मध्य प्रदेश राज्य वन नीति (Madhya Pradesh Forest Policy)

वर्ष 1956 में मध्य प्रदेश के गठन के पश्चात राज्य द्वारा पूरे देश में पहले से ही लागू 1952 की राष्ट्रीय वन नीति को ही मध्य प्रदेश में भी लागू किया गया। वर्ष 1952 की राष्ट्रीय वन नीति का मुख्य उद्देश्य वनों से अधिकतम आय प्राप्त करना सरकार का मुख्य लक्ष्य था।
वर्ष 1988 में भारत सरकार द्वारा पुनरीक्षित राष्ट्रीय वन नीति की घोषणा की गयी, जिसके प्रावधानों के अनुरूप राज्य की वन नीति में व्यवस्थाएँ करने की आवश्यकता थी।
इतने लंबे समय अंतराल के कारण अनेक परिवर्तनों तथा राज्य की विशिष्ट  भौगोलिक, सामाजिक एवं आर्थिक परिस्थितियों की आवश्यकता के फलस्वरूप इस नीति में व्यापक परिवर्तन की आवश्यकता थी, अत: मध्य प्रदेश  राज्य सरकार द्वारा वर्ष 2005 में राज्य की दूसरी वन नीति की घोषणा की गयी।

मध्य प्रदेश राज्य 2005 वन नीति के प्रमुख तथ्य 

  • पूर्व की वन नीति में जहां राजस्व आय को प्राथमिकता दी गई थी, वर्तमान नीति में इसे गौण मानते हुए मुख्य लक्ष्य वनों के संवहनीय प्रबंधन से पर्यावरण संरक्षण तथा स्थानीय समुदायों को रोजगार उपलब्ध कराना, उनकी आय के साधन बढ़ाना तथा उनकी मूलभूत वनाधारित आवश्यकताओं को पूर्ण करना है।
  • पूर्व की नीति में वन प्रबंधन कार्य जहां विभाग के कड़े नियंत्रण में ठेकेदारों के माध्यम से कराया जाता था, वर्तमान नीति में जन भागीदारी से वनों के विकास को महत्व दिया गया है।
  • नवीन वन नीति में इमारती काष्ठ के उत्पादन के साथ-साथ लघु वनोपज, बांस तथा औषधीय प्रजातियों के उत्पादन, प्रसंस्करण तथा मूल्य संवर्धन पर विशेष बल दिया गया है।
  • वनाश्रित समुदायों के सर्वांगीण विकास एवं महिलाओं के सशक्तीकरण पर पर्याप्त जोर दिया गया।
  • वनाश्रित परिवारों हेतु वनाधारित वैकल्पिक रोजगार की सतत उपलब्धता के अवसर निर्मित करना।
  • वन क्षेत्रों का व्यवस्थापन सीमाओं के समस्त लंबित विवादों का निराकरण करते हुए शीघ्र करना तथा वन खण्डों का सीमांकन पूर्ण करना।
  • वर्तमान में व्यवस्थापित अतिक्रमित क्षेत्रों को शीघ्रातिशीघ्र सीमांकित करना तथा भविष्य में अतिक्रमण की प्रभावी रूप से रोकथाम करना ।
  • वन ग्रामों को राजस्व ग्रामों में परिवर्तन करने की कार्यवाही पूर्ण की जायेगी।
  • वन सुरक्षा प्रणाली को सुदृढ़ बनाने के लिए बेतार तंत्र आदि संचार सुविधाओं का विस्तार करना ।
  • संवेदनशील क्षेत्रों में विशेष सुरक्षा बल की व्यवस्था सुदृढ़ करना एवं वन कर्मियों को आवश्यकतानुसार शस्त्र उपलब्ध कराना ।

मध्य प्रदेश – राज्य वन नीति 1952 और नवीन राज्य वन नीति 2005 में अंतर

मध्य प्रदेश राज्य वन नीति – 1952 मध्य प्रदेश राज्य वन नीति – 2005
वानिकी को मुख्यतः व्यापारिक गतिविधि मानकर अधिकतम राजस्व प्राप्ति को प्राथमिकता राजस्व प्राप्ति को गौण मानते हुए वनों के संवहनीय विदोहन, पर्यावरण संरक्षण एवं वनाश्रित समुदायों की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करने तथा उनको सतत रोजगार उपलब्ध कराकर उनकी आय बढ़ाने को प्राथमिकता
स्थानीय समुदायों की वन प्रबंधन में भागीदारी नहीं संयुक्त वन प्रबंधन के माध्यम से स्थानीय समुदायों की वन प्रबंध में सक्रिय भागीदारी
ईमारती लकड़ी के उत्पादन को प्राथमिकता बांस, चारे, लघु वनोपज तथा औषधीय प्रजातियों के संरक्षण एवं संवर्धन को पर्याप्त महत्व
वनों का विदोहन मुख्यतः ठेकेदारों के माध्यम से वनों का विदोहन ग्राम वन समितियों, सहकारी समितियों तथा विभागीय माध्यम से
वनाधारित उद्योगों को रियायती दर पर वनोपज का प्रदाय • उद्योगों को रियायतें
• समाप्त उद्योगों द्वारा आवश्यक वनोपज का उत्पादन यथा संभव स्वयं करना होगा
वन ग्रामों की स्थापना एवं उनका समुचित विकास वन ग्रामों को राजस्व ग्रामों में परिवर्तित करने की पहल
चराई की दरों के आधार पर चराई का विनियमन • धारण क्षमता के अनुरूप चराई का प्रबंधन
• स्टाल-फीडिंग को प्रोत्साहन
• अंतर्विभागीय कार्यक्रमों के माध्यम से पशुधन प्रबंधन का प्रयास
वन भूमि पर खाद्य एवं कृषि फसलों की खेती की अनुमति वन भूमि के गैर वानिकी उपयोग पर कड़ा प्रतिबंध
वानिकी प्रबंधन परंपरागत विधियों के माध्यम से वानिकी प्रबंधन में सूचना प्रौद्योगिकी एवं जैव प्रौद्योगिकी जैसी अद्यतन तकनीकों का उपयोग
वन्य प्राणियों के शिकार की सीमित अनुमति वन्य प्राणियों का शिकार पूर्णतः प्रतिबंधित
वन कर्मियों को मूलभूत सुविधाओं एवं उनके कल्याण संबंधी कोई प्रावधान नहीं वनकर्मियों विशेषकर सुदूर एवं दुर्गम स्थानों पर पदस्थ कार्यपालिक वनकर्मियों एवं उनके परिजनों की मूलभूत आवश्यकताओं तथा मानव संसाधन विकास को पर्याप्त महत्व

मध्य प्रदेश के प्रमुख वन संस्थान

संस्थान मुख्यालय
मुख्यालय भारतीय वन प्रबंध संस्थान (1982) भोपाल
संजीवनी संस्थान (वनौषधि रोपण) भोपाल
वन विकास निगम (1975) भोपाल
मध्य प्रदेश इको पर्यटन विकास निगम (2005) भोपाल
भारतीय वन अनुसंधान संस्थान (क्षेत्रीय कार्यालय) जबलपुर
उष्णकटिबंधीय वन संस्थान जबलपुर
वन्य जीव फोरेन्सिक एवं स्वास्थ्य केंद्र जबलपुर
जबलपुर वन प्रबंधन शिक्षा केंद्र (फॉरेस्ट रेंजर कॉलेज) (1979) बालाघाट
वन राजकीय महाविद्यालय (1980) बैतूल
वानिकी अनुसंधान एवं मानव संसाधन विकास संस्थान छिंदवाड़ा
फॉरेस्ट गार्ड ट्रेनिंग शिवपुरी, गोविंदगढ़ अमरकटक, लखनादौन, बैतूल, झाबुआ
मध्य प्रदेश का पहला वाइल्ड लाइफ अवेयरनेस सेंटर रालामंडल (इंदौर)

Note:
वर्ष 1970 में वनों का राष्ट्रीयकरण करने वाला मध्यप्रदेश, भारत का प्रथम राज्य था। राष्ट्रीयकरण के तहत मध्यप्रदेश में सर्वप्रथम तेंदूपत्ता का राष्ट्रीयकरण किया गया।
जैव विविधता अधिनियम, 2002 के प्रावधान के अंतर्गत मध्य प्रदेश जैव विविधता बोर्ड का गठन किया गया। इस बोर्ड का अध्यक्ष मुख्यमंत्री होता है।

मध्य प्रदेश जैव प्रौद्योगिकी परिषद् 

मध्य प्रदेश सोसायटीज रजिस्ट्रेशन अधिनियम, 1873 के प्रावधान के अंतर्गत वर्ष 2005 में मध्य प्रदेश जैव प्रौद्योगिकी परिषद् का गठन किया गया। इस परिषद् का मुख्य कार्य है जैव प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने वाले उद्योगों की स्थापना करना तथा जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान एवं शिक्षा को बढ़ावा देना है।

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