खनिज और ऊर्जा संसाधनों का वर्गीकरण

खनिज 

भू-वैज्ञानिकों के अनुसार खनिज एक प्राकृतिक रूप से विद्यमान समरूप तत्त्व है जिसकी एक निश्चित आंतरिक संरचना है। खनिज प्रकृति में अनेक रूपों में पाए जाते हैं जिसमें कठोर हीरा व नरम चूना तक सम्मिलित हैं। वर्तमान में यद्यपि 2000 से अधिक खनिजों की पहचान की जा चुकी है, लेकिन अधिकतर चट्टानों में केवल कुछ ही खनिजों की बहुतायत है।
खनिज एक निश्चित तत्त्वों का योग है, उन तत्त्वों का निर्माण उस समय के भौतिक व रासायनिक परिस्थितियों का परिणाम है। इसके फलस्वरूप ही खनिजों में विविध रंग, कठोरता, चमक, घनत्व तथा विविध क्रिस्टल पाए जाते हैं। भू-वैज्ञानिक इन्हीं विशेषताओं के आधार पर खनिजों का वर्गीकरण करते हैं।

 

भारत के खनिज क्षेत्र

ऊर्जा संसाधन

ऊर्जा सभी क्रियाकलापों के लिए आवश्यक हैं। खाना पकाने में, रोशनी व ताप के लिए, गाड़ियों के संचालन तथा उद्योगों में मशीनों के संचालन में ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
ऊर्जा का उत्पादन ईंधन खनिजों जैसे – कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस, यूरेनियम तथा विद्युत से किया जाता है। ऊर्जा संसाधनों को दो भागो में वर्गीकृत किया जा सकता है।

  • परंपरागत साधन – में लकड़ी, उपले, कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस तथा विद्युत (जल विद्युत व ताप विद्युत) सम्मिलित हैं
  • गैर-परंपरागत साधन –  में सौर, पवन, ज्वारीय, भू-तापीय, बायोगैस तथा परमाणु ऊर्जा शामिल किये जाते हैं।

ग्रामीण भारत में लकड़ी व गोबर के उपले बहुतायत में प्रयोग किये जाते हैं। एक अनुमान के अनुसार ग्रामीण घरों में आवश्यक ऊर्जा का 70 % से अधिक इन दो साधनों से प्राप्त होता है लेकिन अब घटते वन क्षेत्र के कारण इनका उपयोग करते रहना कठिन होता जा रहा है। इसके
अतिरिक्त उपलों का उपभोग भी हतोत्साहित किया जा रहा है क्योंकि इससे सर्वाधिक मूल्यवान खाद्य का उपभोग होता हैं जिसे वृफषि में प्रयोग किया जा सकता है।

परंपरागत ऊर्जा के स्रोत

कोयला – भारत में कोयला बहुतायात में पाया जाने वाला जीवाश्म ईंधन है। यह देश की ऊर्जा आवश्यकताओं का महत्त्वपूर्ण भाग प्रदान करता है। इसका उपयोग ऊर्जा उत्पादन तथा उद्योगों और घरेलू शरूरतों के लिए उफर्जा की आपूर्ति के लिए किया जाता है। भारत अपनी वााणिज्यिक ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु मुख्यतः कोयले पर निर्भर है।   कोयले का निर्माण पादप पदार्थों वेफ लाखों वर्षों तक संपीडन से हुआ है। इसीलिए संपीडन की मात्रा, गहराई और दबने के समय के आधार पर कोयला अनेक रूपों में पाया जाता
पेट्रोलियम – भारत में ऊर्जा का दूसरा प्रमुख साधन पेट्रोलियम या खनिज तेल है। यह ताप व प्रकाश के लिए ईंधन, मशीनों को स्नेहक और अनेक विनिर्माण उद्योगों को कच्चा माल प्रदान करता है। तेल शोधन शालाएँ संश्लेषित वस्त्र, उर्वरक तथा असंख्य रासायन उद्योगों में
एक नोडीय बिंदु का काम करती हैं।
भारत में अधिकांश पेट्रोलियम की उपस्थिति तृतीयक युग की शैल संरचनाओं के अपनति व भ्रंश ट्रैप में पाई जाती है। वलन, अपनति और गुंबदों वाले प्रदेशों में यह वहाँ पाया जाता है जहाँ उद्ववलन के शीर्ष में तेल ट्रैप हुआ होता है।

  • तेल धारक परत संरध्र चूना पत्थर या बालुपत्थर होता है जिसमें से तेल प्रवाहित हो सकता है।
  • मध्यवर्ती असरंध्र परतें तेल को उफपर उठने व नीचे रिसने से रोकती हैं।
  • पेट्रोलियम संरध्र और असरंध्र चट्टानों के बीच भ्रंश ट्रैप में भी पाया जाता है। प्राकृतिक गैस हल्की होने के कारण खनिज तेल के ऊपर पाई जाती है।

भारत में कुल पेट्रोलियम उत्पादन का 63 % भाग मुंबई  से, 18 % गुजरात से और 16 % असम से प्राप्त होता है।
प्राकृतिक गैस – एक महत्त्वपूर्ण स्वच्छ ऊर्जा संसाधन है जो पेट्रोलियम के साथ अथवा अलग भी पाई जाती है। इसे ऊर्जा के एक साधन के रूप में तथा पेट्रो रासायन उद्योग के एक औद्योगिक कच्चे माल के रूप में प्रयोग किया जाता है।
कार्बनडाई-आॅक्साइड के कम उत्सर्जन के कारण प्राकृतिक गैस को पर्यावरण-अनुकूल माना जाता है। इसलिए यह वर्तमान शताब्दी का ईंधन है। कृष्णा-गोदावरी नदी बेसिन में प्रावृफतिक गैस के विशाल भंडार खोजे गए हैं। पश्चिमी तट के साथ मुम्बई
और सन्निध क्षेत्रों को खंभात की खाड़ी में पाए जाने वाले तेल क्षेत्रा संपूरित करते हैं। अंडमान-निकोबार द्वीप समूह भी महत्त्वपूर्ण क्षेत्रा हैं जहाँ प्राकृतिक गैस के विशाल भंडार पाए जाते हैं।

गैर-परंपरागत ऊर्जा के साधन

ऊर्जा के बढ़ते उपभोग ने देश को कोयला, तेल और गैस जैसे – जीवाश्मी ईंधनों पर अत्यधिक निर्भर कर दिया है। गैस व तेल की बढ़ती कीमतों तथा इनकी संभाव्य कमी ने भविष्य में ऊर्जा आपूर्ति की सुरक्षा के प्रति अनिश्चितताएँ उत्पन्न कर दी हैं। इसके राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की ऊर्जा पर गंभीर प्रभाव पड़ते हैं। इसके अतिरिक्त जीवाश्मी ईंधनों का प्रयोग गंभीर पर्यावरणीय समस्याएँ उत्पन्न करता है। अतः नवीकरण योग्य ऊर्जा संसाधनों जैसेसौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, जैविक ऊर्जा तथा अवशिष्ट पदार्थ जनित ऊर्जा , परमाणु (आणविक) ऊर्जा, तापीय ऊर्जा उपयोग की बहुत जरुरत है। ये ऊर्जा के गैर-परंपरागत साधन कहलाते हैं।

मुख्य बिंदु

रैट होल (Rat Hole) –  भारत में अधिकांश खनिज राष्ट्रीयकृत हैं और इनका निष्कर्षण सरकारी अनुमति के पश्चात् ही सम्भव है, किन्तु उत्तर-पूर्वी भारत के अधिकांश जनजातीय क्षेत्रों में, खनिजों का स्वामित्व व्यक्तिगत व समुदायों को प्राप्त है। मेघालय में कोयला, लौह अयस्क, चूना पत्थर व डोलोमाइट के विशाल निक्षेप पाए जाते हैं। जोवाई और चेरापूंजी में कोयले का खनन परिवार के सदस्य द्वारा एक लंबी संकीर्ण सुरंग के रूप में किया जाता है, जिसे रैट होल खनन कहते हैं।
Source : NCERT

Leave a Reply

Your email address will not be published.

Latest from Blog

UKSSSC Forest SI Exam Answer Key: 11 June 2023

उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा आयोग (Uttarakhand Public Service Commission) द्वारा 11 June 2023 को UKPSC Forest SI Exam परीक्षा का आयोजन…