाति भी मुख्य रूप से झारखंड के पलामू में निवास करने वाली जनजाति हैं, चेरो जनजाति के कुछ लोग बिहार के गया, रोहतास, भोजपुर और मुंगेर जिलों में पाए जाते हैं। इस जनजाति के लोग स्वयं को क्षत्रिय और चौहानांशीय राजपूत मानते हैं।
कोरा
कोरा जनजाति बिहार के जमुई, कटिहार और मुंगेर जिलों के कुछ हिस्सों में निवास करती है, इनकी भाषा मुंडारी है। इस जनजाति का सामान्य व्यवसाय कृषि है, किन्तु ये लोग वन-उत्पाद और मजदूरी पर अधिक आश्रित हैं।
कोरवा
कोरवा जनजाति के लोग रोहतास, पूर्णिया, मुंगेर और कटिहार जिले में निवास करते हैं। इनकी सामाजिक व्यवस्था में एकल परिवार और स्वजातीय विवाह की परंपरा है। इस जनजाति का व्यवसाय झूम कृषि तथा शिकार हैं।
मुंडा
मुंडा जनजाति बिहार के बक्सर और रोहतास जिले में निवास करते हैं। इनकी भाषा मुंडारी है। मुंडा जनजाति भी झूम कृषि पर निर्भर हैं। सिंगबोंगा को यह अपना सर्वोच देवता मानते हैं, जो पृथ्वी से संबंधित है।
मैं बिकेश कुमार पिता1श्याम नाथ खरवार थाना दिनारा रोहतास बिहार
का निवासी हूँ जो कि (ST)categaryआता है
बिहार का सभी खरवार अनुसूचित जनजाती है
मैं बिरेश कुमार गोंड, सिवान जिला में रहता हूं,यहां के सभी गोंड भाई, सगा संबंधी अनुसूचित जनजाति में आते है, हमारा भाषा गोंडी भाषा है, जय सेवा जय जोहार