कृषि विज्ञान (Agricultural Science)

कृषि का अध्ययन कृषि विज्ञान के रूप में जाना जाता है, तथा इसके अध्ययन हॉर्टिकल्चर (Horticulture) कहाँ जाता है। प्रमुख कृषि उत्पादों को मोटे तौर पर भोजन, रेशा, ईंधन, कच्चा माल, फार्मास्यूटिकल्स, और उद्दीपकों में समूहित किया जा सकता है। खदानों से निकले रॉक फॉस्फेट, कीटनाशक और यांत्रिकीकरण के साथ कृत्रिम नाइट्रोजन ने 20वीं सदी के प्रारंभ में फसल की पैदावार को बहुत अधिक बढ़ा दिया है। हरित क्रांति में विकसित दुनिया के द्वारा विकासशील दुनिया को तकनीक का निर्यात किया गया।
कार्बनिक कृषि के विकास ने वैकल्पिक तकनीकों जैसे एकीकृत कीट प्रबंधन और चयनात्मक प्रजनन में अनुसंधानों का नवीनीकरण किया है। हाल ही के मुख्यधारा प्रौद्योगिकीय विकास में शामिल है। जैसे – आनुवंशिक रूप से संशोधित भोजन।
अमोनियम नाइट्रेट के निर्माण की हेबर–बॉश विधि को एक बड़ी सफलता माना जाता है, इसने फसल की पैदावार बढ़ाने में उत्पन्न होने वाली पुरानी बाधाओं को दूर करने में मदद की। हाल ही के वर्षों में परंपरागत कृषि के बाह्य पर्यावरणीय पर प्रभाव के प्रति लोगों में रोष बढ़ा है, जिसके परिणामस्वरूप कार्बनिक आंदोलन की शुरुआत हुई।

फसल (Crop)

जीन विज्ञानी ग्रिगोर मंडल के कार्य के बाद पादप प्रजनन में महत्वपूर्ण उन्नति हुई। प्रभावी और अप्रभावी एलीलों पर उनके द्वारा किये गए कार्य ने, आनुवंशिकी के बारे में पादप प्रजनकों को एक बेहतर समझ दी। फसल प्रजनन में स्व-परागण, पर-परागण, और वांछित गुणों से युक्त पौधों का चयन, जैसी तकनीकें शामिल हैं, और वे आण्विक तकनीकें भी इसी में शामिल हैं जो जीव को आनुवंशिक रूप से संशोधित करती हैं। सदियों से पौधों के घरेलू इस्तेमाल के कारण उनकी उपज में वृद्धि हुई है, इससे रोग प्रतिरोध और सूखे के प्रति सहनशीलता में सुधार हुआ है, साथ ही इसने फसल की कटाई को आसान बनाया है व फसली पौधों के स्वाद और पोषक तत्वों में वृद्धि हुई है।

ऋतुओं के आधार पर फसलों का वर्गीकरण

खरीफ (Kharif) – ये फसलें जून-जुलाई में बोई जाती हैं और इनके लिए उच्च तापक्रम में आर्द्रता की आवश्यकता होती है। जैसे – धान, ज्वार, बाजरा, मूंगफली, कपास आदि।
रबी (Rabi) – ये फसलें अक्टूबर से नवम्बर-दिसम्बर में बोई जाने वाली इन फसलों की प्रारम्भिक वृद्धि के लिए कम ताप तथा उसके पकने के लिए उच्च ताप की जरूरत होती है। जैसे – गेहूं, जौ, चना, मटर, सरसों, आलू, मसूर आदि।
जायद (Zayed) – ये फसलें फरवरी-मार्च में बोई जाती हैं। इन्हें अधिक तापक्रम व सूर्य के अधिक प्रकाश की आवश्यकता होती है।
जैसे – तरबूज, खरबूजा, ककड़ी, मूग, लोबिया आदि।

विशेष उपयोग के आधार पर फसलों का वर्गीकरण

नकदी फसल – धन कमाने के लिए उगायी जाने वाली फसलें। जैसे – गन्ना, कपास, तम्बाकू मिर्च आदि।
अन्तवर्ती फसल – दो फसलों के बीच के खाली समय में उगाई जाने वाली फसलें । जैसे – मूंग, जीरा, सांवा आदि।
कीट आकर्षक फसल – मुख्य फसल को कीटों से बचाने के लिए ऐसी फसल उगाई जाती है। जैसे – कपास के लिए भिण्डी की फसल कपास के पौधे को लाल कीट से बचाने के लिए लगाई जाती है।
आवरण फसलें – इस प्रकार की फसलें भूमि को आच्छादित कर अपरदन से बचाती हैं। जैसे – मूग, उड़द, लोबिया आदि।
हरी खाद – मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ बढ़ाने के लिए इन फसलों को उगाकर जमीन में दबा दिया जाता है। जैसे – सनई, मोठ, बरसीम, उरद, मूग आदि।


फसलों और पौधों के लिए सबसे महत्वपूर्ण पोषक तत्व नाइट्रोजन (Nitrogen), फॉस्फोरस (Phosphorus) और पोटैशियम (Potassium) हैं, जिन्हें एनपीके (NPK) भी कहा जाता है।
एक ही खेत में बदल-बदल कर फसल बोने की प्रणाली को फसल चक्र कहा जाता है, जैसे दो फसलों गेहूं और बाजरा के बीच मटर जैसी दलहन की फसल को बोना।
दलहन पौधों की जड़ों में अनेक गांठें पाई जाती हैं, जिनके भीतर नाइट्रोजन स्थिरीकरण जीवाणु मौजूद होते हैं। यही जीवाणु वायुमंडलीय नाइट्रोजन का नाइट्रेट में स्थिरीकरण करके उन्हें मृदा में फिर से प्रतिस्थापित कर देते हैं। मृदा के दो प्रकार होते हैं – उपरिमृदा (Top Soil) और अवमृदा (Subsoil)
प्रहवंस (Blast) नामक रोग के कारण धान की फसलें बरबाद हो जाती हैं, जिसे गंधी बग (Gundhi Bug) नामक कीटों द्वारा फैलाया जाता है।
फसलों की रोगों से सुरक्षा के लिए उपयोग किये जाने वाले विशेष रसायनों को पीड़कनाशी/कीटनाशी (Pesticides) कहा जाता है। मुख्य कीटनाशी रसायन – डीडीटी, बर्गण्डी मिश्रण, वेटेबल सल्फर, बीएचसी (बेंजीन हेक्साक्लोराइड या गेमेक्सीन, लेड आर्सेनेट, डिमेक्रॉन, मेलिथियोंन) आदि हैं।
पादप संस्करण के परिणामस्वरूप विकसित नवीन समुन्नत फसल की किस्म को संकर (हाइब्राईड) कहा जाता है।
मैक्सिकन के नाम से प्रसिद्ध गेहूं की कई उन्नत किस्मों का विकास मैक्सिको में 1960-70 के दशक में डॉ. नॉरमन बॉरलोंग और उनके सहयोगियों ने किया था।
गोबर की खाद में जैव पदार्थों की मात्रा अधिक होती है लेकिन पोषक तत्व काफी कम होते हैं। खाद में मौजूद पोषक तत्वों की कमी को दूर करने के लिए उर्वरक का प्रयोग किया जाता है, क्योंकि उर्वरक में पोषक तत्वों की मात्रा अधिक होती है। हालांकि इसमें जैव पदार्थ नहीं के बराबर होते हैं।
भारत सरकार का ‘टिड्डी चेतावनी संगठन’ राजस्थान, गुजरात व हरियाणा में टिड्डियों पर नियंत्रण रखता है।
गेहूं की फसल में मटर का पौधा उग आने की स्थिते में मटर खरपतवार कहलाती है।

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