कुमाऊँ मण्डल (मानसखण्ड)

कुर्मांचल एक संस्कृत शब्द है आगे चलकर इसे प्राकृत में कुंमु और हिंदी में कुमाऊं कहा जाने लगा।
कुमाऊं का सर्वाधिक उल्लेख स्कन्द पुराण के मानसखण्ड में मिलता है।
पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार चम्पावत में (चम्पावत नदी के पूर्व) स्थित कच्छप (कछुवे) के पीठ की आकृति वाले कांतेश्वर पर्वत, वर्तमान नाम कांडा देव या कान देव पर विष्णु भगवान का कुर्मा कच्छपावतार हुआ था इस पर्वत के नाम पर मानसखण्ड के इस क्षेत्र को कुर्मांचल कहा जाने लगा।
प्रारंभ में चम्पावत के आस-पास के क्षेत्र को ही कुमाऊं कहा जाता था किंतु आगे चलकर वर्तमान अल्मोड़ा, बागेश्वर तथा उधमसिंहनगर के सम्पूर्ण क्षेत्र को कुमाऊं के नाम से जाना जाने लगा।
‘याहिया बिन अहमद सरहिन्दी’ द्वारा लिखित तारीख ए मुबारकशाही में भी कुमाऊं का वर्णन मिलता है।
किस पुराण में कुमाऊं क्षेत्र में किन्नर, यक्ष, तंगव, किरात, गंधर्व, विद्याधर, नाग आदि जातियों के निवास करने का उल्लेख मिलता है – ब्रह्मपुराण, वायुपुराण, महाभारत। 
जाखन देवी मन्दिर अल्मोड़ा यक्षों के निवास की पुष्टि होती है।
वीनाग, बेनीनाग, धोलीनाग, कालीनाग, पिगलनाग आदि मन्दिरों की उपस्थिति से उत्तराखण्ड में नाग जातियों के निवास की पुष्टि होती है।
नाग मन्दिरों में सबसे प्रसिद्ध मन्दिर वीनाग/बेनीनाग कुमाऊं मंडल के पिथौरागढ़ जिले में स्थित है।
कुमाऊं क्षेत्र में बौद्ध धर्म का प्रसार खस जनजाति के समय हुआ था।
कुमाऊं के अस्कोट एवं डीडीहाट में किरात जनजाति के वंशजों के नवास की पुष्टि होती है। किरात जनजाति के वंशजो की भाषा मुण्डा है।
जागेश्वर (अल्मोड़ा) धाम को शिवजी के पुत्र कार्तिकेय जी का जन्म स्थली माना जाता है।
गंगाद्वार (हरिद्वार) में गंधर्वो तथा अप्सराओं का निवास स्थान की पुष्टि होती हैं। गंगाद्वार (हरिद्वार) को कनखल भी कहा जाता है।
कुमाऊं एवं गढ़वाल के लिए क्रमशः पर्वत एवं हिमवत् शब्दों का प्रयोग किया गया था।
महाभारत के आदिपर्व के अनुसार अर्जुन का ऐरावत कुल के नागराज कौरल्य की कन्या उलूपी से विवाह गंगाद्वार (हरिद्वार) क्षेत्र में हुआ था। गंगाद्वार (हरिद्वार) को नागों की राजधानी भी माना जाता है।
श्रीनगर (पौड़ी गढ़वाल) को सुबाहुपुर की पहचान के नाम से भी जाना जाता है।
किन 3 पर्वो में पर्वो में उत्तराखंड में कुणिंद वंश का उल्लेख मिलता है –

  • सभापर्व,
  • आरण्यपर्व
  • भीष्मपर्व

चीनी यात्री ह्वेनसांग ने कुमाऊं एवं गढ़वाल के सम्पूर्ण क्षेत्र को ब्रह्मपुर कहा गया था।

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