फाइलेरिया (Filaria) – यह रोग अनेक प्रकार के सूत्रकृमियों के कारण होता है। इस रोग से लसीका वाहिनियां (Lymph Vessels) और ग्रन्थियां (Glands) फूल जाती हैं। मलेरिया की भांति इस रोग के आरम्भ में भी ज्वर आ जाता है।
स्कर्वी (Scurvy) – विटामिन C एस्कॉर्बिक अम्ल (ascorbic acid) है, जो स्कर्वी निरोधी होता है। मसूढ़ों से रक्त का स्राव, दांतों का असमय टूटना, बच्चों के चेहरे और अन्य अंगों में सूजन, पेशाब में रक्त या एल्ब्युमिन का अंश आना आदि इसके लक्षण हैं।
रिकेट्स या सुखण्डी (Rickets) – विटामिन D की कमी के कारण कैल्सियम और फॉस्फोरस के लवण का उपापचय ठीक तरह से नहीं हो पाता है, जिसके कारण अस्थियों में कैल्सियम संचित नहीं हो पाती है। विटामिन D मछली के तेल, कलेजी, अण्डे की जरदी और दूध में पाया जाता है।
मधुमेह (Diabetes) – यह अग्न्याशय (Pancreas) से सम्बन्धित रोग है, जो इन्सुलिन का पर्याप्त स्राव नहीं होने के कारण होता है। इन्सुलिन यकृत (Liver) और पेशियों (Muscles) में ग्लाइकोजन (Glycogen) संचित करने में मदद करता है। इसका पर्याप्त मात्रा में स्राव नहीं होने पर यकृत में ग्लाइकोजेन का उपयोग होता है और ग्लाइकोजेन की मात्रा धीरेधीरे समाप्त होने लगती है।
दिल का दौरा (Heart attack) – हृदय धमनियां (coronary arteries) हृदय के पेशी-तंतुओं को रक्त पहुंचाती हैं। हृदय धमनियों (coronary arteries) में रक्त जम जाने के कारण, हृदय के पेशी तन्तुओं को रक्त नहीं मिल पाता है। फलतः ह्रदय रक्त का संचार नहीं कर पाता है क्योंकि क्षेपक कोष्ठों में आकुंचन (Contraction) और प्रसरण (relaxation) नहीं हो पाता है। इसे हृदय गति का रूक जाना या हार्ट अटैक कहा जाता है।
कैन्सर (Cancer) – कोशिकाओं में असामान्य वृद्धि को कैंसर कहते हैं। कैन्सर का उपचार एंटीबायोटिक्स (Antibiotics) से, एल्केलायड (Alkylidene) के प्रयोग से, रेडियोथेरेपी (Radiotherapy) से, लेसर किरणों से, शल्य चिकित्सा करके या बोन मेरो (Bone marrow) का प्रत्यार्पण करके किया जाता है।
टीनिएसिस (Taeniasis) – इस रोग का कारक टीनिया सोलियम (Taenia Solium) नामक परजीवी है। रोगी की आंत में कारक परजीवी के अण्डे उपस्थित होते हैं, जो मिलकर मल के साथ बाहर आ जाते हैं। सूअर जब इस मल को खाते हैं, तो यह सूअर के आंत में पहुंच जाते हैं। इस अवस्था को ब्लैडर वर्म (Bladderworm) कहते हैं। यदि संक्रमित सुअर का अधपका मांस कोई व्यक्ति खाता है, तो ब्लैडर वर्म उसकी आंत में पहुंचकर टेपवर्म के रूप में विकसित हो जाता है तथा आंत की दीवार पर चिपक जाता है। प्रायः टीनिएसिस के लक्षण स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं पड़ते। केवल कभी-कभी अपच और पेट-दर्द होता है। परन्तु जब कभी आंत (Intestine) में लार्वा उत्पन्न हो जाते हैं और केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र (Central nervous system), आंखों (Eye), फेफड़ों (Lungs), यकृत (Liver) व मस्तिष्क (Brain) में पहुंच जाते हैं, तो रोगी की मृत्यु हो जाती है।
जोड़ों का दर्द (Arthristis) – इसे गठिया या वात रोग के नाम से भी जाना जाता है।
हाइपरटेंशन (Hypertension) – इसका मुख्य कारण उच्च धमनी दाब है. जो छोटी धमनी में सिकुडन उत्पन्न होने के कारण होता है। छोटी धमनी में सिकुड़न के कई कारण होते हैं, जैसे- अत्यधिक तनाव, ज्यादा लम्बे समय तक परिश्रम, चिंता, संवेदनशीलता आदि। रोगी को आराम करना व पूरी नींद लेना अत्यधिक फायदेमंद होता है।
न्यूरोसिस (Neurosis) – इससे हृदय वाहिका तंत्र (Cardiovascular system) की क्रियाविधि असंतुलित हो जाती है। इस रोग में रोगी को नींद न आना व चिड़चिड़ा हो जाना प्रमुख लक्षण होते हैं।
पक्षाघात या लकवा (Hemiplegia) – इस रोग में जहां पक्षाघात होता है वहां की तंत्रिकाएं निष्क्रिय हो जाती हैं। इसका कारण अधिक रक्त-दाब के कारण मस्तिष्क (Brain) की किसी धमनी का फट जाना अथवा मस्तिष्क को अपर्याप्त रक्त की आपूर्ति होना है।
एलर्जी (Allergy) – कुछ वस्तुएं जैसे – धूल, धुआं, रसायन, कपड़ा, सर्दी, किन्हीं विशेष व्यक्तियों के लिए हानिकारक हो जाती हैं और उनके शरीर में विपरीत क्रिया होने लगती है। खुजली, फोड़ा, फुन्सी, शरीर में सूजन आ जाना, काला दाग, एक्जिमा आदि एलर्जी के उदाहरण हैं।
मिर्गी (Epilepsy) – इसे अपस्मार (Epilepsy) रोग भी कहते हैं। यह मस्तिष्क के आंतरिक रोगों के कारण होती है।
बर्ड फ्लू (Bird Flu) – इस रोग का मुख्य विषाणु H1N5 है। यह रोग प्रायः मुर्गियों तथा प्रवासी पक्षियों के माध्यम से प्रसारित होता है।
जापानी इन्सेफेलाइटिस (Japaniese encephalitis) – यह रोग क्यूलेक्स प्रजाति (Culex species) के मच्छर से फैलता है। इस विषाणु का संक्रमण मच्छर के काटने से होता है लेकिन सुअर को भी इस रोग का वाहक माना जाता है। क्यूलेक्स प्रजाति (Culex species) का मच्छर धान के खेतों में पनपता है।
स्वाइन फ्लू (Swine flu) – यह भी एक संक्रामक रोग (infectious disease) है। इस रोग का उद्भव उत्तर अमेरिकी के मैक्सिको देश में हुआ। विश्व स्वास्थ्य संगठन में स्वाइन फ्लू को एनफ्लूएन्जा H1N1, नाम दिया है। बार-बार उल्टी आना, दस्त होना, अचानक तेज बुखार, शरीर में दर्द और थकान का अनुभव होना और खांसी आदि इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं। इस रोग से बचाव के लिए कोई विशेष टीका या दवा नहीं है।
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