पादप अपने कार्बनिक खाद्यों (कार्बोहाइड्रेट, वसा, पोटीन और विटामिन) के लिए केवल वायुमंडल पर ही निर्भर नहीं रहते हैं बल्कि जरूरत पड़ने पर सौर ऊर्जा (Solar Energy) का इस्तेमाल कर लेते हैं, इसलिए इन्हें स्वपोषी (Autotrophs) कहते हैं। कुछ जीवाणु भी सौर ऊर्जा या रासायनिक ऊर्जा का इस्तेमाल कर अपना भोजन स्वयं बना लेते हैं। इन्हें क्रमश: फोटोऑटोट्रॉफ (Photoautotroph) या कीमोऑटोट्रॉफ (Chemoautotroph) कहा जाता है।
दूसरी ओर जीव, कवक और अधिकांश जीवाणु अपना भोजन निर्माण करने में सक्षम नहीं होते हैं, वे इसे वायुमंडल से प्राप्त करते हैं। ऐसे सभी जीवों को परपोषी (Hetrotroph) कहा जाता है। पोषण के साधारणता तीन प्रकार होते हैं, –
- जो शरीर को ऊर्जा प्रदान करते हैं – कार्बोहाइड्रेट व वसा युक्त पदार्थ, जैसे – अनाज, फल, मेवा, गुड़, तेल, कंदमूल आदि।
- जो शरीर की वृद्धि और क्षतिपूर्ति करता है – प्रोटीन युक्त पदार्थ, जैसे – दूध, दालें, फलीदार अनाज, सोयाबीन, मेवे, मूंगफली आदि।
- जो स्वास्थ्य सुरक्षा करते हैं – विटामिन व खनिज युक्त पदार्थ, जैसे-हरी व पत्तेदार सब्जी, दुग्ध पदार्थ, दालें, फल आदि। इन्हें नियामक भोजन भी कहते हैं।
कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन और विटामिन रासायनिक तत्व हैं। क्योंकि उनकी आण्विक संरचना में कार्बन होता है। जल और खनिज तत्व अकार्बनिक तत्व होते हैं क्योंकि इनकी सरंचना में कार्बन नहीं होता है। कार्बोहाइड्रेट, वसा और प्रोटीन की हमारे शरीर को ज्यादा मात्रा में जरुरत होती है जबकि विटामिन व खनिजों की अल्पमात्रा ही जरूरी होती है।
किसी व्यक्ति में यदि कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन, विटामिन खनिजों की या इनमें से किसी की कमी हो जाती है, तो वह कुपोषण का शिकार हो जाता है और उसे कई प्रकार की बीमारियां हो सकती हैं।
कार्बोहाइड्रेट (Carbohydrate)
ये कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन से बने कार्बनिक तत्व होते हैं। इसका फार्मूला CN(H2O)N है। इसके स्रोत आलू, चावल, मक्का, गेहू, इत्यादि हैं। इसको तीन भागों में बांटा जाता है – शर्करा (सुगर), स्टार्च व सेलूलोज
- शर्करा – ग्लूकोज (CH0) फ्रक्टोज (फलों में शर्करा). सुक्रोज (टेबल सुगर), लैक्टोज (दूध में), मैल्टोज (जौ में)
- स्टार्च – यह ब्रेड, आलू, चावल आदि में मौजूद होता है। पादप भोजन को स्टार्च के रूप में संग्रहित करते हैं।
- सेलूलोज – यह अपरिष्कृत पादप खाद्य में पाया जाता है। फाइबर इसका एक महत्वपूर्ण स्रोत है।
कार्बोहाइड्रेड की अधिकता से मोटापा और इसकी कमी से शरीर का वजन कम हो जाता है। इससे कार्य करने की क्षमता घट जाती है।
वसा (Fat)
वसा शरीर को ऊर्जा प्रदान करने वाला प्रमुख रासायनिक यौगिक है। इसके अणु ग्लिसरॉल तथा वसा अम्ल के संयोग से बनते हैं। इन पदार्थों में कार्बन, हाइड्रोजन व ऑक्सीजन होते हैं। इनमें ऑक्सीजन की मात्रा कम होती है। ये जल में पूर्णतः अघुलनशील होते हैं। वसा अम्ल दो प्रकार के होते हैं –
- संतृप्त
- असंतृप्त
वसा की कमी से शरीर की त्वचा रूखी हो जाती है, वजन में कमी हो जाती हैं। वसा की अधिकता से शरीर स्थूल हो जाता है। जिसके कारण हृदय रोग, उच्च रक्त चाप आदि बीमारियां हो जाती हैं।
लिपिड्स द्रवीय अवस्था में वसा होते हैं। वसा कोशिका झिल्ली (Cell membrane) का निर्माण करती है।
प्रोटीन (Protein)
प्रोटीन अत्यन्त जटिल नाइट्रोजन युक्त पदार्थ ( कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन और सल्फर) से बनते हैं, जिसकी रचना 20 अमीनो अम्लों (Amino Acids) के भिन्न-भिन्न संयोगों से होती है। वैसे मानव शरीर में प्रोटीन का निर्माण कोशिकाओं में राइबोसोम (Ribosomes) करते हैं और निर्माण की सूचना डीएनए (DNA) के पास होती है। हर कार्य के लिए अलग प्रोटीन की आवश्यकता होती है। इनको शरीर की छोटी आंत द्वारा नहीं तोड़ा जा सकता है। ये अमीनो अम्ल शरीर के उचित पोषण के लिए बहुत ही जरूरी होते हैं। इसकी कमी से शरीर का विकास रुक जात। है। इनके मुख्य स्रोत सोयाबीन, पनीर, दूध, अण्डा, मछली, दालें, मांस आदि हैं।
प्रोटीन के कार्य
- कोशिकाओं की वृद्धि एवं उनकी मरम्मत करना।
- जटिल प्रोटीन मेटाबोलिक प्रक्रियाओं (Metabolic processes) में एन्जाइम का कार्य करना।
- हार्मोन का संश्लेषण करना।
- हीमोग्लोबिन के रूप में शरीर में गैसीय संवहन का कार्य करना और आवश्यकता पड़ने पर या ग्लूकोज की कमी होने पर शरीर को ऊर्जा भी प्रदान करना एन्टीबॉडीज (Antibody) के रूप में शरीर की सुरक्षा करना।
- प्रोटीन जैव-उत्प्रेरक और जैविक नियंत्रण के रूप में भी कार्य करता है।
- प्रोटीन की कमी से क्वाशियार्कर (Kwashiorkor) एवं मरास्मस नामक रोग हो जाते हैं।
- प्रोटीन कोशिकाओं, जीवद्रव और ऊतकों का प्रमुख घटक है।
- अमीनो अम्ल पेप्टाइड बॉन्ड द्वारा आपस में जुड़े होते हैं। जब दो अमीनो अम्ल एक पेप्टाइड बॉन्ड से जुड़ते हैं तब एक डाइपेप्टाइड
बनता है।
अमीनो अम्ल (Amino acids)
अमीनो अम्ल प्रोटीन के गठनकर्ता हैं। हमारी प्रकृति में कुल 20 अमीनो अम्ल होते हैं जिनमें से केवल 10 अमीनो अम्ल ही जरूरी होते हैं।
अनिवार्य अमीनो अम्ल – हिस्टडाइन, लायसाइन, फेनिएलानाइन, मिथिओनाइन, ल्युसाइन, आइसोल्युसाइनन, वलाइन, ट्राइप्टोफान, अर्गिनाइन और श्रेओनाइन।
अनावश्यक अमीनो अम्ल – ग्लूटामाइन, कार्निटाइन, सिस्टाइन, अलानाइन, अस्पराजाइन, अस्पार्टिक अम्ल, ग्लाइसीन, प्रोलाइन, सीरीन, टायरोसीन।
जल (Water)
जल एक आम रासायनिक पदार्थ है जिसका रासायनिक सूत्र H2O होता है। यह सारे प्राणियों के जीवन का आधार है। कोशिका के सभी प्रमुख घटक जल में घुल जाते हैं। जल को सर्व-विलायक भी कहा जाता है। वे पदार्थ जो जल में भलिभांति घुल जाते हैं जैसे लवण, शर्करा, अम्ल, क्षार तथा कुछ गैसे विशेष रूप से ऑक्सीजन व कार्बन डाइऑक्साइड, उन्हें हाइड्रोफिलिक (Hydrofilic) कहा जाता है, और जो जल में नहीं घुल पते उन्हें हाइड्रोफोबिक (Hydrofobic) कहा जाता है
पोषण (Nutrition)
पोषण को चार प्रकार से बाटा जा सकता है –
मृतोपजीवी – इस प्रकार के पोषण में कवक और कुछ जीवाणु मृत अवशेषों से भोजन प्राप्त करते हैं जैसे – लैक्टोबैसिलस
परजीवी – इस प्रकार के पोषण में एक जीवाणु दूसरे जीव पर आश्रित रहते हैं और रोग कारक होते हैं।
शाकाहारी – ये वनस्पति आधारित भोजन को खाते हैं। मांसाहारी के भोजन में पशुओं का मांस, शिकार मांस, मछली आदि शामिल रहता है। सर्वहारी में मानव आता है, वह मांस और वनस्पति दोनों खाता है।
पूर्णपादपीय – वे सजीव जो हरे पेड़-पौधे या प्रकाश की उपस्थित में प्रकाश संश्लेषण के द्वारा अपना स्वपोषी भोजन स्वयं बनाते हैं। वे रासायनिक ऊर्जा का उपयोग करते हैं।
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