गढ़वाल मण्डल (केदारखण्ड)

गढ़वाल शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग मोलाराम ने किया था।
महाभारत एवं पुराणों में गढ़वाल क्षेत्र के लिए बद्रीकाश्रम, तपोभूमि स्वर्गभूमि एवं केदारखण्ड आदि नामों का प्रयोग किया गया है।
व्यास जी द्वारा बद्रीकाश्रम में षष्टिलक्ष संहिता की रचना की गयी। षष्टिलक्ष संहिता ग्रंथों में देवप्रयाग को समस्त तीर्थों का शिरोमणि एवं समग्र पापों का विनाशक भी कहा गया है।
अल्कापुरी मनुष्यों के आदि पूर्वज मनु का निवास स्थल व कुबेर की राजधानी थी।
वशिष्ट गुफा, वशिष्ट आश्रम, वशिष्ट कुण्ड, विसोम पर्वत पर स्थित (टिहरी गढ़वाल) है।
सितोनस्यु पट्टी (देवप्रयाग) में प्रत्येक वर्ष मनसार का मेला लगता है, यही पर सीता माता धरती में समायी थी।
तपोवन (देवप्रयाग) को लक्ष्मण की तपोस्थली के नाम से भी जाना जाता है।
ज्योतिषपुर (जोशीमठ) नामक स्थान पर वाणासुर की राजधानी थी।
गंगा नदी को महाभारत में त्रिपथका कहा गया है।
रघुवंश में कालिदास ने गढ़वाल हेतु गौरी गुरू शब्द प्रयोग किया।
महाभारत के वन पर्व के अनुसार उत्तराखण्ड में कुणिंद तथा कुशल जातियों का अधिपत्य था।
श्रीनगर (सुबाहुपुर) पुलिन्द राजा सुबाहु की राजधानी थी। श्रीनगर को पुराणों में श्री क्षेत्र कहा गया है।
महाभारत के वन पर्व में लोमश ऋषि का साथ पाण्डवों के साथ बद्रीनाथ की यात्रा पर आने का उल्लेख है।
खसों के शासनकाल में उत्तराखण्ड में गढ़वाल में बौद्ध मत का अधिक प्रसार हुआ। केदारखण्ड को खस देश का पर्यायवाची माना जाता है।
महाकवि कालिदास ने बद्रिकाश्रम में अपने महाकाव्य अभिज्ञानशाकुन्तलम की रचना की थी। अभिज्ञानशाकुन्तलम की रचना मालिनी नदी के तट कण्वाश्रम में ही की थी कण्वाश्रम को वर्तमान नाम चौकाघाट के नाम से जाना जाता है।
कण्वाश्रम, दुष्यंत एवं शकुंतला के प्रेम प्रंसग के कारण भी प्रसिद्ध है, कण्वाश्रम में ही चक्रवर्ती सम्राट भरत का जन्म हुआ था।
ऋषि सौम्य ने महाभारत के वन पर्व में युधिष्ठिर को भरत के तीर्थ केन्द्रों के विषय में बताया था।

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