चक हाओ और गोरखपुर (टेराकोटा)

हाल ही में मणिपुर के काले चावल (Chak-Hao) और गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) में निर्मित टेराकोटा को भौगोलिक संकेत (GI) टैग दिया गया है।

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चक-हाओ (Chak-Hao) 

  • चक-हाओ (Chak-Hao) एक सुगंधित व चिपचिपा चावल है जिसकी खेती मणिपुर में सदियों से की जा रही है। इसकी मुख्य विशेषता इसकी विशेष सुगंध है।
  • इस चावल का रंग काला होता है। इस चावल में रेशेदार चोकर की परत (fibrous bran layer) और कच्चे तेल की अधिक मात्रा (higher crude fiber content) की उपस्थिति के कारण इसके पकाने में ;लगभग 40-45 मिनट लगते हैं।
  • इसे आम तौर पर उत्सवों के दौरान खाया जाता है और इसे चक-हाओ खीर (Chak-Hao kheer) के रूप में परोसा जाता है।
  • चक-हाओ (Chak-Hao) का उपयोग चिकित्सकों द्वारा पारंपरिक चिकित्सा पद्यति के रूप में भी किया जाता है।

टेराकोटा (गोरखपुर)


गोरखपुर में किया जाने वाला टेराकोटा (terracotta) कार्य सदियों पुरानी पारंपरिक कला का एक रूप है।
टेराकोटा उत्पादों (Terracotta products) के निर्माण में कबीस मृदा (Kabis clay) का उपयोग किया जाता है जो औरंगाबाद, भरवलिया और बुधाडीह ग्राम क्षेत्रों के तालाबों में पाई जाती है।
यह मृदा केवल मई और जून के महीनों में पाई जाती है, क्योंकि वर्ष के अन्य महीनों में, तालाब पानी से भर जाते हैं।
कुम्हार द्वारा टेराकोटा उत्पादों (Terracotta products) के निर्माण में किसी भी रंग का उपयोग नहीं किया जाता हैं, वे केवल सोडा (soda) और आम के पेड़ की छाल (mango tree bark) के मिश्रण में टेराकोटा उत्पादों को डुबोते हैं, और इन्हें सेंकते हैं।

  • टेराकोटा उत्पादों का लाल रंग वर्षों तक फीका नहीं पड़ता है।

इस शिल्प कौशल के प्रमुख उत्पादों में हौदा हाथी, महावतदार घोड़ा, हिरण, ऊँट, पंचमुखी गणेश, एकल मुखी गणेश, हाथी की मेज, झाड़, लटकती हुई घंटियाँ आदि शामिल हैं।

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