पुर्तगाल और स्पेन के राजाओं ने नाविकों को नए समुद्री मार्ग खोजने के लिए प्रोत्साहित किया। पुर्तगाली के राजकुमार हेनरी ने नाविकों को संरक्षण दिया। नौसेना के क्षेत्र में उनके प्रोत्साहन और रुचि के कारण उन्हें “Henry, the Navigator” के नाम से भी जाना जाता है।
बार्थोलोम्यू डियाज़ (Bartholomeus Diaz) : वर्ष 1487 ई. में बार्थोलोम्यू डियाज़ ने अफ्रीका के पश्चिमी तट के साथ-साथ यात्रा की और दक्षिणी सिरे पर पहुँच गया। जिसे केप ऑफ गुड होप (Cape of Good Hope) के नाम से जाना जाता है। लेकिन, भारी तूफान के कारण वह आगे की यात्रा नहीं कर सके।
भारत में पुर्तगालियों का आगमन
वास्को डी गामा
वर्ष 1498 में वास्को डी गामा, केप ऑफ गुड होप से होते हुए भारत के पश्चिमी तट तक पंहुचा। इसके साथ ही यूरोप से भारत तक नए समुद्री मार्ग की खोज हुई।
17 मई 1498 में, एक पुर्तगाली नाविक, वास्को डी गामा, व्यापार के उद्देश्य से पहली बार भारत के पश्चिमी तट पर कालीकट आया। कालीकट के राजा ज़मोरिन ने उसका स्वागत किया।
इसके बाद वास्को डी गामा पुन: 1502 ई. में भारत आया। वर्ष 1524 ई. में तीसरी बार भारत आया। इस बार कोचीन में मलेरिया की वजह से उसकी मृत्यु हो गई।
Note: इसके बाद 1500 ई. में पेड्रो अल्वारेज़ कैबरल (Pedro Alvarez Cabral) भारत आया। इसने कालीकट, कैनानोर और कोचीन में पुर्तगाली व्यापार केंद्रों की स्थापना हुई।
पुर्तगालियो के भारत आगमन का उद्देश्य:
पुर्तगालियों के समुद्री साम्राज्य का नाम एस्तादो द इंडिया (Estado de India) था, जो मुख्य रूप से भारतीय निर्यात तक ही सीमित थे, लेकिन बाद में उन्होंने भारत से फारस के तट तक के व्यापार पर एकाधिकार कर लिया।
शुरुआत में पुर्तगालियों का व्यापार केवल मसालों के निर्यात तक ही सीमित था, लेकिन बाद में उन्होंने अन्य मूल्यवान वस्तुओं जैसे गेहूं, चावल, रेशम और कीमती पत्थरों का निर्यात भी शुरू कर दिया।
भारत में पुर्तगाली गवर्नर
फ्रांसिस्को द अल्मेडा (1505-1509)
- फ्रांसिस्को द अल्मेडा भारत का प्रथम गवर्नर और वायसराय था। जिसे पुर्तगाल के राजा मैनुएल – I द्वारा नियुक्त किया गया था।
- अल्मेडा ने अंजदीवा (Anjadiva), कोचीन (Cochin), कन्नानोर (Cannanore) में किले बनवाए।
- वर्ष 1509 में फ्रांसिस्को डी अल्मेडा ने तुर्की, मिस्र और गुजरात की संयुक्त सेना को पराजित कर ‘दीव’ पर अधिकार कर लिया।
- अल्मेडा ने ब्लू वाटर पॉलिसी (Blue Water Policy) की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य हिंद महासागर पर नियंत्रण प्राप्त करना था।
अल्फोंसो द अल्बुकर्क (1509-1515):
- यह भारत का दूसरा पुर्तगाली गवर्नर और वायसराय था।
- अल्बुकर्क ने भारत के पश्चिमी तट (कोचीन) पर मुख्यालय स्थापित किया और मलय प्रायद्वीप में अरब व्यापार को नष्ट कर दिया।
- इसने हिंद महासागर में स्थित फारस की खाड़ी और लाल सागर पर आक्रमण कर वहाँ के व्यापार को नियंत्रित किया।
- अल्बुकर्क ने 1510 ई. में बीजापुर के सुल्तान को पराजित कर गोवा पर अधिकार कर लिया।
- इसने ईसाई धर्म के प्रचार का प्रचार को बढ़ावा दिया और मूल निवासियों के साथ अंतर विवाह को प्रोत्साहित किया।
नीनो-डी-कुन्हा (Nino-de-cunha)
अल्बुकर्क के बाद नीनो-डी-कुन्हा (Nino-de-cunha) पुर्तगाली गवर्नर बनकर भारत आया। 1530 में उसने अपना कार्यालय कोचीन से गोवा स्थानान्तरित किया और गोवा को पुर्तगाल राज्य की औपचारिक राजधानी बनाया। उसने 1534 ई. में बसीन और 1535 में दीव पर अधिाकर किया।
जोवा-डी-कास्त्रो (Jova-de-Castro)
नीनो-डी-कुन्हा के बाद जोवा-डी-कास्त्रो (Jova-de-Castro) अगला पुर्तगाली गवर्नर बनकर भारत आया।
भारत में पुर्तगालियों के आगमन का प्रभाव
- पुर्तगालियों ने मालाबार और कोंकण तट पर ईसाई धर्म प्रचार शुरू किया। जिसमें सेंट फ्रांसिस जेवियर, फादर रुडोल्फ और फादर मॉन्सरेट ने ईसाई धर्म के प्रचार में अग्रणी भूमिका निभाई।
- ईसाई मिशनरियों ने पश्चिमी तट के समीप स्कूल और कॉलेज भी शुरू किए, जहाँ मूल भाषा में शिक्षा दी जाती थी।
- ईसाई मिशनरियों द्वारा भारतीय इतिहास और संस्कृति पर भी शोध किया गया।
- पुर्तगालियों द्वारा भारत में प्रिंटिंग प्रेस को भी लाया गया। इसी प्रिंटिंग प्रेस में बाइबिल को कन्नड़ और मलयालम भाषा में छापा गया था ।
- पुर्तगालियों द्वारा भारत में कुछ फसलों का उत्पादन भी शुरू किया गया। जैसे – तम्बाकू, आलू, भिंडी, मिर्च, अनानास, चीकू, मूंगफली, आदि।
भारत में पुर्तगालियों के पतन के कारण:
- अल्बुकर्क के बाद भारत में जितने भी गवर्नर को नियुक्त किया गया, वो कमजोर और अक्षम थे।
- पुर्तगाली शासन द्वारा अधिकारियों की उपेक्षा की गई और उनका वेतन भी कम था। जिस कारण वे भ्रष्टाचार और कदाचार में लिप्त हो गए।
- पुर्तगालियों ने जबरन ईसाई धर्म में धर्मांतरण को बढ़ावा दिया।
- वर्ष 1580 ई. में पुर्तगाल का स्पेन में विलय कर दिया गया जिससे भारत में पुर्तगाली हितों की उपेक्षा हुई।
- 1588 ई. में अंग्रेजों ने स्पेन को पराजित किया, जिसके स्पेन की नौ-सैनिक शक्ति क्षीण हो गई।
- पुर्तगालियों को भारत में डचों से प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा।
- पुर्तगालियों ने ब्राजील की खोज की जिससे भारत की तरफ उनका ध्यान कम हो गया।
भारत में पुर्तगालियों के उपनिवेश
पुर्तगालियों द्वारा भारत के तटीय भागों में विभिन्न स्थानों पर अपने उपनिवेश स्थापित किये गए। जैसे – कालीकट, कोचीन, कैनानोर, दमन, साल्सेट, चौल, बॉम्बे, मद्रास के पास सैन थोम और बंगाल में हुगली।
भारत में पुर्तगालियों द्वारा सर्वप्रथम अपनी राजधानी कोचीन में स्थापित की गयी। बाद में नीनो दा कुन्हा द्वारा राजधानी को गोवा में स्थानांतरित कर दिया गया।
Note:
- भारत में लगभग 450 वर्षों (1961 तक) तक पुर्तगाली शासन रहा।
- पुर्तगालियों ने 1560 ई. में गोवा में ईसाई धर्म न्यायालय की स्थापना की।
- भारत में गौथिक स्थापत्य कला की शुरुआत पुर्तगालियों ने की।