किसी निश्चित क्षेत्रफल पर में एक नियत अवधि में फसलों का अदल-बदल कर उगाने की प्रक्रिया को फसल चक्र (Crop Rotation) कहा जाता है। ऐसा करने से भूमि की उर्वरा शक्ति का कम से कम ह्रास होता है। के उद्देश्य से फसलों का अदल-बदल कर उगाने की प्रक्रिया को फसल चक्र कहा जाता है ।
फसल-चक्र का निर्धारण करने से पूर्व कुछ मूलभूत सिद्धान्तों पर के बारे पता होना अत्यंत आवश्यक होता है। जैसे –
- कम गहरी जड़वाली (shallow root crops) फसलों के बाद लंबी जड़वाली (deep root crops) फसलों की खेती करना।
- अरहर (pigeonpea) के बाद गेहूँ (wheat) की फसलों की खेती करना।
- दलहनी फसलों के बाद अदलहनी फसलों की खेती करना।
- अधिक खाद्य व पानी वाली फसलों के बाद कम खाद्य व पानी वाली फसलों की खेती करना।
फसल चक्र के लाभ
- इससे मृदा की उर्वरा शक्ति निरंतर बनी रहती है।
- फसल की पैदावार में वृद्धि
- मृदा के पोषक तत्वों में वृद्धि
- मृदा अपरदन को कमी
- कीटों और रोगों व खरपतवार के नियंत्रण में सहायता मिलती है।
- मृदा प्रदूषण में कमी।
- सीमित संसाधनो में अधिक उत्पादन करना संभव होता है।
कुछ प्रमुख फसल चक्र
एक वर्षीय फसल-चक्र
- चरी – बरसीम
- धान – गेहूँ – मूंग
- मक्का – तोरिया – गेहूं
- टिण्डा – आलू – मूली – करेला
द्विवर्षीय फसल-चक्र
- कपास – मटर – परती – गेहूँ
- चरी – गेहूँ – चरी – मटर
- मक्का – लाही – मूंग/उर्द
तीन वर्षीय फसल-चक्र
- हरी खाद – आलू – गन्ना – पेड़ी
- मँगफली – अरहर – गन्ना – मूंग – गेहूँ – मूंग
- सोयाबीन – गेहूं
पारिस्थितिकी तंत्र के अनुसार देश के विभिन्न भागों में भिन्न-भिन्न ‘ प्रकार के फसल चक्र अपनाए जाते हैं। जैसे –
- पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में – ‘धान – गेहूँ’
- राजस्थान में – बाजरा/ज्वार-सरसों
- गुजरात, महाराष्ट्र में – कपास/अरहर – गेहूँ
उर्वरकों के निरंतर प्रयोग से भूमि की उर्वरता एवं उत्पादकता (Fertility & Productivity) क्षमता में निरंतर कमी आती रहती है। अत: भूमि की उर्वरता शक्ति को बनाएँ रखने के लिए एकीकृत पादप पोषक तत्व प्रबंधन (Integrated Plant Nutrient Management – IPNM) तकनीक को अपनाना जरूरी है। IPNM तकनीक के अनुसार फसलों में 50 % NPK (नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम) तत्व जीवांश खाद से तथा 50% NPK (नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम) उर्वरकों से दिए जाने चाहिए।