आदिकालीन जमीनी वनस्पतियों में जड़ें, पत्तियां या फूल नहीं थे। परंतु उनमें एक सुस्पष्ट केन्द्रीय नलिका थी जो पोषक तत्वों के परिवहन के काम आती थी। उनमें अंकुरों के ऊपर स्टोमा अनावृतबीजी-शंक्वाकार पौधा नामक छिद्र भी था जो एक वास्तविक जमीनी पौधे की विशेषता है। जमीनी पौधों में स्थिर रहने और पोषक तत्वों के अवशोषण के लिए पहले पकड़ विकसित हुआ और बाद में जड़ों का विकास हुआ।
जमीनी पौधों ने जाइलैम (Xylem) और फ्लोएम (Phloem) भी विकसित कर लिए। जाइलैम और फ्लोएम वे चालक ऊतक हैं जो पोषक तत्वों को पत्तियों तक ले जाने के लिए आवश्यक हैं। इन ऊतकों के कारण तने को कड़ापन मिला। जो वनस्पतियां अधिक जमीनी क्षेत्रों में पनपी, उन्होंने बड़ी व फैलावदार पत्तियां विकसित कर ली।
कुछ समय बाद जमीनी वनस्पतियों ने वास्तविक बीज विकसित कर लिए। ये बीजाणुओं से अगला कदम था जिसमें प्राथमिक वनस्पतियों काई और फर्न का फैलाव हुआ। वास्तविक बीजों में एक सुरक्षा कवच के भीतर शुरूआती वृद्धि को कायम रखने के लिए भोजन भी उपलब्ध था। इससे बनस्पतियों को पानी के नजदीक रहने के बंधन से छुटकारा मिल गया।
सबसे पुराने बीजयुक्त पौधे, जो आज भी जीवित हैं, शंकुवृक्ष या कोनिफर थे जो देवदार (पाईन) और स्पूस कुल के सदस्य हैं। इस प्रकार के आवरणरहित या नग्न बीजधारी वनस्पतियों को जिम्नोस्पर्म (Gymnosperm) यानी अनावृतबीजी (Gymnosperm) कहा जाता है।
जिम्नोस्पर्म (Gymnosperm) के साथ जमीन पर रेंगने वाले प्राणी या सरीसृप थे। इन दोनों के फलने-फूलने के समय को मीसोजोइक युग (Mesozoic era) कहा जाता है।
अपने स्वर्णिम युग, लगभग 3,000 लाख वर्ष पूर्व, से जीवित रहने वाले बीजधारी वनस्पतियों में कोनिफर सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं।
इसके काफी समय बाद उत्पन्न होने वाले साइकैड्स, जिंकगो और नीटेल्स की प्रतिनिधि प्रजातियां आज भी धरती पर पाई जाती हैं। जिंकगो एक जीवित जीवाश्म हैं।
पेड़-पौधों के अध्ययन को वनस्पति विज्ञान (Botany) कहा जाता। है। थियोफ्रेस्टस (Theophrastus) को इस विज्ञान का जनक कहा जाता है।