भारत में क्षेत्रीयता के आधार पर लोकगीतों का स्थान बहुत महत्त्वपूर्ण है। प्रत्येक राज्य में लोकगीतों की अलग-अलग परंपरा रही है। यह लोकगीतों पर्व-त्योहार, शादी-विवाह, जन्म, मुंडन, जनेऊ आदि अवसरों पर गाए जाते हैं। इन लोकगीतों में अंगिका लोकगीत प्राकृतिक सौंदर्य का तथा मगही लोकगीत पारिवारिक संबंधों का वर्णन करते हैं।बिहार में भोजपुरी लोकगीतों को जो स्थान प्राप्त है, वह संभवतः अन्य लोकगीतों को नहीं है। बिहार की लोकगीत संस्कृति को निम्न वर्गों में विभाजित किया जा सकता है –
संस्कार गीत
संस्कार गीतों का संबंध मुख्यतः लौकिक अनुष्ठानों से है। इन संस्कार गीतों के मुख्यतः दो स्वरूप हैं
- शास्त्रीय गीत
- लौकिक गीत
संस्कार गीत सभी जातियों व जनजातियों द्वारा जन्म से लेकर मरण तक सभी प्रमुख अवसरों पर गाए जाते हैं यह गीत हर्ष, उल्लास और शोक से भरे होते हैं। जैसे – जन्म, मुंडन, विवाह, गौना, द्विरागमन आदि।
- जन्म के समय सोहर,
- मुंडन के समय खेलौना
- विवाह के समय विदाई आदि
बिहार में पुत्र जन्म के अवसर पर ‘सोहर गीत’ गाए जाते हैं। भोजपुर तथा मगध क्षेत्र में इस अवसर पर पँवड़िया नाच होता है, पँवड़िया लोग बच्चे के जन्म की बधाई गीतों के द्वारा देते हैं और बधावा माँगते हैं। संस्कार गीतों में सर्वाधिक गीत विवाह गीतों के अंतर्गत आते है। इन गीतों में शिव विवाह एवं राम विवाह के प्रसंग वर्णित हैं। बिहार में ‘डोमकछ’ एक नाट्य लोकसंगीत है, जिसका गायन विवाह के अवसरों पर वर पक्ष की स्त्रियों के सम्मिलित सहयोग से होता है। मिथिला क्षेत्र में पुत्री की विदाई के समय विशिष्ट शैली का गीत गाया जाता है, जिसे “समदाउनि/समदावन/समदन” के नाम से जाना जाता है।
पर्वगीत
बिहार में मुख्य रूप से दीपावली, छठ, तीज, नागपंचमी, गोधन, निहुरा, मधुश्रावणी, रामनवमी, कृष्णाष्टमी आदि सभी त्योहारों पर राज्य में उल्लास से मनाये जाते है। छठ पर्व बिहार के प्रमुख त्योहारों में से एक है जिसमे सूर्य के स्वरूप की पूजा की जाती है।
जाति संबंधी गीत
भारत की सामाजिक व्यवस्था में हर वर्ग एवं जातियों का विशेष महत्त्व है।प्रत्येक जातियों के अलग-अलग कुलदेवता हैं, जिनकी वीरतापूर्ण गाथाओं से युक्त लोकगीत जातीय गीतों की श्रेणी में आते हैं। प्रत्येक जाति के गीत अलग-अलग विशिष्टताओं से युक्त है। अहीर, दुसाध, चमार, कहार, धोबी और लुहार सबके अपने-अपने जाति संबंधी गीत होते हैं। जैसे – बिरहा और लोरिकी गीत अहीरों द्वारा गाए जाते है।
पेशागीत
किसी कार्य के संपादन के समय जो गीत गाए जाते हैं, वे श्रम गीत, व्यवसाय गीत या क्रिया गीत की कोटि में आते हैं। जैसे – बिहार में चक्की चलाकर आटा पीसने के समय स्त्रियों द्वारा ‘लगनी’ गाई जाती है।
बालक्रीडा गीत
बाल-जीवन से संबद्ध गीतों को बाल गीत या शिशु गीत कहते हैं। जैसे – अटकन-मटकन, चोरा-मुक्की, अट्टा-पट्टा, कबड्डी गीत, लोरी तथा बच्चों के उबटन लगाने के गीत ‘अपटोनी गीत’ हैं।
भजन या श्रुति गीत
देवी-देवताओं की आराधना से संबद्ध गीत भजन या श्रुति गीत की श्रेणी में आते हैं। इन गीतों का धार्मिक एवं आध्यात्मिक महत्त्व के साथ-साथ मांगलिक महत्त्व भी है। इनमें ईश्वर के सगुण एवं निर्गुण दोनों रूपों का वर्णन मिलता है।
- सगुण गीतों – गोसाउनि गीत, नचारी, महेशवाणी, कीर्तन, विष्णुपद, पराती, साझ, गंगा के गीत, शीतला के गीत, देवी के गीत प्रमुख हैं।
- निर्गुण गीतों की कोई कोटि निर्धारित नहीं है, लेकिन कुछ लोकभजनों के अंदर निर्गुण उपमानों को निर्देशित किया जाता है।
ऋतुगीत
मौसम में परिवर्तन के अनुसार ऋतुगीत गाने की परंपरा है । फगुआ, चैता, कजरी, हिंडोला, चतुर्मासा और बारहमासा आदि गीत ऋतुगीत कहलाते हैं।
- बिहार एवं पूर्वी उत्तर प्रदेश में कजरी महत्त्वपूर्ण गीत शैली है। कहरवा और दादरा की लय में ठुमरी शैली में कजरी को गाया जाता है यह गीत मिथिला क्षेत्र में मलार नाम से प्रसिद्ध है।
- वर्षाकालीन गीतों में सावन, झूला, हिंडोला प्रचलित हैं।
- फाग या होली बसंत ऋतु का गीत है। यह मुख्यतया समूह में गाया जाता है।
- चैत्र मास में गाया जाने वाला चैता लोकगीत में श्रृंगार रस के साथ करुण रस एवं मार्मिक व्यथाओं का समावेश होता है।
- ऋतुगीतों में बारहमासा गीत बहुत लोकप्रिय है जिन्हे वर्ष के बारहों महीने का वर्णन रहता है।
गाथा गीत
ये गीत भारतीय वीर नायकों की वीरता की स्मृति में गाए जाने वाले गीत है। बुंदेलखंड में जिस प्रकार से आल्हा गाया जाता है, उसी प्रकार बिहार में वीर रस की गाथाओं को गीतबद्ध करने की परंपरा रही है। इन गाथा गीतों में करुण, वात्सल्य और श्रृंगार रस का भी समावेश होता है। बिहार में इन गाथा गीतों के कुछ शीर्षक हैं, जिन्हे विभिन्न नामों से जाना जाता है | जैसे – नयका बंजारा, मीरायन, राजा हरिचन (हरिश्चंद्र), लोरिकायन, दीना भदरी, चूनाचार, छतरी चौहान, धुधली-घटमा, विजयमल, सहलेस, राजा विक्रमादित्य, हिरणी-बिरणी, कुंवर ब्रजभार, अमर सिंह बरिया।
विशिष्ट गीत
इसके अंतर्गत पीड़िया के गीत, पानी माँगने के गीत, झूमर-झूले के गीत, बिरहा, जोगा, साँपरानी आदि गीत गाए जाते हैं।
विविध गीत
इसके अंतर्गत झिझिया के गीत, झरनी के गीत, नारी स्वतंत्रता का गीत, समाज-सुधार के गीत आदि आते हैं। भोजपुर अंचल के पूर्वी गीत, झूमर, विदेशिया, बटोहिया, मेलों का गीत एवं मिथिलांचल का तिरहुति, बटगमनी, नचारी, महेशवाणी, संदेश गीत, मंत्र गीत, आंदोलने गीत इस श्रेणी के गीत हैं।
Note :
- खेतों में धान रोपते समय कृषकों द्वारा गाए जानेवाला गीत “चाँचर” कहलाता है। कहीं-कहीं इसका नाम रोपनी गीत भी है।
- महाकवि मैथिल कोकिल विद्यापति का युग लोकगीतों का स्वर्णयुग कहा जाता है। इसके अधिकांश गीत ऐतिहासिक परंपरा एवं लोक-व्यवहार के कारण लोकगीत की श्रेणी में आ गए हैं।