- कुल – ग्रेमिनी (घास कुल)
- वानस्पतिक नाम – ओराइजा सेटाइवा (Oryza Sativa)
- उत्पत्ति – दक्षिण पूर्व एशिया (Southeast Asia)
- अनुकूल जलवायु – उष्ण कटिबंधीय (Tropical)
- औसत तापमान – 24°C-25°C
- औसत वर्षा – 150 सेमी
धान मुख्यत: खरीफ ऋतु की एक फसल है, जिसकी बुआई जून-जुलाई के मध्य में तथा कटाई सितम्बर-अक्टूबर माह के मध्य में की जाती है।
धान की फसल को क्रमशः 80-120 kg नाइट्रोजन /हेक्टेयर, 40-60 kg फास्फोरस /हेक्टेयर तथा 40-50 kg पोटाश /हेक्टेयर पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है।
अजोला और नील हरित शैवाल का उपयोग धान की फसल में नाइट्रोजन (N) की आपूर्ति हेतु जैव उर्वरक के रूप में किया जाता है।
धान उत्पादन की प्रमुख विधियाँ
हाइब्रिड तकनीक (Hybrid technology)
इस तकनीक का प्रयोग कर 1970 के अंतिम दशक में चीन ने धान की एक नई प्रजाति संकर धान (hybrid paddy) को विकसित किया। वर्ष 1994 में भारत सरकार ने व्यावसायिक उत्पादन हेतु इसकी 5 प्रजातियों को भार में वितरित किया।
- आंध्र प्रदेश, कर्नाटक तथा तमिलनाड़ राज्य सरकार द्वारा धान की APRH 1, APRH 2, KRH 1, MGR 1 प्रजातियों को निर्गत किया गया।
- दो वर्ष बाद तीन अन्य संकर किस्में (Hybrid varieties) CNRH 1, KRH 3 व DRRH 1 को क्रमशः पश्चिम बंगाल तथा आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा निर्गत किया गया।
- PHB 71 धान की एकमात्र संकर किस्म है, जिसे किसी निजी संस्था द्वारा विकसित किया गया है।
दापोग विधि (Dapog Method)
धान उत्पादन की यह विधि जापान तथा फिलीपींस में सर्वाधिक प्रचलित है, इस विधि में धान उत्पादन की अन्य विधियों की अपेक्षा 2.5 गुना अधिक बीज लगता है।
इस विधि में रोपण (Transplanting) हेतु पौध (Seedlings) 12 से 14 वें दिनके मध्य तैयार हो जाती है।
रोपाई विधि
धान उत्पादन की इस विधि में धान पौध के रोपण का सबसे उचित समय वह है जब पौध 3 या 4 पत्तियों से युक्त हो। धान की पौध खरीफ सीजन में 20 से 30 दिन तथा रबी सीजन में 30 से 35 दिन में रोपाई के लिए तैयार होती है।
धान के खेत में पानी के रिसाव को कम करने हेतु, खेतों में पंकभंजन (Pudding) किया जाता है।
श्री विधि
यह भी धान रोपण की एक पद्धति है। इसमें धान के कई पौधों को एक साथ न रोप कर, एक-एक करके पौधे को रोपा जाता है। इससे न केवल उपज में वृद्धि होती है, बल्कि लगातार बढ़ रहे फसलोत्पादन के खर्च और पर्यावरण को हो रही क्षति को भी नियंत्रित किया जा सकता है।
Note : बिहार के किसान सुमंत कुमार ने इस विधि का प्रयोग कर धान उत्पादन में विश्व रिकार्ड तोड़ दिया।
वर्ष 2004 को संयुक्त राष्ट्र संघ (United Nations) द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय चावल वर्ष के रूप में मनाया था।
पश्चिम बंगाल तथा तमिलनाडु में एक वर्षीय फसल चक्र में चावल की तीन फसलें ऑस (सितम्बर-अक्टूबर में), अमन (जाड़े में) तथा बोरो (गर्मी में) उगाई जाती हैं।
धान की प्रमुख प्रजातियाँ
कृषि निदेशालय द्वारा भारत में विकसित धान की प्रथम बौनी प्रजाति ‘जया’ थी। धान की अन्य प्रमुख प्रजातियाँ निम्नलिखित है –
- साकेत,
- गोविंद,
- कावेरी,
- रतना,
- जया,
- सरजू,
- महसूरी,
- पूसा 33,
- बाला,
- लूनाश्रीं,
- जमुना,
- करुणा,
- काँची,
- जगन्नाथ,
- कृष्णा,
- हंसा,
- विजय,
- पद्मा,
- अन्नपूर्णा,
- माही
- सुगंधा
- पूसा सुगंधा-5
- बरानी दीप
शुष्क सम्राट आदि धान की प्रमुख प्रजातियाँ हैं। उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार आदि वह क्षेत्र जो सूखे से प्रभावित है, उन क्षेत्रों के लिए धान की शुष्क सम्राट प्रजाति सबसे उपयुक्त है।
बासमती चावल की हाइब्रिड प्रजातियाँ – पूसा RH-10, PHB-71, गंगा, सुरुचि, K.R.H.-2, सह्याद्रि आदि।
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) द्वारा विकसित की गई बासमती चावल की उन्नत किस्में – पूसा 1460, पूसा 1401, पूसा 1460 (ब्रांड नाम ‘सुगंध’) है।
चावल की महाधान (Super Rice) प्रजाति का विकास जी. एस. खुश द्वारा फिलीपींस स्थित अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान में किया गया था।
लूनी श्री – धान की इस प्रजाति का विकास केन्द्रीय धान अनुसंधान संस्थान, कटक (ओडीशा) द्वारा किया गया है।
धान की नवीनतम प्रजातियाँ – धनराशि, RH 204, G.R.-8, डांडी, शाह सरंग, गौरी, श्वेता, भूदेव, वर्षा, पंतधान-15, चिंगम, धान आदि।
DRR 45 – धान की एक प्रमुख प्रजाति है, जिसे जिंक की प्रचुर मात्रा होती है।
गोल्डन धान (Golden Rice) – यह धन की एक प्रमुख फसल है, जिसमे सर्वाधिक मात्रा विटामिन-A पाया जाता है।
चावल (Rice) को धोने पर सामान्यतः इसमें पाया जाने वाला विटामिन B व थाइमिन नष्ट हो जाता है। इसके अतिरिक्त पालिश किए हुए चावल के ऊपरी पर्त से भी थाइमिन नष्ट हो जाता है। जिसके कारण मानव में बेरी-बेरी रोग से पीड़ित होने की संभावना रहती हैं।.
वर्ष 2011 ‘कोहसर’ नामक धान की एक नई प्रजाति को विकसित किया गया, जिसका विकास जम्मू-कश्मीर घाटी के ऊँचाई वाले क्षेत्रों के लिए किया गया था।
धान की फसल में होने वाले प्रमुख रोग (Major diseases in paddy crop)
खैरा – यह धान में जिंक की कमी से होने वाला एक प्रमुख रोग है।
खरपतवार को नष्ट करने के लिए धान की फसल में प्रोपिनिल (Stem – 32), क्यूटाक्लोर (मैचिटि) एवं फ्लुयूक्लोरेलिन (बेसलिन) नामक खरपतवारनाशी का प्रयोग किया जाता है।
वर्ष 2019 में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) द्वारा धान की नवीन पूसा-1509 को विकसित किया गया था। यह प्रजाति पूसा-1121 में होने वाले बकानी रोग के प्रति प्रतिरोधी है।