सामान्यतः रक्त वाहिनियों के टूटने या कट जाने पर अथवा चोट आदि लग जाने से खून बहने लगता है जो कुछ देर बाद अपने आप बंद हो जाता है। यह क्रिया रक्त के वायु के संपर्क में आने पर जम जाने से संभव होती है। इसे रक्त स्तम्भन (Haemostasis) कहते हैं। रक्त का जमना या थक्का बनना गूढ़ एवं जटिल रासायनिक प्रक्रियाओं की एक श्रृंखला है जो निम्नलिखित तीन चरणों में पूरी होती हैं –
1. सामान्यतः ऊतकों के टूट-फूट जाने तथा रक्तवाहिनी से रक्त बहने के कारण रक्त वाहिनिया संकुचित हो जाती हैं व रक्त का प्रवाह धीमा पड़ जाता है।
2. रक्त का थक्का बनने के दूसरे चरण में प्लेटलेट्स रक्त वाहिनियों से बाहर निकल आते हैं और फूलकर आस-पास के संयोजी ऊतकों के कॉलेजन से चिपक जाते हैं। लगभग एक मिनट में यह प्लेटलेट्स का प्लग बनाकर रक्तवाहिनी के टूटे या कटे-फटे छिद्र को बन्द कर देते हैं जिससे रक्त बहना बन्द हो जाता है। इस प्रक्रिया को प्लेटलेट्स एग्रीगेशन (platelet aggregation) कहते हैं।
3. रक्त स्कन्दन या रक्त का थक्का बनने की प्रक्रिया – रक्त वाहिनियों के बहुत ज्यादा क्षतिग्रस्त होने की स्थिति में प्लेटलेट प्लग रक्तस्राव को रोक नहीं पाते हैं। ऐसी स्थिति में रक्त का थक्का बनने की काफी जटिल प्रक्रिया का स्कन्दन प्रवस्था (coagulation phase) शुरु होती है, जिसमें निम्नलिखित कारक भाग लेते हैं।
फाइबिनोजन (Fibrinager) – फाइब्रिनोजन प्रोटीन भी यकृत में बनता है। इस प्रोटीन को रक्त का थक्का (blood clot) बनने की क्रिया में जरूरी माना जाता है। रक्त में थक्का बनने के बाद बाकी द्रव को सीरम (Serum) कहते हैं।
रक्त स्कन्दन प्रवस्था – टूटे-फूटे या कटे-फटे ऊतक कोशिकाओं से रक्त बहने के बाद प्लेटलेट्स और प्लाज्मा ग्लोब्युलिन (इसे एन्टी–हीमोफिलिक फैक्टर (AHF) के मिलने पर श्रॉम्बोकाइनेज (Thromboplastin) नामक एन्जाइम मुक्त होता है।
प्लेटलेट्स, एन्टी हीमोफिलिक फैक्टर और थॉम्बोकाइनेज के एक साथ मिलने से थॉम्बोप्लास्टिन (Thromboplastin) बनता है। म्योप्लास्टिन रक्त में मौजूद कैल्शियम ब्लड फैक्टर्स तथा प्लाज्मा में स्थित प्रोथॉम्बिन (prothrombin) से मिलकर एक नये पदार्थ में बदल जाता है जिसे थॉम्बिन (Thrombin) कहते हैं।
थॉम्बिन (Thrombin) भी एक सक्रिय एन्जाइम है जो प्लाज्मा में मौजूद फाइब्रिनोजन (fibrinogen) नामक प्रोटीन पर क्रिया करके एक अघुलनशील तन्तुमय पदार्थ का निर्माण करता है जिसे फाइब्रिन (fibrin) कहते हैं।
फाइब्रिन के तन्तु आपस में फसकर जाल (net) बनाते हैं जिसमें लाल और सफेद रक्त कोशिकाएं फंस जाती हैं और रक्त का थक्का बन जाता है। कुछ समय बाद यह रक्त का थक्का सिकुड़ जाता है और सीरम अलग हो जाता है। सीरम ऐसा प्लाज्मा है जिसमें फाइब्रिनोजन अलग हो गया होता है।
ग्लोबुलिन्स (Globulins) – इन्हें इनकी संरचना एवं कार्यों के अनुसार 3 वर्गों में बांटा गया है – एल्फा (α), बीटा (β) और गामा (γ)
एल्फा और बीटा ग्लोबुलिन्स प्रोटीन यकृत द्वारा बनते हैं। गामा ग्लोबुलिन्स प्रोटीन या इम्युनोग्लोबलिन (Immunoglubulin) एण्टीबॉडी के रूप में कार्य करती है जो खसरा, टिटनेस और पोलियोमाइलाटिस जैसे रोगों को रोकने में सहायक होती है।
मुख्य पॉजिटिव चार्जड आयन के रूप में सोडियम को माना जाता है। जबकि मुख्य निगेटिव चार्जड आयन के रूप में क्लोराइड को माना जाता है।