बिहार के लोकनाट्यों का जनजीवन में काफी महत्वपूर्ण स्थान है। इन नाटयों में अभिनय, संवाद, कथानक, गीत तथा नृत्यों का अत्यधिक महत्व हैं। इन्हें सांस्कृतिक और मांगलिक अवसरों पर दक्ष कलाकारों द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। बिहार में प्रचलित लोकनाट्यों का वर्णन निम्नलिखित है –
जट-जटिन
यह लोकनाट्य एक जट और उसकी पत्नी (जटिन) के दांपत्य जीवन पर आधारित हैं। इस नाट्य की प्रस्तुति श्रावण माह से कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चाँदनी रात में महिलाओं द्वारा की जाती है।
अकुली-बंका
इस नाट्य की प्रस्तुति काल श्रावण माह से कार्तिक माह तक की जाती है। इस नाट्य प्रमुख पात्र अंका, बंका और टिहुली आदि होते हैं। इस नाट्य द्वारा ग्रामीण परिवेश का अच्छा दर्शन देखने को मिलता है।
सामा-चकेवा
यह नाट्य का आयोजन कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष में सप्तमी से पूर्णिमा तक किया जाता है। इस नाट्य में सामा-चकेवा (भाई-बहन) हैं। यह नाट्य मुख्यतः कुंवारी कन्याओं द्वारा प्रस्तुत किया जाता है जिसमे सभी पात्र मिट्टी के बने होते हैं, जो श्रीकृष्ण की बाँसुरी बजाती मूर्ति के आसपास रख दिए जाते हैं।
किरतनियाँ (नारदी)
यह एक धार्मिक नाट्य हैं। इस नाट्य में कलाकारों द्वारा श्रीकृष्ण की लीलाओं का मंचन किया जाता है।
डोमकच
यह नाट्य महिला-प्रधान है, क्योंकि यह पुरुषों की अनुपस्थिति में घर व आसपड़ोस की महिलाओं द्वारा आयोजित किया जाता है। इस नाट्य मनोविनोद, हास-परिहास जैसे संवादों के साथ गीत और नृत्यों का भी समावेश होता हैं तथा महिलाएँ ही पुरुष-पात्रों की भूमिकाएँ करती हैं।
विदेशिया
इस नाट्य बिहार के प्रसिद्ध लोककवि भिखारी ठाकुर की रचना पर आधारित हैं। यह नाट्य बिहार की नाट्य विधा का बहुचर्चित और प्रसिद्ध लोकनाट्य हैं, जिसका मंचन राष्ट्रीय प्रेक्षागृहों में भी किया जाता हैं।